(1) पूरी आयत अरबी में:
"وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلَىٰ مَرْيَمَ بُهْتَانًا عَظِيمًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
وَبِكُفْرِهِمْ (Wa-bikufrihim): और उनके इनकार (कुफ्र) के कारण।
وَقَوْلِهِمْ (Wa qawlihim): और उनके कहने के कारण।
عَلَىٰ (Alā): पर।
مَرْيَمَ (Maryama): मरयम (अलैहिस्सलाम) के।
بُهْتَانًا (Buhtānan): एक बड़ा झूठ, बदनाम करने वाला आरोप।
عَظِيمًا (Aẓīman): अत्यंत बड़ा, भारी।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पिछली आयत (4:155) में गिनाए गए बनी इसराईल के अपराधों की सूची को जारी रखती है और उनके एक और जघन्य पाप को उजागर करती है। यह आयत उस घिनौने आरोप (बुहतान) का जिक्र करती है जो यहूदियों के एक गिरोह ने हज़रत मरयम (अलैहिस्सलाम) पर लगाया था।
आयत का भावार्थ: "और (उन पर अल्लाह का प्रकोप) उनके कुफ्र के कारण और मरयम पर एक बड़ा बदनाम करने वाला आरोप लगाने के कारण (हुआ)।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत बहुत ही संक्षिप्त है, लेकिन इसका अर्थ बहुत गहरा और गंभीर है। यह बनी इसराईल के चरित्र की एक और कलंकित परत को दर्शाती है।
"बुहतानन अज़ीमा" (एक बड़ा बदनाम करने वाला आरोप) क्या था?
ऐतिहासिक और तफ्सीरी स्रोतों के अनुसार, यहूदियों के एक वर्ग ने हज़रत मरयम (अलैहिस्सलाम) की पवित्रता पर हमला किया और उन पर एक भयानक झूठा आरोप लगाया।
उन्होंने यह कहकर उनकी निंदा की कि वह एक बच्चे की माँ बनी हैं जबकि वह विवाहित नहीं थीं। उन्होंने हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के जन्म के चमत्कार को न मानते हुए, उनकी माँ की पवित्रता पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया।
कुरआन ने इस आरोप को स्पष्ट रूप से "बुहतान" (झूठा आरोप) कहा है और हज़रत मरयम को एक पवित्र, शुद्ध और चुनी हुई हस्ती के रूप में पेश किया है (जैसा कि सूरह आले-इमरान और सूरह मरयम में विस्तार से है)।
यह आरोप क्यों "अज़ीम" (बहुत बड़ा) है?
एक पवित्र महिला पर आरोप: यह सिर्फ किसी साधारण महिला पर नहीं, बल्कि अल्लाह द्वारा चुनी हुई, एक पैगम्बर की माँ पर लगाया गया आरोप था।
अल्लाह के चमत्कार का इनकार: यह आरोप अल्लाह की शक्ति और उसके चमत्कार (हज़रत ईसा का बिना पिता के पैदा होना) के सीधे इनकार के समान था।
समाजिक बदनामी: उस समय के समाज में एक महिला के लिए ऐसा आरोप सबसे बड़ी बदनामी और अपमान का विषय था।
पिछली आयतों के साथ संबंध: यह आरोप पिछली आयत में बताए गए उनके तीसरे अपराध "व कत्लिहिमुल अम्बिया-या बि-गैरि हक्किन" (और नाहक़ पैगम्बरों को कत्ल करने) से सीधे जुड़ा हुआ है। हज़रत मरयम पर झूठा आरोप लगाना, उनके बेटे हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के खिलाफ एक सुनियोजित मुहिम का हिस्सा था, जिसका अंतिम लक्ष्य उन्हें भी शहीद करना था (हालाँकि अल्लाह ने उन्हें बचा लिया)।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
किसी की इज्जत पर हमला बड़ा पाप है: किसी नेक और पाकदामन इंसान, खासकर महिलाओं, पर झूठा आरोप लगाना अल्लाह के नजदीक एक भारी जुर्म है। इस्लाम ऐसे किसी भी "बुहतान" की सख्त मनाही करता है।
पैगम्बरों और उनके परिवारों का सम्मान: अल्लाह के सभी पैगम्बरों और उनके पवित्र परिवारों का सम्मान करना एक मुसलमान का ईमानी फर्ज है। उनके बारे में गलत और अपमानजनक बातें फैलाना सख्त हराम है।
चमत्कारों पर ईमान: एक मुसलमान हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के बिना पिता के पैदा होने के चमत्कार पर पूरा ईमान रखता है, क्योंकि यह अल्लाह की असीम शक्ति का प्रमाण है।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत उस ऐतिहासिक झूठ का खंडन करती है जो यहूदियों के एक गिरोह ने हज़रत मरयम पर लगाया था। यह मुसलमानों के लिए हज़रत मरयम और हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के प्रति सही अकीदा (विश्वास) स्थापित करती है।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
महिलाओं की बदनामी (Character Assassination): आज सोशल मीडिया और समाज में महिलाओं को बदनाम करना एक आम बात हो गई है। झूठे आरोप लगाकर उनकी इज्जत को नष्ट किया जाता है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि यह "बुहतानन अज़ीमा" है और अल्लाह ऐसे लोगों से सख्त नफरत करता है।
धार्मिक हस्तियों का अपमान: आज भी विभिन्न धर्मों की पवित्र हस्तियों और पैगम्बरों के बारे में अपमानजनक बातें कही और लिखी जाती हैं। एक मुसलमान के तौर पर हमें हर पैगम्बर का सम्मान करना चाहिए और उनके बारे में गलत बातों का विरोध करना चाहिए।
फेक न्यूज और गप्पें: आज का दौर फेक न्यूज और अफवाहों का दौर है। लोग बिना पुष्टि किए किसी के भी बारे में कुछ भी कह देते हैं। यह आयत हमें सिखाती है कि किसी के बारे में बिना जाने कोई बात फैलाना या मान लेना एक बड़ा गुनाह है।
भविष्य (Future) में: जब तक समाज रहेगा, लोगों की नीयत और इज्जत पर हमले होते रहेंगे। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी चेतावनी बनी रहेगी कि किसी की इज्जत को नष्ट करने का झूठा आरोप लगाना, अल्लाह की नजर में एक भारी अत्याचार है। यह हमें सिखाती रहेगी कि हमें हमेशा दूसरों की इज्जत का ख्याल रखना चाहिए, खासकर महिलाओं और धार्मिक शख्सियतों का, और झूठे आरोपों से दूर रहना चाहिए।
निष्कर्ष: यह आयत हमें बताती है कि बनी इसराईल का एक और बड़ा पाप हज़रत मरयम जैसी पवित्र हस्ती पर झूठा आरोप लगाना था। यह हमें सिखाती है कि ईमान सिर्फ अल्लाह पर विश्वास करने का नाम नहीं है, बल्कि उसके पैगम्बरों और उनके परिवारों का सम्मान करना और हर इंसान की इज्जत को बचाना भी है। कोई भी समाज ऐसे "बुहतान" (झूठे आरोपों) से सुरक्षित नहीं रह सकता, इसलिए हर मुसलमान का फर्ज है कि वह ऐसी गंदी बातों से अपने आप को और अपने समाज को बचाए।