(1) पूरी आयत अरबी में:
"لَّن يَسْتَنكِفَ الْمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبْدًا لِّلَّهِ وَلَا الْمَلَائِكَةُ الْمُقَرَّبُونَ ۚ وَمَن يَسْتَنكِفْ عَنْ عِبَادَتِهِ وَيَسْتَكْبِرْ فَسَيَحْشُرُهُمْ إِلَيْهِ جَمِيعًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
لَّن (Lan): कभी नहीं।
يَسْتَنكِفَ (Yastankifa): इनकार करेगा, घृणा करेगा।
الْمَسِيحُ (Al-Masīḥu): मसीह (ईसा अलैहिस्सलाम)।
أَن (An): इस बात से।
يَكُونَ (Yakūna): होना।
عَبْدًا (ʿAbdan): बन्दा, दास।
لِّلَّهِ (Lillāhi): अल्लाह का।
وَلَا (Wa lā): और न ही।
الْمَلَائِكَةُ (Al-malā'ikatu): फ़रिश्ते।
الْمُقَرَّبُونَ (Al-muqarrabūna): नज़दीक वाले (विशेष)।
وَمَن (Wa man): और जो कोई।
يَسْتَنكِفْ (Yastankif): इनकार करे।
عَنْ (ʿAn): से।
عِبَادَتِهِ (ʿIbādatihi): उसकी इबादत (बन्दगी)।
وَيَسْتَكْبِرْ (Wa yastakbir): और घमंड करे।
فَسَيَحْشُرُهُمْ (Fa-sayaḥshuruhum): तो वह उन्हें जमा करेगा।
إِلَيْهِ (Ilayhi): अपनी ओर।
جَمِيعًا (Jamīʿan): सबके सब।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पिछली आयत (4:171) का सीधा और तार्किक विस्तार है। जहां आयत 171 में ईसाइयों को उनकी गलत मान्यताओं (त्रित्व और ईसा को अल्लाह का बेटा मानने) से रोका गया था, वहीं यह आयत उन्हें यह समझाती है कि स्वयं हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और फ़रिश्ते अल्लाह के बन्दे होने में कोई घमंड या शर्म महसूस नहीं करते। यह अल्लाह की बन्दगी के महत्व और घमंड के परिणाम को दर्शाती है।
आयत का भावार्थ: "मसीह (ईसा) यह बात कभी घृणा से स्वीकार नहीं करेंगे कि वह अल्लाह के बन्दे हैं और न ही निकटस्थ फ़रिश्ते। और जो कोई उसकी इबादत से इनकार करेगा और घमंड करेगा, तो वह (अल्लाह) उन सबको अपने सामने जमा करेगा।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत दो महत्वपूर्ण समूहों का उदाहरण देकर इंसान को सबक सिखाती है।
हज़रत ईसा और फ़रिश्तों का रवैया: "लन यस्तनकिफल मसीह..."
ईसाई हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह का बेटा मानकर उन्हें बन्दगी के दर्जे से ऊपर उठा देते हैं। अल्लाह इस आयत में स्पष्ट करता है कि हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) स्वयं अल्लाह का बन्दा होने में कोई घमंड या शर्म महसूस नहीं करते। बल्कि, यही उनकी सच्ची शान और सम्मान की बात है।
"वलल मलाइकतुल मुकर्रबून" - और न ही वे फ़रिश्ते जो अल्लाह के सबसे निकट हैं (जैसे जिब्रील, मिकाईल आदि)। वह भी अपने आप को अल्लाह का बन्दा ही मानते हैं और उसकी इबादत में लगे रहते हैं।
अगर ईसा और फ़रिश्ते, जो इतने महान हैं, अल्लाह की बन्दगी में कोई झिझक महसूस नहीं करते, तो फिर एक साधारण इंसान को अल्लाह की बन्दगी से इनकार करने या उसमें घमंड करने का क्या अधिकार है?
घमंडी इंसानों के लिए चेतावनी: "व मन यस्तनकिफ़ अन इबादतिही..."
"यस्तनकिफ" - इनकार करना, घृणा करना। यह वह रवैया है जब इंसान अल्लाह की इबादत को अपने लिए तुच्छ समझता है।
"व यस्तक्बिर" - और घमंड करना। यह वह अहंकार है जो इंसान को अल्लाह के सामने झुकने से रोकता है।
परिणाम: "फ़स-यहशुरुहुम इलैहि जमीआ" - तो अल्लाह उन सबको (घमंड करने वालों को) अपने सामने एकत्रित करेगा। यह कयामत के दिन का दृश्य है, जब हर इंसान को उसके कर्मों का हिसाब देने के लिए उपस्थित किया जाएगा। उस दिन घमंड करने वालों की क्या हालत होगी, यह सोचने की बात है।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
बन्दगी ही असली सम्मान है: अल्लाह का बन्दा बनना कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि सबसे बड़ा सम्मान है। यही मनुष्य की सच्ची पहचान और उद्देश्य है।
घमंड सबसे बड़ी बुराई: अल्लाह के सामने घमंड करना सबसे बड़ा पाप है। यही पाप इब्लीस को जहन्नुमी बनाया था।
विनम्रता का पाठ: हमें हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) और फ़रिश्तों से सीख लेते हुए अल्लाह के सामने विनम्र रहना चाहिए और उसकी इबादत को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाना चाहिए।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत ईसाइयों को उनकी गलतफहमी दूर करने और उन्हें इस्लाम की ओर बुलाने के लिए थी। यह दिखाती थी कि इस्लाम हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का वास्तविक सम्मान करता है।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
ईसाई-मुस्लिम संवाद: आज भी जब ईसाई हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की दिव्यता पर जोर देते हैं, यह आयत एक दार्शनिक और तार्किक जवाब प्रस्तुत करती है।
आधुनिक अहंकार: आज का इंसान विज्ञान और तकनीक की तरक्की के कारण बहुत अहंकारी हो गया है। वह अल्लाह की इबादत को पुराने जमाने की बात समझता है और अपनी बुद्धि पर घमंड करता है। यह आयत ऐसे सभी लोगों के लिए एक सख्त चेतावनी है।
धार्मिक उदासीनता: बहुत से लोग, यहाँ तक कि कुछ मुसलमान भी, इबादत (नमाज़, दुआ) को तुच्छ समझते हैं और उसे करने में आलस या शर्म महसूस करते हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि अगर ईसा और फ़रिश्ते इबादत से नहीं कतराते, तो हम कौन होते हैं कतराने वाले?
भविष्य (Future) में: जब तक इंसान में अहंकार रहेगा, यह आयत प्रासंगिक बनी रहेगी। यह भविष्य की हर पीढ़ी को यह सिखाती रहेगी कि अल्लाह के सामने विनम्रता ही सच्ची शान है और घमंड का अंत बहुत बुरा होता है। यह आयत हमेशा लोगों को अल्लाह की बन्दगी की ओर बुलाती रहेगी।
निष्कर्ष: यह आयत हमें विनम्रता और इबादत का महत्व सिखाती है। यह बताती है कि अल्लाह के सबसे महान बन्दे भी उसकी बन्दगी में गर्व महसूस करते हैं। इसलिए, हमें कभी भी अल्लाह की इबादत से इनकार या घमंड नहीं करना चाहिए। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि एक दिन हम सबको अल्लाह के सामने पेश होना है और उस दिन घमंडियों के लिए कोई जगह नहीं होगी। सच्ची सफलता और सम्मान अल्लाह का बन्दा बनने में ही है।