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कुरआन की आयत 4:170 की पूर्ण व्याख्या

 (1) पूरी आयत अरबी में:

"يَا أَيُّهَا النَّاسُ قَدْ جَاءَكُمُ الرَّسُولُ بِالْحَقِّ مِن رَّبِّكُمْ فَآمِنُوا خَيْرًا لَّكُمْ ۚ وَإِن تَكْفُرُوا فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا"

(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):

  • يَا أَيُّهَا (Yā ayyuhā): हे ऐसे लोगों!

  • النَّاسُ (An-nāsu): लोगों (इंसानों)!

  • قَدْ (Qad): निश्चित रूप से।

  • جَاءَكُمُ (Jā'akum): आ चुका है तुम्हारे पास।

  • الرَّسُولُ (Ar-rasūlu): रसूल (पैग़म्बर)।

  • بِالْحَقِّ (Bil-ḥaqqi): सत्य के साथ।

  • مِن (Min): से।

  • رَّبِّكُمْ (Rabbikum): तुम्हारे पालनहार।

  • فَآمِنُوا (Fa āminū): तो ईमान ले आओ।

  • خَيْرًا (Khayran): भलाई है।

  • لَّكُمْ (Lakum): तुम्हारे लिए।

  • وَإِن (Wa in): और यदि।

  • تَكْفُرُوا (Takfurū): तुम कुफ्र करोगे (इनकार करोगे)।

  • فَإِنَّ (Fa-inna): तो निश्चित रूप से।

  • لِلَّهِ (Lillāhi): अल्लाह का है।

  • مَا (Mā): जो कुछ।

  • فِي (Fī): में।

  • السَّمَاوَاتِ (As-samāwāti): आसमानों में।

  • وَالْأَرْضِ (Wal-arḍi): और ज़मीन में।

  • وَكَانَ (Wa kāna): और है (हमेशा से)।

  • اللَّهُ (Allāhu): अल्लाह।

  • عَلِيمًا (ʿAlīman): सब कुछ जानने वाला।

  • حَكِيمًا (Ḥakīman): अत्यंत बुद्धिमान।

(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:

यह आयत पिछली कई आयतों में चल रही कठोर चेतावनियों के बाद एक स्पष्ट, सीधा और दयालु आह्वान है। यह मानवजाति के लिए एक सार्वभौमिक संदेश है, जो उन्हें सत्य स्वीकार करने के लाभ और उसके इनकार के नुकसान से अवगत कराता है।

आयत का भावार्थ: "ऐ लोगों! तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से सत्य लेकर रसूल आ चुका है, अतः तुम ईमान ले आओ, यही तुम्हारे लिए बेहतर है। और यदि तुम इनकार करोगे तो (जान लो कि) आकाशों और पृथ्वी में जो कुछ है, वह अल्लाह ही का है। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, तत्वदर्शी है।"

(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):

यह आयत तार्किक, व्यावहारिक और दयालु तरीके से समझाती है।

  • सार्वभौमिक आह्वान: "या अय्युहन्नास" - यह संबोधन सिर्फ मुसलमानों या अहले-किताब के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवजाति के लिए है।

  • स्पष्ट सत्य: "कद जाआकुमुर रसूल बिल्हक्कि मिन रब्बिकुम"

    • रसूल आ चुका है: यह एक पूर्ण और निर्विवाद तथ्य है।

    • सत्य के साथ: वह कोई अनुमान या अटकल नहीं, बल्कि "हक़" (निर्विवाद सत्य) लेकर आए हैं।

    • तुम्हारे रब की ओर से: इस सत्य का स्रोत वही है जो तुम्हारा पालनहार और रचयिता है।

  • व्यावहारिक सलाह: "फा आमिनू खैरल लकुम"

    • "तो ईमान ले आओ" - यह एक तार्किक निष्कर्ष है। जब सत्य आ गया है तो स्वाभाविक प्रतिक्रिया उसे स्वीकार करना है।

    • "यही तुम्हारे लिए बेहतर है" - यह एक दयालु चेतावनी है। ईमान लाना पैगम्बर का कोई एहसान नहीं, बल्कि इंसान की अपनी भलाई और सफलता है। इसका फायदा स्वयं इंसान को होगा।

  • इनकार की स्थिति में: "व इन तकफुरू..."

    • अगर तुम इनकार करते हो, तो इससे अल्लाह को कोई नुकसान नहीं होगा। "आकाशों और पृथ्वी में जो कुछ है, वह अल्लाह ही का है।" तुम्हारा इनकार उसकी बादशाहत में कोई कमी नहीं ला सकता।

    • नुकसान सिर्फ और सिर्फ इंसान का अपना होगा।

  • अल्लाह की सिफात: "व कानल्लाहु अलीमन हकीमा"

    • अलीम (सब कुछ जानने वाला): वह तुम्हारे इनकार और ईमान दोनों को जानता है।

    • हकीम (अत्यंत बुद्धिमान): उसने तुम्हें जबरदस्ती ईमान के लिए मजबूर नहीं किया, बल्कि तुम्हें चुनाव की आज़ादी दी और फिर तुम्हें समझाया। यही उसकी हिकमत (बुद्धिमत्ता) है।

(5) शिक्षा और सबक (Lesson):

  1. ईमान तुम्हारी अपनी ज़रूरत है: ईमान लाना पैगम्बर या अल्लाह की कोई मदद नहीं, बल्कि इंसान की अपनी आध्यात्मिक और शाश्वत सफलता की कुंजी है।

  2. चुनाव की आज़ादी और जिम्मेदारी: अल्लाह ने हमें जबरदस्ती नहीं की, बल्कि सही और गलत रास्ते को स्पष्ट कर दिया। अब चुनाव हमारा है, और उसकी जिम्मेदारी भी।

  3. अल्लाह की महानता: हमारा इनकार अल्लाह की महानता में कोई कमी नहीं ला सकता। वह सबका मालिक है और बेपरवाह है।

(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) में: यह आयत उस समय के सभी लोगों - अरब के मुश्रिकों, यहूदियों, ईसाइयों - के लिए एक सार्वभौमिक संदेश थी, जो उन्हें तर्क और दया के साथ इस्लाम की ओर बुलाती थी।

  • समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।

    • तार्किक दावत: आज जब लोग इस्लाम के बारे में गलतफहमियां रखते हैं, यह आयत दावत-ए-इस्लाम का एक बहुत ही सुंदर और तार्किक तरीका सिखाती है। यह डराने के बजाय समझाती है कि ईमान "तुम्हारे अपने फायदे" के लिए है।

    • व्यक्तिग्र पसंद: आज का इंसान व्यक्तिगत स्वतंत्रता और फायदे की बात समझता है। यह आयत ठीक उसी भाषा में बात करती है - "खैरल लकुम" (तुम्हारे लिए भलाई)।

    • अल्लाह पर भरोसा: दावत देने वालों के लिए यह आयत सिखाती है कि अगर लोग नहीं मानते तो निराश न हों, क्योंकि सब कुछ अल्लाह के हाथ में है।

  • भविष्य (Future) में: जब तक दुनिया में इंसान रहेगा, यह आयत एक स्थायी और सार्वभौमिक संदेश बनी रहेगी। यह भविष्य की हर पीढ़ी को यह याद दिलाती रहेगी कि:

    • सत्य आ चुका है।

    • उसे स्वीकार करना तुम्हारे अपने हित में है।

    • तुम्हारा इनकार अल्लाह की महानता को प्रभावित नहीं कर सकता।

निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत अल्लाह के दयालु और बुद्धिमान स्वभाव को दर्शाती है। यह डराने-धमकाने के बजाय प्यार और तर्क से समझाती है। यह इंसान को उसकी अक्ल और फितरत (प्रकृति) से अपील करती है। यह आयत हमें सिखाती है कि इस्लाम का रास्ता हमारे अपने फायदे का रास्ता है और इसे अपनाना हमारी अपनी सफलता है। यह संदेश हर युग और हर समाज के लिए उतना ही प्रासंगिक और मार्गदर्शक है।