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क़ुरआन की आयत 2:186 की पूर्ण व्याख्या

यह आयत रोज़े और इबादत के संदर्भ में एक बहुत ही विशेष और आश्वासन भरा संदेश देती है। यह अल्लाह की निकटता, उसकी सुनने की शक्ति और दुआओं को स्वीकार करने की उसकी इच्छा को प्रस्तुत करती है, जो हर मोमिन के लिए एक गहरी ऊर्जा और आशा का स्रोत है।

1. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ ۖ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ ۖ فَلْيَسْتَجِيبُوا لِي وَلْيُؤْمِنُوا بِي لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُونَ

2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَإِذَا (व इज़ा) : और जब

  • سَأَلَكَ (सअलका) : तुमसे पूछें

  • عِبَادِي (इबादी) : मेरे बन्दे

  • عَنِّي (अन्नी) : मेरे बारे में

  • فَإِنِّي (फ़ा इन्नी) : तो निश्चित रूप से मैं

  • قَرِيبٌ (क़रीबुन) : निकट हूँ

  • أُجِيبُ (उजीबु) : मैं स्वीकार (जवाब) देता हूँ

  • دَعْوَةَ (दअवता) : दुआ (पुकार) को

  • الدَّاعِ (अद-दाइ) : पुकारने वाले का

  • إِذَا (इज़ा) : जब

  • دَعَانِ (दअआनी) : उसने मुझे पुकारा

  • فَلْيَسْتَجِيبُوا (फ़ल-यस्तजीबू) : तो उन्हें स्वीकार (मान) लेना चाहिए

  • لِي (ली) : मेरी (बात)

  • وَلْيُؤْمِنُوا (व लयु'मिनू) : और ईमान लाना चाहिए

  • بِي (बी) : मुझ पर

  • لَعَلَّهُمْ (ला'अल्लहum) : ताकि वे

  • يَرْشُدُونَ (यरशुदून) : सीधे मार्ग पर आ जाएँ (सफल हों)


3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:

अर्थ: "और (हे पैगंबर!) जब आपसे मेरे बन्दे मेरे बारे में पूछें, तो (आप कह दें कि) निश्चय ही मैं निकट हूँ। मैं पुकारने वाले की पुकार को स्वीकार करता हूँ, जब वह मुझे पुकारता है। अतः उन्हें भी मेरी बात माननी चाहिए और मुझ पर ईमान लाना चाहिए, ताकि वे सीधे मार्ग पर आ जाएँ।"

व्याख्या:

यह आयत एक संवाद का रूप लेती है जहाँ अल्लाह सीधे अपने पैगंबर (स.अ.व.) को संबोधित कर रहा है, लेकिन यह संदेश सारी मानवजाति के लिए है। इसे चार प्रमुख भागों में समझा जा सकता है:

1. अल्लाह की निकटता (The Nearness of Allah): "फ़ा इन्नी क़रीब"

  • यह इस आयत का केंद्रीय और सबसे सुकून देने वाला सत्य है। अल्लाह कहता है, "मैं निकट हूँ।"

  • यह निकटता स्थानिक (Spatial) नहीं है, बल्कि उसके ज्ञान, उसकी शक्ति और उसकी दया की निकटता है। वह हर दिल की धड़कन, हर आँसू और हर दुआ से वाकिफ है। वह उतना ही नज़दीक है जितना तुम्हारी अपनी गर्दन की नस (क़ुरआन 50:16)।

2. दुआ का तत्काल प्रत्युत्तर (The Immediate Response to Supplication): "उजीबु दअवतद दाइ इज़ा दअआनी"

  • अल्लाह सिर्फ नज़दीक ही नहीं बैठा है, बल्कि वह सक्रिय रूप से जवाब देता है। "उजीबु" शब्द एक तत्काल और सक्रिय प्रतिक्रिया को दर्शाता है।

  • शर्त सिर्फ इतनी है: "इज़ा दअआनी" - "जब वह मुझे पुकारता है।" जैसे ही एक बंदा दिल लगाकर अल्लाह को पुकारता है, अल्लाह की प्रतिक्रिया की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

3. बंदे का कर्तव्य (The Servant's Duty): "फ़ल-यस्तजीबू ली व लयु'मिनू बी"

  • यह संबंध दो-तरफ़ा है। अल्लाह दुआ सुनने और स्वीकार करने का वादा करता है, लेकिन बंदे का भी कर्तव्य है:

    • "यस्तजीबू ली" - उन्हें अल्लाह की पुकार को स्वीकार करना चाहिए। यानी अल्लाह के आदेशों (जैसे रोज़ा, नमाज़, हलाल और हराम) का पालन करना चाहिए।

    • "व लयु'मिनू बी" - और उस पर पूर्ण ईमान लाना चाहिए।

4. अंतिम लक्ष्य (The Ultimate Goal): "ला'अल्लहum यरशudून"

  • इस पूरे आदान-प्रदान का लक्ष्य यह नहीं है कि इंसान बस अपनी मन्नतें पूरी करवा ले। लक्ष्य यह है कि वह "रशद" यानी सही मार्गदर्शन, समझदारी और स्थायी सफलता प्राप्त करे।

  • अल्लाह की आज्ञा मानकर और उस पर ईमान लाकर ही इंसान अपने जीवन का सही रास्ता पा सकता है।


4. शिक्षा और सबक (Lesson):

  • दुआ एक शक्तिशाली हथियार है: एक मोमिन कभी भी निराश नहीं होता क्योंकि उसके पास सीधे मालिक से बात करने का चैनल हमेशा खुला है।

  • अल्लाह की दया अपार है: वह हमसे कहीं अधिक हमारी दुआओं को सुनने और स्वीकार करने को तैयार है, बजाय इसके कि हम उसे पुकारें।

  • ईमान और आज्ञाकारिता ज़रूरी है: दुआ का असर हमारे ईमान और अल्लाह के आदेशों के प्रति हमारी वफादारी पर निर्भर करता है।

  • आशा और विश्वास: यह आयत हर मुसलमान के दिल में अल्लाह के प्रति अटूट विश्वास और आशा का संचार करती है।


5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) के लिए:

    • पैगंबर (स.अ.व.) के साथियों के मन में यह सवाल उठता था कि क्या अल्लाह उनकी दुआओं को सुनता है क्योंकि वे उसे देख नहीं सकते। यह आयत उनके इस सवाल का सीधा, स्पष्ट और सांत्वना भरा जवाब थी।

  • वर्तमान (Present) के लिए:

    • आधुनिक अकेलापन और चिंता: आज का इंसान Materialistic दुनिया में बहुत अकेला और तनावग्रस्त है। यह आयत उसे यह एहसास दिलाती है कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर उसके बेहद करीब है जो उसकी हर पुकार सुनता है। यह Mental Peace का सबसे बड़ा स्रोत है।

    • रमज़ान और दुआ: रमज़ान में दुआओं का विशेष महत्व है। यह आयत रोज़ेदार को यह याद दिलाती है कि उसकी भूख-प्यास सिर्फ एक Ritual नहीं है, बल्कि अल्लाह के और करीब जाने और उससे मनचाही दुआ माँगने का एक सुनहरा अवसर है।

    • आध्यात्मिक संकट: जब कोई व्यक्ति बीमारी, वित्तीय संकट या पारिवारिक समस्या में फंसता है, तो यह आयत उसके लिए एक मजबूत सहारा बन जाती है।

  • भविष्य (Future) के लिए:

    • तकनीकी युग में आस्था: भविष्य की और भी डिजिटल और अवैयक्तिक (Impersonal) दुनिया में, यह आयत हमेशा मनुष्य को यह याद दिलाती रहेगी कि उसका रिश्ता सीधे उसके रब से है। यह रिश्ता किसी Technology के बीच में नहीं आता।

    • शाश्वत आशा: जब तक इंसान रहेगा, उसे आशा और सहारे की जरूरत रहेगी। यह आयत कयामत तक हर पीढ़ी के लिए यह आश्वासन देती रहेगी कि तुम्हारा रब तुमसे बेहद करीब है, बस तुम उसे पुकारो। यह कुरआन का एक सदाबहार, सुकून देने वाला और जीवन देने वाला संदेश है।