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क़ुरआन की आयत 2:171 की पूर्ण व्याख्या

यह आयत पिछली आयत (2:170) में वर्णित अंधानुकरण की मानसिकता को एक बहुत ही सटीक और जीवंत उदाहरण देकर समझाती है। यह दर्शाती है कि जो लोग सच्चाई को सुनने और समझने के लिए तैयार नहीं हैं, उन्हें दावत देने का क्या परिणाम होता है।

1. पूरी आयत अरबी में:

وَمَثَلُ الَّذِينَ كَفَرُوا كَمَثَلِ الَّذِي يَنْعِقُ بِمَا لَا يَسْمَعُ إِلَّا دُعَاءً وَنِدَاءً ۚ صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَعْقِلُونَ

2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَمَثَلُ (व मसलु) : और (उनका) उदाहरण है

  • الَّذِينَ كَفَرُوا (अल्लज़ीना कफरू) : जिन लोगों ने इनकार किया

  • كَمَثَلِ (का मसली) : उस उदाहरण के समान

  • الَّذِي (अल्लज़ी) : जो (व्यक्ति)

  • يَنْعِقُ (यनइक़ु) : आवाज़ करता है (चराने वाला)

  • بِمَا (बिमा) : उस (चीज़) से

  • لَا يَسْمَعُ (ला यसमा) : सुनता नहीं है

  • إِلَّا (इल्ला) : सिवाय

  • دُعَاءً (दुआअन) : पुकार/आवाज के

  • وَنِدَاءً (व निदा'अन) : और बुलाहट के

  • صُمٌّ (सुम्मुन) : बहरे हैं

  • بُكْمٌ (बुक्मुन) : गूंगे हैं

  • عُمْيٌ (उम्युन) : अंधे हैं

  • فَهُمْ (फ़ा हुम) : तो वे

  • لَا يَعْقِلُونَ (ला यअक़िलून) : समझते नहीं हैं


3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:

अर्थ: "और जिन लोगों ने इनकार किया है, उनकी मिसाल ऐसी है जैसे कोई (चरवाहा) उस (पशु) को आवाज़ दे रहा हो जो आवाज़ और पुकार के सिवा कुछ सुनता ही नहीं। (असल में) वे बहरे हैं, गूंगे हैं, अंधे हैं, इसलिए वे समझते नहीं हैं।"

व्याख्या:

यह आयत काफिरों (सत्य को ठुकराने वालों) की हालत को एक शक्तिशाली दृष्टांत (Analogy) के माध्यम से समझाती है:

1. दृष्टांत (The Analogy): "कमसलिल्लज़ी यनइक़ु बिमा ला यसमा उ इल्ला दुआअन व निदा'अन"

  • चरवाहा (यनइक़ु): यह पैगंबर (स.अ.व.) और सच्चाई के दावत देने वालों का प्रतीक है, जो लोगों को अल्लाह के रास्ते की तरफ बुला रहे हैं।

  • बहरा पशु (बिमा ला यसमा...): यह उन लोगों का प्रतीक है जो सत्य को ठुकरा चुके हैं। जिस तरह एक पशु चरवाहे की आवाज को सिर्फ एक 'आवाज' के रूप में सुनता है, उसके अर्थ और महत्व को नहीं समझता, ठीक उसी तरह ये लोग दावत को सिर्फ एक 'ध्वनि' के रूप में सुनते हैं। उनके दिल और दिमाग पर इसका कोई असर नहीं होता। वे उसके ज्ञान, तर्क और हिकमत को नहीं समझ पाते।

2. वास्तविक अक्षमता (The Real Disability): "सुम्मुन बुक्मुन उम्युन"

  • आयत स्पष्ट करती है कि उनकी यह असमर्थता शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और बौद्धिक है।

    • बहरे (सुम्मुन): वे सत्य की बात सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। उनके कानों में आध्यात्मिक बहरापन है।

    • गूंगे (बुक्मुन): वे सत्य को स्वीकार करके उसका प्रचार करने या अल्लाह की तारीफ करने में असमर्थ हैं। उनकी जुबान हक बात कहने से रुकी हुई है।

    • अंधे (उम्युन): वे ब्रह्मांड में बिखरी अल्लाह की निशानियों (आयात) और सत्य के प्रमाणों को देख नहीं पाते। उनकी आँखों पर अंधेपन का पर्दा पड़ा हुआ है।

3. अंतिम निष्कर्ष (The Final Conclusion): "फ़ा हुम ला यअक़िलून"

  • इन सबका नतीजा यह निकलता है कि "वे समझते ही नहीं हैं।" उनकी बुद्धि और अक्ल काम नहीं कर रही। उन्होंने सोच-विचार और तर्क की शक्ति को जब्त कर लिया है। यह उनकी अपनी जिद और हठधर्मी का परिणाम है।


4. शिक्षा और सबक (Lesson):

  • दावत का तरीका: इस आयत से दावत देने वालों को शिक्षा मिलती है कि जो लोग सुनने और समझने को तैयार नहीं हैं, उन्हें समझाने में अत्यधिक ऊर्जा व्यर्थ नहीं करनी चाहिए। ऐसे लोगों को छोड़कर दूसरों की ओर ध्यान देना चाहिए।

  • सुनने का महत्व: ईमान लाने के लिए सुनना और स्वीकार करने का दिल रखना पहली शर्त है। जिसने सुनना बंद कर दिया, वह हिदायत नहीं पा सकता।

  • आंतरिक अक्षमता खतरनाक है: शारीरिक अपंगता से ज्यादा खतरनाक आध्यात्मिक अपंगता है। बाहर से स्वस्थ व्यक्ति भी अगर अंदर से बहरा, गूंगा और अंधा हो, तो वह सच्चाई से वंचित रह जाता है।

  • अक्ल का इस्तेमाल जरूरी: अल्लाह ने इंसान को अक्ल दी है ताकि वह सोचे-समझे और सही रास्ता चुने। इसका इस्तेमाल न करना अपने आप को विनाश की ओर ढकेलना है।


5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) के लिए:

    • मक्का के नेतृत्वकर्ता: अबू जहल, अबू लहब जैसे लोग पैगंबर (स.अ.व.) की बातों को सुनते तो थे, लेकिन उनके दिलों पर जिद और अहंकार का पर्दा पड़ा हुआ था। वे इस आयत में बताए गए "बहरे पशु" की तरह थे जो आवाज सुनते थे पर समझते नहीं थे।

  • वर्तमान (Present) के लिए:

    • धार्मिक अंधानुकरण: जब कोई व्यक्ति अपने संप्रदाय या गुरु की बात को कुरआन और हदीस के सबूतों के बावजूद नहीं छोड़ता, तो वह इसी श्रेणी में आता है। वह सच्चाई सुनकर भी उसे स्वीकार नहीं करता।

    • भौतिकवादी दृष्टिकोण: आज के भौतिकवादी युग में कई लोग अल्लाह के अस्तित्व, प्रार्थना के महत्व या आखिरत के जीवन पर चर्चा सुनना ही नहीं चाहते। उनके लिए यह सब एक 'बेकार की आवाज' है। वे इसके प्रमाणों को 'देख' नहीं पाते।

    • राजनीतिक और सामाजिक जिद: लोग किसी राजनीतिक विचारधारा या सामाजिक रूढ़िवादिता से इस कदर जकड़े रहते हैं कि उसके खिलाफ कोई तर्क उन्हें समझ नहीं आता। वे सच्चाई के प्रति 'बहरे' और 'अंधे' बन जाते हैं।

    • सोशल मीडिया इको चैंबर: लोग सिर्फ उन्हीं लोगों की बात सुनते हैं जो उनके अपने विचारों से मेल खाती है। विपरीत विचारों को वे 'सुनते' तो हैं, लेकिन उन पर 'विचार' नहीं करते।

  • भविष्य (Future) के लिए:

    • AI और सूचना का युग: भविष्य में AI और अल्गोरिदम लोगों को उनकी पसंद की जानकारी ही दिखाएंगे, जिससे उनकी 'आध्यात्मिक बहरापन' और बढ़ सकता है। लोग और भी ज्यादा अपने ही 'इको चैंबर' में कैद हो जाएंगे और दूसरे विचारों के प्रति 'बहरे' बन सकते हैं।

    • शाश्वत सत्य: जब तक इंसान रहेगा, सत्य और असत्य का संघर्ष रहेगा। यह आयत हर युग के दावत देने वालों को बताती रहेगी कि उन्हें किस प्रकार के लोगों से सामना होगा और यह हर युग के 'अस्वीकार करने वालों' की वास्तविक तस्वीर पेश करती रहेगी। यह एक सदाबहार सत्य है कि जिसने सुनने और समझने से इनकार कर दिया, उसकी हालत एक बहरे पशु के समान हो जाती है।