(1) पूरी आयत अरबी में:
"إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا"
(2) आयत के शब्दों के अर्थ (Word-by-Word Meaning):
إِلَّا (Illā): सिवाय।
طَرِيقَ (Ṭarīqa): रास्ते के।
جَهَنَّمَ (Jahannama): जहन्नुम (नरक) के।
خَالِدِينَ (Khālidīna): सदैव रहने वाले।
فِيهَا (Fīhā): उसमें।
أَبَدًا (Abadan): हमेशा के लिए।
وَكَانَ (Wa Kāna): और है (हमेशा से)।
ذَٰلِكَ (Dhālika): वह (काम)।
عَلَى (Alā): पर।
اللَّهِ (Allāhi): अल्लाह के लिए।
يَسِيرًا (Yasīran): आसान।
(3) आयत का पूरा अर्थ और संदर्भ:
यह आयत पिछली दो आयतों (167 और 168) का अंतिम और भयावह निष्कर्ष है। आयत 167 में कहा गया कि काफिर भटक गए हैं, और आयत 168 में कहा गया कि अल्लाह उन्हें माफ नहीं करेगा और न ही सही रास्ता दिखाएगा। अब यह आयत बताती है कि आखिर उनका "रास्ता" क्या है और उनका अंतिम ठिकाना कहाँ होगा।
आयत का भावार्थ: "(उनके लिए कोई रास्ता नहीं) सिवाय जहन्नुम के रास्ते के, जिसमें वे सदैव रहेंगे। और अल्लाह के लिए यह (उन्हें दण्ड देना) बहुत आसान है।"
(4) विस्तृत व्याख्या और शिक्षा (Tafseer):
यह आयत संक्षिप्त है लेकिन इसका संदेश बहुत गहरा और डरावना है।
"इल्ला तरीका जहन्नम" (सिवाय जहन्नुम के रास्ते के):
पिछली आयत में कहा गया था कि अल्लाह उन्हें कोई रास्ता नहीं दिखाएगा। इस आयत में उसी बात को स्पष्ट किया जा रहा है।
उनके लिए कोई सही रास्ता नहीं है, उनका एकमात्र रास्ता वह है जो सीधे जहन्नुम की ओर जाता है। उनका हर कदम, उनकी हर सोच और उनका हर कर्म उन्हें जहन्नुम के और करीब ले जाता है।
"खालिदीना फीहा अबदा" (जिसमें वे सदैव रहेंगे):
यह कुरआन की सबसे स्पष्ट आयतों में से एक है जो बताती है कि जहन्नुम में जाने वाले काफिर हमेशा के लिए रहेंगे।
"खालिदीन" और "अबदा" - ये दोनों शब्द अनंत काल, सदैव और हमेशा के लिए रहने पर जोर देते हैं। यह कोई अस्थायी सजा नहीं है।
यह उनके अपने चुनाव का नतीजा है। उन्होंने अल्लाह और आखिरत के दिन से इनकार किया, इसलिए उनका ठिकाना एक ऐसी जगह है जहाँ से कोई वापसी नहीं है।
"व कान ज़ालिका अलल्लाहि यसीरा" (और अल्लाह के लिए यह बहुत आसान है):
यह वाक्य अल्लाह की पूर्ण शक्ति और सामर्थ्य को दर्शाता है।
जहन्नुम को बनाना, उसे भरना और हमेशा के लिए सजा देना - अल्लाह के लिए यह सब एक आसान काम है। उसे इसके लिए कोई मेहनत या संघर्ष नहीं करना पड़ता।
यह इस बात का भी संकेत है कि अल्लाह की शक्ति इतनी विशाल है कि कोई भी उसकी सजा से बच नहीं सकता।
(5) शिक्षा और सबक (Lesson):
कुफ्र का भयानक परिणाम: कुफ्र सिर्फ एक "अलग विचारधारा" नहीं है, बल्कि एक ऐसा अपराध है जिसका अंतिम परिणाम जहन्नुम में अनंत काल तक रहना है।
आखिरत पर दृढ़ विश्वास: एक मुसलमान को आखिरत, जन्नत और जहन्नुम पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। यह आयत जहन्नुम की वास्तविकता और उसकी भयावहता को स्पष्ट करती है।
अल्लाह की शक्ति का एहसास: अल्लाह की शक्ति के सामने इंसान बहुत छोटा और लाचार है। उसकी सजा से कोई नहीं बच सकता।
(6) अतीत, वर्तमान और भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) में: यह आयत उन काफिरों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी थी जो पैगम्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के खिलाफ जिद पर अड़े हुए थे। यह उन्हें उनके भयानक भविष्य से आगाह करती थी।
समकालीन वर्तमान (Contemporary Present) में: आज यह आयत बेहद प्रासंगिक है।
धर्मनिरपेक्षता और उदासीनता: आज का समाज अक्सर कहता है, "सब अपना-अपना रास्ता है," या "अल्लाह तो रहमत वाला है, वह सबको माफ कर देगा।" यह आयत ऐसी गलतफहमियों को दूर करती है और बताती है कि अल्लाह न्याय भी करेगा और कुफ्र की सजा जहन्नुम है।
ईमान की अहमियत: यह आयत हर इंसान के सामने स्पष्ट कर देती है कि ईमान और कुफ्र के बीच का फैसला सिर्फ दुनिया का नहीं, बल्कि आखिरत का फैसला है। यह ईमान की अहमियत को रेखांकित करती है।
दावत-ए-इस्लाम की जिम्मेदारी: इस आयत को पढ़कर हर मुसलमान की जिम्मेदारी बनती है कि वह लोगों तक इस चेतावनी को पहुंचाए, ताकि कोई भी अज्ञानता में न रहे।
भविष्य (Future) में: जब तक दुनिया रहेगी, लोग ईमान और कुफ्र के बीच चुनाव करते रहेंगे। यह आयत कयामत तक सभी मनुष्यों के लिए एक स्थायी चेतावनी बनी रहेगी। यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि कुफ्र का रास्ता कोई साधारण रास्ता नहीं, बल्कि जहन्नुम का रास्ता है, और यह एक स्थायी और भयानक निवास स्थान है। यह आयत लोगों को सचेत करती रहेगी कि वे इस भयानक परिणाम से बचने के लिए ईमान का रास्ता चुनें।
निष्कर्ष: सूरह अन-निसा की यह आयत मानव जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे - ईमान और कुफ्र के परिणाम - को अंतिम रूप से स्पष्ट कर देती है। यह आयत हमें डराती है ताकि हम सचेत हो सकें। यह हमें बताती है कि कुफ्र का चुनाव केवल दुनिया का एक फैसला नहीं है, बल्कि आखिरत का एक ऐसा फैसला है जिसका परिणाम अनंत काल तक भुगतना पड़ेगा। यह आयत हमें अल्लाह की शक्ति का एहसास कराती है और हमें ईमान की ओर लौटने का आह्वान करती है।