यह आयत रमज़ान के रोज़ों से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण नियमों को स्पष्ट करती है, खासकर रात के समय की अनुमतियों के बारे में। यह इस्लाम के व्यावहारिक और संतुलित स्वभाव को दर्शाती है, जो आध्यात्मिकता और मानवीय जरूरतों के बीच सही संतुलन बनाती है।
1. पूरी आयत अरबी में:
أُحِلَّ لَكُمْ لَيْلَةَ الصِّيَامِ الرَّفَثُ إِلَىٰ نِسَائِكُمْ ۚ هُنَّ لِبَاسٌ لَّكُمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ لَّهُنَّ ۗ عَلِمَ اللَّهُ أَنَّكُمْ كُنْتُمْ تَخْتَانُونَ أَنْفُسَكُمْ فَتَابَ عَلَيْكُمْ وَعَفَا عَنْكُمْ ۖ فَالْآنَ بَاشِرُوهُنَّ وَابْتَغُوا مَا كَتَبَ اللَّهُ لَكُمْ ۚ وَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الْأَبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الْأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ ۖ ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّيَامَ إِلَى اللَّيْلِ ۚ وَلَا تُبَاشِرُوهُنَّ وَأَنْتُمْ عَاكِفُونَ فِي الْمَسَاجِدِ ۗ تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَقْرَبُوهَا ۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ
2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):
أُحِلَّ (उहिल्ला) : हलाल (वैध) किया गया है
لَكُمْ (लकुम) : तुम्हारे लिए
لَيْلَةَ (लैलता) : रात को
الصِّيَامِ (अस-सियाम) : रोज़े (की)
الرَّفَثُ (अर-रफस) : संभोग/अंतरंगता
إِلَىٰ نِسَائِكُمْ (इला निसाइकुम) : अपनी पत्नियों के पास
هُنَّ (हुन्ना) : वे (पत्नियाँ)
لِبَاسٌ (लिबासुन) : पोशाक (ढकने वाली) हैं
لَّكُمْ (लकुम) : तुम्हारे लिए
وَأَنْتُمْ (व अनतum) : और तुम हो
لِبَاسٌ (लिबासुन) : पोशाक
لَّهُنَّ (लहुन्ना) : उनके लिए
عَلِمَ اللَّهُ (अलिमल्लाह) : अल्लाह ने जान लिया
أَنَّكُمْ (अन्नकum) : कि तुम
كُنْتُمْ (कुंतum) : होते थे
تَخْتَانُونَ (तख्तानून) : धोखा देते थे
أَنْفُسَكُمْ (अन्फुसकum) : अपने आप को
فَتَابَ (फ़ा ताबा) : फिर उसने तौबा क़बूल की
عَلَيْكُمْ (अलैकum) : तुम पर
وَعَفَا (व अफ़ा) : और माफ़ किया
عَنْكُمْ (अनकum) : तुम्हें
فَالْآنَ (फ़ल-आना) : तो अब (इस समय)
بَاشِرُوهُنَّ (बाशिरूहुन्ना) : उनके साथ संभोग करो
وَابْتَغُوا (वब्तग़ू) : और तलाश करो (चाहो)
مَا (मा) : जो
كَتَبَ اللَّهُ (कतबल्लाह) : अल्लाह ने लिख दिया है (नियत किया है)
لَكُمْ (लakum) : तुम्हारे लिए
وَكُلُوا (व कुलू) : और खाओ
وَاشْرَبُوا (वशरबू) : और पियो
حَتَّىٰ (हत्ता) : यहाँ तक कि
يَتَبَيَّنَ (यतबय्यना) : स्पष्ट हो जाए
لَكُمُ (लakum) : तुम्हारे लिए
الْخَيْطُ (अल-खैत) : धागा
الْأَبْيَضُ (अल-अबयज़) : सफेद
مِنَ (मिन) : से
الْخَيْطُ (अल-खैत) : धागा
الْأَسْوَدِ (अल-असवद) : काला
مِنَ الْفَجْرِ (मिनल फज्र) : फज्र (तड़के) से
ثُمَّ (सुम्म) : फिर
أَتِمُّوا (अतिम्मू) : पूरा करो
الصِّيَامَ (अस-सियाम) : रोज़ा
إِلَى اللَّيْلِ (इलल लैल) : रात तक
وَلَا (व ला) : और न
تُبَاشِرُوهُنَّ (तुबाशिरूहुन्ना) : उनके साथ संभोग करो
وَأَنْتُمْ (व अनतum) : और तुम
عَاكِفُونَ (आकिफून) : इतिकाफ़ कर रहे हो
فِي الْمَسَاجِدِ (फ़िल मसाजिद) : मस्जिदों में
تِلْكَ (तिलका) : ये हैं
حُدُودُ اللَّهِ (हुदुदुल्लाह) : अल्लाह की सीमाएँ
فَلَا (फ़ा ला) : तो न
تَقْرَبُوهَا (तक़रबूहा) : उनके नज़दीक जाओ
كَذَٰلِكَ (कज़ालिक) : इसी प्रकार
يُبَيِّنُ (युबय्यिनु) : स्पष्ट करता है
اللَّهُ (अल्लाह) : अल्लाह
آيَاتِهِ (आयातिही) : अपनी आयतों को
لِلنَّاسِ (लिन्नास) : लोगों के लिए
لَعَلَّهُمْ (ला'अल्लहum) : ताकि वे
يَتَّقُونَ (यत्तक़ून) : डरें (परहेज़गार बनें)
3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:
अर्थ: "रोज़े की रात को तुम्हारे लिए अपनी पत्नियों के पास जाना हलाल कर दिया गया है। वे तुम्हारे लिए पोशाक हैं और तुम उनके लिए पोशाक हो। अल्लाह जानता था कि तुम अपने आप से धोखा कर रहे थे, सो उसने तुमपर दया की और तुम्हें माफ़ कर दिया। अतः अब उनके साथ संभोग करो और उसे तलाश करो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है (संतान)। और खाओ-पियो यहाँ तक कि तड़के सफेद धागा काले धागे से तुम्हारे लिए स्पष्ट हो जाए, फिर रात तक रोज़े को पूरा करो। और मस्जिदों में इतिकाफ़ की हालत में उनके साथ संभोग न करो। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं, इनके नज़दीक न जाओ। इस प्रकार अल्लाह लोगों के लिए अपनी आयतें स्पष्ट करता है, ताकि वे डरें।"
व्याख्या:
इस आयत में चार प्रमुख बिंदु हैं:
1. रात में अनुमति और पति-पत्नी का रिश्ता:
शुरुआत में, रमज़ान की हर रात में भी पति-पत्नी संबंध निषिद्ध थे। यह मुसलमानों के लिए कठिन था। इस आयत ने इस प्रतिबंध को हटा दिया और रमज़ान की रातों को पति-पत्नी के लिए हलाल घोषित कर दिया।
"हुन्ना लिबासुन लकुम व अनतum लिबासुल लहुन्ना" - यह पति-पत्नी के बीच के गहरे, पवित्र और आपसी सुकून वाले रिश्ते की बहुत ही सुंदर उपमा है। जिस तरह कपड़ा शरीर को ढकता है, शोभा बढ़ाता है और सुरक्षा देता है, उसी तरह पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए सुकून, प्यार और सम्मान का स्रोत हैं।
2. सहरी और इफ्तार का समय:
आयत सहरी (Sehri) खाने की अंतिम सीमा और रोज़े की शुरुआत स्पष्ट करती है: "हत्ता यतबय्यना लकुमुल खैतुल अबयज़ु मिनल खैतिल असवदि मिनल फज्र" - यहाँ "सफेद धागा" और "काला धागा" से मतलब रात के अंधेरे और सुबह की उषा की लालिमा/उजाले से है। यानी फज्र-ए-सादिक़ (सच्ची भोर) का समय रोज़े की शुरुआत है।
रोज़े की समाप्ति "इलल लैल" - रात के आने पर होती है, यानी सूर्यास्त के बाद।
3. इतिकाफ़ की शर्त:
अगर कोई व्यक्ति मस्जिद में इतिकाफ़ (आखिरी दस रातों में इबादत के लिए ठहरना) कर रहा है, तो उस अवधि में पति-पत्नी संबंध निषिद्ध हैं।
4. अल्लाह की सीमाएँ:
आयत का अंत एक महत्वपूर्ण चेतावनी के साथ होता है। ये सब नियम "हुदुदुल्लाह" (अल्लाह की सीमाएँ) हैं। इन सीमाओं के नज़दीक भी नहीं जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, सहरी का समय निकलने वाला हो तो खाना-पीना छोड़ देना चाहिए।
4. शिक्षा और सबक (Lesson):
इस्लाम एक संतुलित धर्म है: यह आध्यात्मिकता और शारीरिक जरूरतों के बीच संतुलन बनाता है। रोज़ा शारीरिक इच्छाओं को दबाने के लिए नहीं, बल्कि उन पर नियंत्रण सिखाने के लिए है।
वैवाहिक जीवन का महत्व: इस्लाम पति-पत्नी के बीच शारीरिक संबंधों को हेय दृष्टि से नहीं, बल्कि एक पवित्र और पुरस्कृत रिश्ते के रूप में देखता है।
अल्लाह की दया: अल्लाह अपने बंदों की कठिनाइयों को समझता है और उन्हें दूर करता है। उसकी माफी और रहमत व्यापक है।
सीमाओं का पालन जरूरी है: हलाल और हराम की सीमाओं का सख्ती से पालन करना चाहिए।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) के लिए:
इस आयत ने प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय के लिए एक बड़ी राहत प्रदान की। इसने एक कठिन प्रथा को समाप्त करके इस्लाम के व्यावहारिक स्वरूप को स्थापित किया।
वर्तमान (Present) के लिए:
पारिवारिक जीवन: आज के युग में भी, यह आयत मुस्लिम दंपतियों को यह सिखाती है कि रमज़ान की रातें अल्लाह की एक नेमत हैं और उनका पवित्रता से उपयोग करना चाहिए।
सहरी और इफ्तार का समय: यह आयत आज भी दुनिया भर में रोज़े की शुरुआत और अंत के समय को निर्धारित करने का आधार है।
इतिकाफ़ का नियम: आज भी, जो लोग रमज़ान की आखिरी दस रातों में मस्जिद में इतिकाफ़ करते हैं, वे इसी आयत के आधार पर पति-पत्नी संबंधों से दूर रहते हैं।
भविष्य (Future) के लिए:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक रमज़ान और मुस्लिम समुदाय रहेगा, यह आयत हलाल और हराम, समय और सीमाओं का स्पष्ट मार्गदर्शन प्रदान करती रहेगी।
मानवीय स्वभाव: यह आयत हमेशा याद दिलाती रहेगी कि अल्लाह मनुष्य की प्रकृति से भली-भाँति परिचित है और उसके धर्म में मानवीय जरूरतों के लिए सम्मान और स्थान है। यह एक सदाबहार और संतुलित जीवन-शैली का मार्गदर्शन है।