यह आयत एक महत्वपूर्ण मोड़ है। पिछली कुछ आयतों में उन लोगों की नकारात्मक मानसिकता का वर्णन किया गया था जो सत्य को ठुकराते हैं (आयत 169-171)। अब अल्लाह तआला सीधे ईमान वालों को संबोधित करते हुए एक सकारात्मक और स्पष्ट आदेश दे रहे हैं, जो उनके ईमान की परीक्षा और उनके लिए कृतज्ञता (शुक्र) जताने का एक Practical तरीका है।
1. पूरी आयत अरबी में:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَاشْكُرُوا لِلَّهِ إِنْ كُنْتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ
2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):
يَا أَيُّهَا (या अय्युहा) : हे!
الَّذِينَ آمَنُوا (अल्लज़ीना आमनू) : जो लोग ईमान लाए
كُلُوا (कुलू) : खाओ
مِنْ (मिन) : से
طَيِّبَاتِ (तैय्यिबात) : पवित्र/शुद्ध/अच्छी चीज़ों में से
مَا (मा) : जिस (रोज़ी) को
رَزَقْنَاكُمْ (रज़क़नाकुम) : हमने तुम्हें दी है
وَاشْكُرُوا (वशकुरू) : और कृतज्ञता (शुक्र) अदा करो
لِلَّهِ (लिल्लाह) : अल्लाह का
إِنْ (इन) : यदि
كُنْتُمْ (कुंतुम) : तुम हो
إِيَّاهُ (इय्याहू) : उसी की
تَعْبُدُونَ (तअ'बुदून) : इबादत करने वाले
3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:
अर्थ: "हे ईमान वालो! जो पवित्र रोज़ी हमने तुम्हें दी है, उसमें से खाओ और अल्लाह का शुक्र अदा करो, यदि तुम सचमुच उसी की इबादत करते हो।"
व्याख्या:
यह आयत ईमान वालों के लिए एक संपूर्ण जीवन-शैली का निर्देश देती है, जिसके तीन मुख्य भाग हैं:
1. संबोधन और अनुमति (The Address and Permission): "या अय्युहल्लज़ीना आमनू कुलू मिन तैय्यिबाति मा रज़क़नाकुम"
संबोधन सीधा और प्यार भरा है – "हे ईमान वालो!" यह आदेश पूरी मानवजाति के लिए नहीं, बल्कि specifically उनके लिए है जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं।
अल्लाह अपने बंदों को अपनी दी हुई रोज़ी से खाने का आदेश दे रहा है। यहाँ "तैय्यिबात" (पवित्र और अच्छी चीज़ें) पर जोर दिया गया है। यह वह सब कुछ है जो हलाल (वैध) होने के साथ-साथ स्वच्छ, स्वस्थ और नेक तरीके से कमाई गई हो।
"मा रज़क़नाकुम" (जो हमने तुम्हें रोज़ी दी) – यह शब्द अहसास दिलाता है कि रोज़ी देने वाला अल्लाह है। हमारी मेहनत只是一个 सबब (कारण) है, रोज़ी देने वाला वास्तव में अल्लाह ही है।
2. कृतज्ञता का आदेश (The Command of Gratitude): "वशकुरू लिल्लाह"
सिर्फ खाना ही काफी नहीं है। उस रोज़ी को देने वाले का शुक्र (धन्यवाद) अदा करना भी जरूरी है। शुक्र सिर्फ जुबान से "अल्हम्दुलिल्लाह" कहने का नाम नहीं है। इसका असली मतलब है:
दिल से: अल्लाह की नेमतों को महसूस करना और उसके प्रति कृतज्ञता का भाव रखना।
जुबान से: उसकी तारीफ और हम्द (प्रशंसा) करना।
अमल से: अल्लाह की दी हुई नेमतों को उसी की राह में और उसकी मर्जी के अनुसार इस्तेमाल करना। हलाल खाना, हराम से बचना और अल्लाह की नेमतों का गलत इस्तेमाल न करना भी शुक्र का हिस्सा है।
3. इबादत की शर्त (The Condition of Worship): "इन कुंतुम इय्याहू तअ'बुदून"
आयत का अंत एक बहुत ही गहरी और विचारणीय शर्त के साथ होता है। अल्लाह कहता है कि अगर तुम सचमुच "उसी की इबादत करने वाले हो" तो शुक्र अदा करो।
इस शर्त का मतलब यह है कि शुक्र अदा करना ही असली इबादत का सबूत है। जो व्यक्ति अल्लाह की दी हुई नेमतों पर उसका शुक्र अदा नहीं करता, उसका यह दावा कि "मैं अल्लाह का बंदा हूँ" कमजोर और अधूरा है।
शुक्र और इबादत एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। सच्ची इबादत शुक्र के बिना पूरी नहीं होती, और सच्चा शुक्र इबादत के बिना संभव नहीं है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson):
ईमान एक Practical जीवन-शैली है: ईमान सिर्फ कुछ रीति-रिवाजों का नाम नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में अल्लाह के आदेशों को मानने का नाम है, यहाँ तक कि खाने-पीने में भी।
हलाल रोज़ी का महत्व: एक मोमिन के लिए सिर्फ पेट भरना मायने नहीं रखता, बल्कि यह जरूरी है कि वह जो खा रहा है वह हलाल और तैय्यिब (शुद्ध) हो।
शुक्र ईमान का हिस्सा है: अल्लाह की नेमतों का शुक्र अदा करना ईमान का एक अभिन्न अंग है। नेमत मिलने पर शुक्र करना और मुसीबत आने पर सब्र करना, यही एक मोमिन की पहचान है।
इबादत का असली मतलब: इबादत सिर्फ नमाज़-रोज़ा ही नहीं है। अल्लाह की दी हुई नेमतों को उसके बताए हुए तरीके से इस्तेमाल करना और उसके प्रति कृतज्ञ रहना भी एक बड़ी इबादत है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) के लिए:
मक्का के नए मुसलमान: जब लोग मुसलमान होते थे, तो उनके सामने यह सवाल आता था कि अब क्या खाएँ और क्या न खाएँ। यह आयत उनके लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शन थी कि अल्लाह की दी हुई पवित्र चीज़ें खाओ।
यहूदियों पर पाबंदियाँ: यहूदियों पर कई पाक चीज़ें हराम कर दी गई थीं। यह आयत मुसलमानों को बताती है कि उन पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है, बशर्ते चीज़ हलाल और पाक हो।
वर्तमान (Present) के लिए:
हलाल फूड इंडस्ट्री: आज दुनिया भर में मुसलमान हलाल खाने पर ध्यान दे रहे हैं। यह आयत इसका सीधा आधार है।
आधुनिक खाद्य पदार्थ: जंक फूड, अशुद्ध, और हानिकारक चीज़ों से भरपूर आज का खानपान। "तैय्यिबात" (शुद्ध और अच्छी चीज़ें) का सिद्धांत मुसलमानों को स्वस्थ और प्राकृतिक खाने की तरफ प्रेरित करता है।
बेइमानी की कमाई: आज के दौर में रिश्वत, सूद (ब्याज) और धोखाधड़ी से कमाई गई आमदनी बहुत आम है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि सिर्फ खाना ही नहीं, बल्कि कमाने का तरीका भी हलाल होना चाहिए, तभी शुक्र पूरा होगा।
कृतज्ञता का अभाव: आज का इंसान भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद अक्सर शिकायत और नाखुशी का शिकार है। यह आयत उसे शुक्र करने और जीवन को एक इबादत के रूप में जीने की याद दिलाती है।
भविष्य (Future) के लिए:
लैब-ग्रोन मीट और जेनेटिकली मॉडिफाइड फूड: भविष्य में खाद्य प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, "हलाल" और "तैय्यिब" के सिद्धांत ही यह तय करने का आधार बनेंगे कि नई चीज़ें खाने के लिए वैध और शुद्ध हैं या नहीं।
डिजिटल करेंसी और आमदनी: भविष्य की अर्थव्यवस्था में, हलाल और हराम कमाई को परिभाषित करने के लिए इस आयत के सिद्धांत मार्गदर्शन करेंगे।
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक इंसान रहेगा, उसे खाने-पीने और रोज़ी देने वाले का शुक्र अदा करने की जरूरत रहेगी। इसलिए, यह आयत कयामत तक सभी ईमान वालों के लिए एक स्थायी, Practical और आध्यात्मिक मार्गदर्शन बनी रहेगी।