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कुरआन की आयत 4:171 की पूर्ण व्याख्या

 (1) पूरी आयत अरबी में:

"يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَا تَغْلُوا فِي دِينِكُمْ وَلَا تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ إِلَّا الْحَقَّ ۚ إِنَّمَا الْمَسِيحُ عِيسَى ابْنُ مَرْيَمَ رَسُولُ اللَّهِ وَكَلِمَتُهُ أَلْقَاهَا إِلَىٰ مَرْيَمَ وَرُوحٌ مِّنْهُ ۖ فَآمِنُوا بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ ۖ وَلَا تَقُولُوا ثَلَاثَةٌ ۚ انتَهُوا خَيْرًا لَّكُمْ ۚ إِنَّمَا اللَّهُ إِلَٰهٌ وَاحِدٌ ۖ سُبْحَانَهُ أَن يَكُونَ لَهُ وَلَدٌ ۘ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ وَكَفَىٰ بِاللَّهِ وَكِيلًا"

(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):

  • يَا أَهْلَ (Yā ahla): हे लोगों।

  • الْكِتَابِ (Al-kitābi): किताब (के)।

  • لَا تَغْلُوا (Lā taghlū): हद से न बढ़ो।

  • فِي (Fī): में।

  • دِينِكُمْ (Dīnikum): तुम्हारे दीन।

  • وَلَا تَقُولُوا (Wa lā taqūlū): और न कहो।

  • عَلَى (ʿAlā): पर।

  • اللَّهِ (Allāhi): अल्लाह के बारे में।

  • إِلَّا (Illā): के सिवा।

  • الْحَقَّ (Al-ḥaqqa): सच्चाई।

  • إِنَّمَا (Innamā): बस, केवल।

  • الْمَسِيحُ (Al-masīḥu): मसीह।

  • عِيسَى (ʿĪsā): ईसा।

  • ابْنُ (Ibnu): पुत्र।

  • مَرْيَمَ (Maryama): मरयम के।

  • رَسُولُ (Rasūlu): रसूल (पैगम्बर)।

  • اللَّهِ (Allāhi): अल्लाह के।

  • وَكَلِمَتُهُ (Wa kalimatuhu): और उसका कलिमा (शब्द)।

  • أَلْقَاهَا (Alqāhā): उसने डाला उसे।

  • إِلَىٰ (Ilā): की ओर।

  • مَرْيَمَ (Maryama): मरयम के।

  • وَرُوحٌ (Wa rūḥun): और एक रूह (आत्मा)।

  • مِّنْهُ (Minhu): उसकी ओर से।

  • فَآمِنُوا (Fa āminū): तो ईमान लाओ।

  • بِاللَّهِ (Billāhi): अल्लाह पर।

  • وَرُسُلِهِ (Wa rusulihi): और उसके रसूलों पर।

  • وَلَا تَقُولُوا (Wa lā taqūlū): और न कहो।

  • ثَلَاثَةٌ (Thalāthatun): तीन।

  • انتَهُوا (Intahū): बंद कर दो।

  • خَيْرًا (Khayran): भलाई है।

  • لَّكُمْ (Lakum): तुम्हारे लिए।

  • إِنَّمَا (Innamā): बस, केवल।

  • اللَّهُ (Allāhu): अल्लाह।

  • إِلَٰهٌ (Ilāhun): इलाह (पूज्य)।

  • وَاحِدٌ (Wāḥidun): एक है।

  • سُبْحَانَهُ (Subḥānahu): वह पवित्र है।

  • أَن (An): इस बात से कि।

  • يَكُونَ (Yakūna): हो।

  • لَهُ (Lahu): उसके लिए।

  • وَلَدٌ (Waladun): संतान।

  • لَّهُ (Lahu): उसका है।

  • مَا (Mā): जो कुछ।

  • فِي (Fī): में।

  • السَّمَاوَاتِ (As-samāwāti): आसमानों में।

  • وَمَا (Wa mā): और जो कुछ।

  • فِي (Fī): में।

  • الْأَرْضِ (Al-arḍi): ज़मीन में।

  • وَكَفَىٰ (Wa kafā): और काफी है।

  • بِاللَّهِ (Billāhi): अल्लाह।

  • وَكِيلًا (Wakīlan): कार्यवाहक (संरक्षक) के रूप में।

(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:

यह आयत विशेष रूप से अहले-किताब (ईसाइयों) को संबोधित करती है और उनकी मुख्य धार्मिक मान्यता - त्रित्व (Trinity) और हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) को अल्लाह का पुत्र मानने - का स्पष्ट खंडन करती है। यह उनकी गलतफहमी को दूर करते हुए हज़रत ईसा की सही हैसियत बताती है।

आयत का भावार्थ: "ऐ अहले-किताब! अपने दीन में हद से न बढ़ो और अल्लाह के विषय में सत्य के अलावा कुछ न कहो। मसीह ईसा बिन मरयम केवल अल्लाह के रसूल और उसका कलिमा (शब्द) हैं, जिसे उसने मरयम की ओर डाला और उसकी ओर से एक रूह हैं। अतः अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और 'तीन' न कहो। (इस बात से) बाज आ जाओ, यही तुम्हारे लिए अच्छा है। अल्लाह केवल एक ही इलाह (पूज्य) है। वह इससे पवित्र है कि उसकी कोई संतान हो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है और अल्लाह कार्यवाहक (संरक्षक) के रूप में पर्याप्त है।"

(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):

यह आयत तीन मुख्य बिंदुओं पर जोर देती है:

1. ग़ुलू (अतिशयोक्ति) से मनाही: "ला तग़लू फी दीनिकुम"

  • ईसाइयों ने हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम में हद पार कर दी। एक पैगम्बर का सम्मान करने की जगह, उन्हें अल्लाह का बेटा और खुदा का दर्जा दे दिया। यह आयत कहती है कि धर्म में इतनी अतिशयोक्ति न करो।

2. हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) की सही हैसियत:

  • "रसूलुल्लाह": वह अल्लाह के भेजे हुए एक पैगम्बर हैं।

  • "कलिमतुहु": वह अल्लाह का "कलिमा" (शब्द) हैं। इसका मतलब है कि अल्लाह ने जब कहा "हो जा", तो वह 'कुन' (हो जा) के शब्द से पैदा हुए, बिना किसी पिता के।

  • "रूहुम मिन्हु": वह अल्लाह की तरफ से एक "रूह" (आत्मा) हैं। यानी अल्लाह ने उन्हें अपनी विशेष रहमत और ताक़त से पैदा किया। इसका मतलब यह नहीं है कि अल्लाह का कोई अंग है।

3. तौहीद (एकेश्वरवाद) की स्पष्ट घोषणा:

  • "ला तकूलू थलाथा": "तीन (खुदा) न कहो।" यह सीधे ईसाइयों के त्रित्व (Trinity - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा) के सिद्धांत का खंडन है।

  • "इन्नमल्लाहु इलाहुव वाहिद": "अल्लाह केवल एक ही पूज्य है।"

  • "सुब्हानहु अय्यकूना लहु वालद": "वह पवित्र है इस बात से कि उसकी कोई संतान हो।" अल्लाह न तो जन्म देता है और न ही उसे जन्म दिया गया है। वह हर कमी से पाक है।

(5) शिक्षा और सबक (Lesson):

  1. धर्म में संतुलन: किसी भी धार्मिक शख्सियत के बारे में इतना आगे नहीं बढ़ना चाहिए कि उसे खुदा का दर्जा दे दो। यह शिर्क (अल्लाह के साथ साझा ठहराना) है।

  2. हज़रत ईसा का सम्मान: एक मुसलमान हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) का बहुत सम्मान करता है, लेकिन उन्हें अल्लाह का बेटा या खुदा नहीं मानता।

  3. तौहीद की क्लियरिटी: इस्लाम का सबसे बुनियादी सिद्धांत अल्लाह की एकता और उसकी संतान होने से पवित्रता है।

(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) में: यह आयत ईसाइयों के साथ theological debate (धार्मिक बहस) का आधार थी और उनकी गलतफहमी को दूर करने का प्रयास थी।

  • समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।

    • ईसाई-मुस्लिम संवाद: आज भी ईसाई-मुस्लिम संवाद में सबसे बड़ा मुद्दा त्रित्व और हज़रत ईसा की प्रकृति का है। यह आयत इस्लाम का स्पष्ट रुख बताती है।

    • ग़ुलू से बचाव: आज कुछ मुस्लिम समुदाय भी पैगम्बरों और औलिया के मज़ारों के प्रति "ग़ुलू" (अतिशयोक्ति) का शिकार हो जाते हैं। यह आयत उन सभी के लिए एक चेतावनी है।

    • सच्चाई का संदेश: ईसाई मिशनरीज जब लोगों को गुमराह करते हैं, तो यह आयत उन लोगों के लिए सच्चाई को स्पष्ट करने का काम करती है।

  • भविष्य (Future) में: जब तक ईसाई और मुसलमान इस दुनिया में रहेंगे, यह आयत दोनों के बीच एक मौलिक theological अंतर को चिन्हित करती रहेगी। यह कयामत तक इस्लाम के एकेश्वरवाद की स्पष्ट और अटल घोषणा बनी रहेगी।

निष्कर्ष: यह आयत इस्लाम की ईश्वर-संकल्पना की सुंदरता और स्पष्टता को दर्शाती है। यह अतिशयोक्ति से रोकती है, पैगम्बरों की सही हैसियत बताती है और अल्लाह की एकता उसकी संतान होने से पवित्रता का दृढ़ता से प्रचार करती है। यह आयत हर जमाने में मानवजाति को सीधे और सही रास्ते की ओर बुलाती रहेगी।