यह आयत रमज़ान के महीने और रोज़ों के विषय पर एक व्यापक और गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह न केवल रियायतों को स्पष्ट करती है बल्कि रमज़ान के आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व को भी रेखांकित करती है।
1. पूरी आयत अरबी में:
شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِّنَ الْهُدَىٰ وَالْفُرْقَانِ ۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ ۖ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَىٰ سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۗ يُرِيدُ اللَّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُوا اللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):
شَهْرُ (शहरु) : महीना
رَمَضَانَ (रमज़ान) : रमज़ान का
الَّذِي (अल्लज़ी) : जिसमें
أُنزِلَ فِيهِ (उंज़िला फ़ीहि) : उतारा गया
الْقُرْآنُ (अल-कुरआन) : कुरआन
هُدًى (हुदन) : मार्गदर्शन
لِّلنَّاسِ (लिन्नास) : लोगों के लिए
وَبَيِّنَاتٍ (व बय्यिनातिन) : और स्पष्ट प्रमाण
مِّنَ الْهُدَىٰ (मिनल हुदा) : मार्गदर्शन में से
وَالْفُرْقَانِ (वल फुरक़ान) : और सत्य-असत्य में अंतर करने वाला
فَمَن (फ़ा मन) : फिर जिसने
شَهِدَ (शहिदा) : उपस्थित रहा (गवाह बना)
مِنكُمُ (मिनकुम) : तुम में से
الشَّهْرَ (अश-शहर) : महीने को (रमज़ान को)
فَلْيَصُمْهُ (फ़ल-यसुम्हू) : तो उसे रोज़ा रखना चाहिए
وَمَن (व मan) : और जो
كَانَ (कान) : था
مَرِيضًا (मरीज़न) : बीमार
أَوْ (औ) : या
عَلَىٰ سَفَرٍ (अला सफ़रिन) : सफर पर
فَعِدَّةٌ (फ़ा इद्दतun) : तो (उतनी ही) गिनती
مِّنْ أَيَّامٍ أُخَرَ (मिन अय्यामिन उख़रा) : दूसरे दिनों में से
يُرِيدُ (युरीदु) : चाहता है
اللَّهُ (अल्लाह) : अल्लाह
بِكُمُ (बिकum) : तुम्हारे साथ
الْيُسْرَ (अल-युस्र) : आसानी
وَلَا (व ला) : और नहीं
يُرِيدُ (युरीदu) : चाहता है
بِكُمُ (बिकum) : तुम्हारे साथ
الْعُسْرَ (अल-उस्र) : कठिनाई
وَلِتُكْمِلُوا (व लितुक्मिलू) : और ताकि तुम पूरी करो
الْعِدَّةَ (अल-इद्दata) : गिनती (रोज़ों की)
وَلِتُكَبِّرُوا (व लितुकब्बिरू) : और ताकि तुम बड़ाई करो
اللَّهَ (अल्लाह) : अल्लाह की
عَلَىٰ (अला) : पर
مَا (मा) : जिस (मार्गदर्शन) पर
هَدَاكُمْ (हदाकum) : उसने तुम्हें मार्ग दिखाया
وَلَعَلَّكُمْ (व ला'अल्लकum) : और ताकि तुम
تَشْكُرُونَ (तशकुरून) : शुक्र अदा करो
3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:
अर्थ: "रमज़ान का महीना वह है, जिसमें कुरआन उतारा गया, जो मनुष्यों के लिए मार्गदर्शन है और जिसमें मार्गदर्शन और सत्य-असत्य में अंतर करने वाले स्पष्ट प्रमाण हैं। अतः तुम में से जो कोई भी इस महीने को पाये, तो उसे अवश्य रोज़ा रखना चाहिए। और जो कोई बीमार हो या सफर पर हो, तो दूसरे दिनों में से उतने ही दिन (रखे)। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ कठिनाई नहीं चाहता। और ये इसलिए कि तुम गिनती पूरी करो और अल्लाह की उस हिदायत पर बड़ाई करो जो उसने तुम्हें दिखाई और ताकि तुम कृतज्ञता दिखाओ।"
व्याख्या:
इस आयत को पाँच प्रमुख भागों में समझा जा सकता है:
1. रमज़ान की महानता (The Greatness of Ramadan): "शहरु रमज़ानल्लज़ी उंज़िला फ़ीहिल कुरआन..."
रमज़ान की सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसमें कुरआन उतारा गया। यह कोई साधारण घटना नहीं है।
कुरआन का उद्देश्य स्पष्ट है: "हुदन लिन्नास" - सारी मानवजाति के लिए मार्गदर्शन। यह सिर्फ एक विशेष समुदाय के लिए नहीं है।
यह मार्गदर्शन "बय्यिनात" (स्पष्ट प्रमाणों) और "फुरक़ान" (सही और गलत के बीच अंतर करने वाला) के रूप में है।
2. मूल नियम और रियायत (The Core Rule and Concession): "फ़मन शहिदा मिनकुमुष शहरा फ़ल-यसुम्हू..."
मूल नियम सीधा है: जो भी व्यक्ति रमज़ान का महीना पाए (यानी स्वस्थ और घर पर हो), उस पर रोज़ा रखना अनिवार्य है।
रियायत पिछली आयत की पुष्टि करती है: बीमार और मुसाफ़िर को रोज़ा छोड़ने की अनुमति है, लेकिन बाद में उन दिनों की क़ज़ा (कमी पूरी) करनी होगी।
3. अल्लाह का उद्देश्य (Allah's Intention): "युरीदुल्लाहु बिकुमुल युस्रा व ला युरीदु बिकुमुल उस्र"
यह इस आयत और पूरे इस्लामी जीवन-प्रणाली का केंद्रीय सिद्धांत है। अल्लाह का इरादा अपने बंदों के लिए आसानी पैदा करना है, कठिनाई पैदा करना नहीं।
रियायतें इसी दया और आसानी का प्रमाण हैं।
4. रोज़े के तीन उद्देश्य (Three Objectives of Fasting):
अल्लाह रोज़े के फर्ज होने के तीन उद्देश्य बताता है:
"व लितुक्मिलुल इद्दata" - ताकि तुम (रोज़ों की) गिनती पूरी कर सको। यह एक Practical लक्ष्य है।
"व लितुकब्बिरुल्लाहा अला मा हदाकum" - ताकि तुम उस मार्गदर्शन पर अल्लाह की बड़ाई करो जो उसने तुम्हें दिया। यही कारण है कि रमज़ान के अंत में ईद की नमाज़ से पहले और बाद में "अल्लाहु अकबर" का जाप किया जाता है (तकबीर)।
"व ला'अल्लकुम तशकुरून" - और ताकि तुम कृतज्ञ बनो। रोज़ा और कुरआन जैसी नेमतों के लिए अल्लाह का शुक्र अदा करो।
4. शिक्षा और सबक (Lesson):
कुरआन और रमज़ान का गहरा संबंध: रमज़ान सिर्फ भूखे-प्यासे रहने का महीना नहीं है, बल्कि कुरआन से जुड़ने और उस पर अमल करने का महीना है।
आसानी का धर्म: इस्लाम एक संतुलित धर्म है जो मानवीय सीमाओं को समझता है और उनके अनुसार नियम बनाता है।
कृतज्ञता का महत्व: हर नेमत का जवाब शुक्र (धन्यवाद) है। रोज़ा और कुरआन दोनों अल्लाह की सबसे बड़ी नेमतें हैं, इसलिए उसका शुक्र अदा करना जरूरी है।
सामुदायिक एकता: पूरी उम्मत एक साथ रोज़ा रखती है और कुरआन की तिलावत करती है, जो एक अद्भुत एकता और भाईचारा पैदा करती है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) के लिए:
इस आयत ने रमज़ान को एक स्पष्ट पहचान और उद्देश्य दिया। यह यहूदियों और ईसाइयों के विशेष "पवित्र दिनों" के विपरीत, एक पूरे "पवित्र महीने" की अवधारणा लेकर आई, जिसका केंद्र कुरआन का अवतरण है।
वर्तमान (Present) के लिए:
कुरआनिक पुनर्जागरण: रमज़ान आज भी दुनिया भर के मुसलमानों के लिए कुरआन से अपने रिश्ते को ताज़ा करने और उसे समझने का मौका है। तरावीह की नमाज़ और घरों में कुरआन की तिलावत इसका जीवंत उदाहरण है।
स्वास्थ्य और यात्रा: आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने उन बीमारियों को बेहतर ढंग से परिभाषित किया है जिनमें रोज़ा छोड़ने की छूट है। इसी तरह, आधुनिक यात्रा के तरीकों के लिए भी यह रियायत लागू होती है।
आध्यात्मिक शांति: आज के तनाव भरे जीवन में, रमज़ान आत्म-नियंत्रण, प्रार्थना और आत्म-सुधार के लिए एक वार्षिक प्रशिक्षण (Annual Training) का काम करता है।
सामाजिक समानता: रोज़ा अमीर और गरीब दोनों को एक जैसा महसूस कराता है, जिससे समाज में सहानुभूति और दान की भावना बढ़ती है।
भविष्य (Future) के लिए:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक यह दुनिया रहेगी, कुरआन का मार्गदर्शन और रमज़ान का प्रशिक्षण मानवता के लिए प्रासंगिक बना रहेगा।
तकनीकी युग में आस्था: भविष्य की और भी भौतिकवादी दुनिया में, रमज़ान लोगों को रुकने, सोचने और अपने आध्यात्मिक पक्ष को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगा।
एकता का प्रतीक: रमज़ान दुनिया भर के मुसलमानों के बीच एकता का एक शक्तिशाली और स्थायी प्रतीक बना रहेगा, जो समय और स्थान की सीमाओं से परे है।