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क़ुरआन की आयत 2:169 की पूर्ण व्याख्या

 यह आयत पिछली आयत (2:168) में दी गई चेतावनी को और स्पष्ट करती है। जहां आयत 168 में शैतान के कदमों पर न चलने का सामान्य आदेश था, वहीं आयत 169 में शैतान की उन विशेष हरकतों को बताया गया है जिसके through वह इंसान को बहकाता है।

1. पूरी आयत अरबी में:

إِنَّمَا يَأْمُرُكُمْ بِالسُّوءِ وَالْفَحْشَاءِ وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ

2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):

  • إِنَّمَا (इन्नमा) : बस वह (शैतान) तो

  • يَأْمُرُكُمْ (या'मुरुकुम) : तुम्हें आदेश देता है

  • بِالسُّوءِ (बिस्सूइ) : बुराई का

  • وَالْفَحْشَاءِ (वल फह्शा) : और बदकारी/अश्लीलता का

  • وَأَنْ (व अन) : और (यह) कि

  • تَقُولُوا (तक़ूलू) : तुम कहो

  • عَلَى اللَّهِ (अलल्लाह) : अल्लाह पर

  • مَا (मा) : वह (बात)

  • لَا تَعْلَمُونَ (ला तअ'लमून) : जिसे तुम नहीं जानते


3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:

अर्थ: "वह (शैतान) तो तुम्हें सिर्फ बुराई, बदकारी (अश्लीलता) ही का आदेश देता है और यह कि तुम अल्लाह पर ऐसी बात थोपो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं है।"

व्याख्या:

यह आयत शैतान के मकसद और तरीके को बिल्कुल स्पष्ट कर देती है। इसे तीन भागों में समझा जा सकता है:

1. बुराई का आदेश (بِالسُّوءِ):

  • "अस-सू'" एक व्यापक शब्द है जिसमें हर प्रकार की बुराई, पाप और नैतिक रूप से गलत काम आते हैं। इसमें झूठ बोलना, धोखा देना, ज़ुल्म करना, चोरी करना, किसी को नुकसान पहुँचाने की सोचना आदि शामिल हैं। यह शैतान का सबसे पहला और सामान्य हथियार है। वह इंसान के दिल में बुरे विचार पैदा करता है और उसे छोटे-छोटे पापों के लिए उकसाता है।

2. अश्लीलता/बदकारी का आदेश (وَالْفَحْشَاءِ):

  • "अल-फह्शा" "अस-सू'" से भी आगे की चीज़ है। यह वह घृणित और अश्लील कर्म हैं जिन्हें समाज भी निंदा की नज़र से देखता है। इसमें खुल्लम-खुल्ला बुराई करना, व्यभिचार, बलात्कार, अश्लील भाषा का प्रयोग, नग्नता और हर वह काम शामिल है जो सार्वजनिक रूप से शर्मनाक हो। शैतान इंसान की हया (शर्म) को खत्म करके उसे इस हद तक ले जाना चाहता है।

3. अल्लाह पर झूठ थोपना (وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ):

  • यह शैतान का सबसे खतरनाक और सबसे बड़ा अपराध है। इसमें निम्नलिखित चीज़ें आती हैं:

    • अल्लाह के नाम पर झूठी बातें गढ़ना: जैसे- हलाल चीज़ों को हराम और हराम चीज़ों को हलाल ठहराना।

    • धर्म में नई-नई बिद्अतें ( innovations ) पैदा करना और उन्हें अल्लाह का दीन बताना।

    • अल्लाह के बारे में गलत धारणाएं बनाना, जैसे उसके लिए बेटा-बेटी मानना, यह समझना कि वह माफ नहीं करेगा, या उस पर तरह-तरह की झूठी टिप्पणियाँ करना।

    • दीन के नाम पर ऐसी बातें फैलाना जिसका कुरआन और सुन्नत में कोई आधार नहीं है।

इस आयत से स्पष्ट है कि शैतान का लक्ष्य सिर्फ इंसान को नैतिक पतन की ओर ले जाना ही नहीं, बल्कि उसके आध्यात्मिक और बौद्धिक पतन की ओर ले जाना भी है। वह चाहता है कि इंसान सच्चे दीन से भटक जाए और झूठे धर्मों में उलझा रहे।


4. शिक्षा और सबक (Lesson):

  • शैतान का वास्तविक चेहरा: शैतान इंसान का भला चाहने वाला नहीं है। उसका एकमात्र लक्ष्य इंसान को बर्बाद करना है और वह इसके लिए हर संभव हथियार का इस्तेमाल करता है।

  • ज्ञान का महत्व: अल्लाह पर वही बात कहो जिसका तुम्हें ज्ञान हो। बिना ज्ञान के धार्मिक बातें करना या फतवे देना एक बहुत बड़ा पाप है। इससे बचने के लिए धार्मिक ज्ञान हासिल करना जरूरी है।

  • बुराई के प्रति सजगता: जब भी दिल में कोई बुरा ख्याल आए या किसी बुरे काम के लिए दिल उकसाए, तो तुरंत समझ जाना चाहिए कि यह शैतान का काम है और उससे बचना चाहिए।

  • धार्मिक सुधार की जिम्मेदारी: मुसलमानों का यह दायित्व है कि वे अपने दीन की सही समझ रखें और उसमें किसी भी प्रकार की मनघड़ंत बातों के घुसपैठ का विरोध करें।


5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) के लिए:

    • मक्का के मूर्तिपूजक: वे अल्लाह के बारे में झूठ बोलते थे कि उसकी बेटियाँ हैं और फरिश्ते उसकी बेटियाँ हैं। यह इस आयत की सीधी अवहेलना थी।

    • यहूदी और ईसाई: उन्होंने अपनी किताबों में मनगढ़ंत बातें डालकर अल्लाह पर झूठ थोपा।

  • वर्तमान (Present) के लिए:

    • बिद्अतें (धर्म में नई बातें): आज भी कई मुस्लिम समुदायों में ऐसी प्रथाएं और रिवाज प्रचलित हैं जिनका इस्लाम में कोई आधार नहीं है, लेकिन उन्हें अल्लाह का हुक्म बताकर पेश किया जाता है (जैसे कुछ मन्नतें, रस्में, मज़ारों पर जाना आदि)। यह स्पष्ट रूप से "अल्लाह पर झूठ बोलना" है।

    • नैतिक पतन: आज का मीडिया, सिनेमा और इंटरनेट "अस-सू'" और "अल-फह्शा" को बढ़ावा दे रहा है। अश्लीलता, झूठ और बुराई आम हो गई है, जो शैतान के आदेश का पालन है।

    • गलत फतवे: बिना ज्ञान के लोग धार्मिक मामलों में गलत बातें फैलाते हैं, जो इस आयत के अंतर्गत आता है।

    • आतंकवाद: आतंकवादी गुट निर्दोष लोगों की हत्या को "जिहाद" बताकर अल्लाह पर सबसे बड़ा झूठ थोपते हैं।

  • भविष्य (Future) के लिए:

    • तकनीकी अश्लीलता: भविष्य में VR (Virtual Reality) और AI के जरिए शैतान "अल-फह्शा" (अश्लीलता) को और भी भयानक और यथार्थिक रूप में पेश कर सकता है।

    • धार्मिक भ्रम: AI के जरिए धार्मिक जानकारी का गलत प्रसार हो सकता है। लोग AI से पूछकर गलत फतवे ले सकते हैं, जो "अल्लाह पर बिना ज्ञान के बोलना" होगा।

    • शाश्वत चेतावनी: जब तक इंसान रहेगा, शैतान उसे इन्हीं तीन रास्तों से बहकाने की कोशिश करेगा – बुराई, अश्लीलता और धार्मिक झूठ। यह आयत हर युग के इंसान को यह चेतावनी देती रहेगी कि शैतान का असली मकसद क्या है और उससे कैसे बचा जाए।