यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की उन्नीसवीं आयत (2:19) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:19 - "अव केसैयिबिम मिनस्समाइ फीहि ज़ुलुमातुव व रअदुव व बरक़ुन यजअलूना असाबिआहुम फी आज़ानिहिम मिनस सवाइकि हजरल मौत, वल्लाहु मुहीतुम बिल काफ़ीरीन"
(أَوْ كَصَيِّبٍ مِّنَ السَّمَاءِ فِيهِ ظُلُمَاتٌ وَرَعْدٌ وَبَرْقٌ يَجْعَلُونَ أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِم مِّنَ الصَّوَاعِقِ حَذَرَ الْمَوْتِ ۚ وَاللَّهُ مُحِيطٌ بِالْكَافِرِينَ)
हिंदी अर्थ: "या (उनकी हालत) ऐसी है जैसे आसमान से मूसलाधार बारिश हो रही हो, जिसमें अंधेरा, बादल की गर्जन और बिजली की कड़क हो। वे मौत के डर से बिजली की कड़क से बचने के लिए अपनी उँगलियाँ अपने कानों में घुसेड़ लेते हैं। और अल्लाह काफिरों को घेरे हुए है।"
यह आयत मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) की मानसिक दुविधा और भयभीत स्थिति को समझाने के लिए एक दूसरा शक्तिशाली दृष्टांत (Analogy) पेश करती है। यह दृष्टांत उनके भीतर के संघर्ष, डर और अंततः उनकी असहायता को दर्शाता है।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
अव (Aw): या / अथवा (Or)
केसैयिबिन (Kasaibeebin): (उनकी दशा) जैसी है एक मूसलाधार बारिश की (Like a rainstorm from)
मिनस्समाइ (Minassamaa'i): आसमान से (The sky)
फीहि (Feehi): जिसमें है (In it is)
ज़ुलुमातुन (Zulumatun): अंधेरा (Darknesses)
व रअदुन (Wa Ra'dun): और गर्जन / बादल की गड़गड़ाहट (And thunder)
व बरकुन (Wa Barqun): और बिजली (And lightning)
यजअलूना (Yaj'aloona): वे रखते हैं (They put)
असाबिआहुम (Asaabi'ahum): अपनी उँगलियाँ (Their fingers)
फी आज़ानिहिम (Fee Aazaanihim): अपने कानों में (In their ears)
मिनस सवाइकि (Minas sawaa'iq): बिजली की कड़क से (From the thunderclaps)
हज़रल मौत (Hazaral mawt): मौत के डर से (For fear of death)
वल्लाहु मुहीतुम बिल्काफिरीन (Wallahu muheetum bil kaafireen): और अल्लाह काफिरों को घेरे हुए है (And Allah encompasses the disbelievers)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
यह दृष्टांत मुनाफिक़ीन की आंतरिक स्थिति को एक भयानक तूफान के रूपक में दर्शाता है। आइए इसके प्रतीकों को समझें:
1. मूसलाधार बारिश (The Torrential Rain - अस-सैयिब)
आध्यात्मिक अर्थ: यह कुरआन का ज्ञान और सत्य का प्रकाश है जो अल्लाह की ओर से बरस रहा है।
विवरण: जैसे बारिश जीवन देती है, वैसे ही कुरआन का ज्ञान दिलों को जीवन देता है। लेकिन मुनाफिक़ इस बारिश के नीचे खड़े हैं।
2. अंधेरा, गर्जन और बिजली (Darkness, Thunder, and Lightning - ज़ुलुमात, रअद, बरक़)
ये तीनों चीजें मुनाफिक़ के मन में पैदा होने वाले डर और संघर्ष को दर्शाती हैं:
अंधेरा (ज़ुलुमात): उनके अपने संदेह, पाखंड और अज्ञान का अंधेरा।
गर्जन (रअद): कुरआन और हदीस में चेतावनियों और डरावने वादों की गर्जना। जब भी वे आख़िरत, जहन्नम और अल्लाह के गज़ब का जिक्र सुनते हैं, उनके दिल दहल जाते हैं।
बिजली (बरक़): कुरआन और इस्लाम के स्पष्ट प्रमाण और तर्क। ये बिजली की कौंध की तरह एक पल के लिए उनके अंदर के अंधेरे को चीर देते हैं और सच्चाई दिखा देते हैं।
3. कानों में उँगलियाँ घुसेड़ना (Putting Fingers in Their Ears - यजअलूना असाबिआहुम फी आज़ानिहिम)
आध्यात्मिक अर्थ: यह सत्य को सुनने से इनकार करना है।
विवरण: जब भी वे सत्य के स्पष्ट प्रमाण (बिजली) सुनते हैं या डरावनी चेतावनियाँ (गर्जन) सुनते हैं, तो वे उसे सुनना नहीं चाहते। वे सोचते हैं कि अगर वे सत्य को स्वीकार कर लेंगे तो उनकी दुनियावी सुविधाएँ खत्म हो जाएँगी – यही उनके लिए "मौत" के समान है। इसलिए वे सत्य को सुनने से बचने की कोशिश करते हैं।
4. अल्लाह का घेराव (Allah's Encompassment - वल्लाहु मुहीतुम बिल्काफिरीन)
यह आयत का अंतिम और निर्णायक वाक्य है।
इसका अर्थ है कि अल्लाह उनके हर षड्यंत्र, हर छिपे हुए इरादे और हर भ्रम को जानता है। वे चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, अल्लाह के ज्ञान और शक्ति से बच नहीं सकते। उनका अंतिम परिणाम अल्लाह के हाथ में है और वह उन्हें घेरे हुए है।
3. दृष्टांत का सारांश (Summary of the Analogy)
| दृष्टांत का तत्व | आध्यात्मिक अर्थ | मुनाफिक़ीन की प्रतिक्रिया |
|---|---|---|
| मूसलाधार बारिश | कुरआन का ज्ञान और सत्य | वे इसके नीचे खड़े हैं लेकिन लाभ नहीं उठाते |
| अंधेरा | उनका अपना पाखंड और संदेह | वे इसी अंधेरे में जीते हैं |
| गर्जन | अल्लाह की चेतावनियाँ | वे इनसे डरते हैं |
| बिजली | सत्य के स्पष्ट प्रमाण | यह उनके अंधेरे को चीर देती है |
| कानों में उँगलियाँ | सत्य को सुनने से इनकार | वे सच्चाई को नहीं सुनना चाहते |
4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
सत्य के प्रति खुले रहने की शिक्षा: यह आयत हमें सिखाती है कि हमें कभी भी सत्य को सुनने से इनकार नहीं करना चाहिए, भले ही वह हमारी पूर्वधारणाओं के विपरीत क्यों न हो। सत्य को ढकने की कोशिश आख़िरकार स्वयं के लिए ही हानिकारक है।
आंतरिक संघर्ष का समाधान: यह आयत बताती है कि पाखंड और संदेह का जीवन एक भयानक मानसिक यातना है। असली शांति सत्य को पूरे दिल से स्वीकार करने में है।
अल्लाह के ज्ञान का एहसास: यह आयत हमें याद दिलाती है कि अल्लाह हर किसी के दिल के state को जानता है। हम चाहे कितना भी दिखावा कर लें, अल्लाह की नजरों से कुछ भी छिपा नहीं है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:19 मुनाफिक़ीन की आंतरिक उथल-पुथल को एक भयानक तूफान के रूप में चित्रित करती है। वे सत्य के प्रकाश (बारिश और बिजली) और अपने अंदर के अंधेरे के बीच फँसे हुए हैं। वे सत्य की गर्जना (चेतावनियों) से इतना डरते हैं कि उसे सुनने से ही इनकार कर देते हैं। यह आयत हर इंसान के लिए एक सबक है कि वह सत्य के प्रकाश का स्वागत करे, न कि उससे डरकर अपने कान बंद कर ले। क्योंकि अंततः, अल्लाह तो हर किसी को जानने और घेरने वाला है।