यह आयत हज और उमरह से संबंधित विस्तृत और व्यावहारिक नियमों को बताती है। यह इन इबादतों को पूरा करने, कुछ रुकावटों की स्थिति में क्या करें, और ज़बह (कुर्बानी) के नियमों को स्पष्ट करती है।
1. पूरी आयत अरबी में:
وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلَّهِ ۚ فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ ۖ وَلَا تَحْلِقُوا رُءُوسَكُمْ حَتَّىٰ يَبْلُغَ الْهَدْيُ مَحِلَّهُ ۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوْ بِهِ أَذًى مِّن رَّأْسِهِ فَفِدْيَةٌ مِّن صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍ ۚ فَإِذَا أَمِنتُمْ فَمَن تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ ۚ فَمَن لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ ۗ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ۗ ذَٰلِكَ لِمَن لَّمْ يَكُنْ أَهْلُهُ حَاضِرِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ
2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):
وَأَتِمُّوا (व अतिम्मू) : और पूरा करो
الْحَجَّ (अल-हज्ज) : हज को
وَالْعُمْرَةَ (वल उम्रता) : और उमरह को
لِلَّهِ (लिल्लाहि) : अल्लाह के लिए
فَإِنْ (फ़ा इन) : फिर यदि
أُحْصِرْتُمْ (उह्सिर्तुम) : तुम्हें रोक दिया गया (रुकावट आई)
فَمَا (फ़ा मा) : तो जो
اسْتَيْسَرَ (इस्तैसरा) : आसान हो (उपलब्ध हो)
مِنَ الْهَدْيِ (मिनल हदयि) : कुर्बानी के जानवर में से
وَلَا (व ला) : और न
تَحْلِقُوا (तह्लिक़ू) : मुंडवा लो (मुंडन करो)
رُءُوسَكُمْ (रुउसकुम) : अपने सिर
حَتَّىٰ (हत्ता) : जब तक कि
يَبْلُغَ (यब्लुग़) : न पहुँच जाए
الْهَدْيُ (अल-हदयु) : कुर्बानी का जानवर
مَحِلَّهُ (महिल्लहू) : अपने स्थान पर (कुर्बानी की जगह)
فَمَن (फ़ा मन) : फिर जो
كَانَ (कान) : था
مِنكُم (मिनकुम) : तुम में से
مَّرِيضًا (मरीज़न) : बीमार
أَوْ (औ) : या
بِهِ (बिही) : उसे
أَذًى (अज़न) : तकलीफ (चोट, जूँ आदि)
مِّن رَّأْسِهِ (मिन रअसिही) : उसके सिर से
فَفِدْيَةٌ (फ़ा फिदयतुन) : तो फिद्या (क्षतिपूर्ति) है
مِّن صِيَامٍ (मिन सियामिन) : रोज़ों में से
أَوْ صَدَقَةٍ (औ सदक़तिन) : या दान में से
أَوْ نُسُكٍ (औ नुसुकिन) : या कुर्बानी में से
فَإِذَا (फ़ा इज़ा) : फिर जब
أَمِنتُمْ (अमिन्तुम) : तुम सुरक्षित हो गए
فَمَن (फ़ा मan) : तो जिसने
تَمَتَّعَ (तमत्तअ) : फायदा उठाया (किया)
بِالْعُمْرَةِ (बिल उम्रति) : उमरह से
إِلَى الْحَجِّ (इलल हज्जि) : हज तक
فَمَا (फ़ा मा) : तो जो
اسْتَيْسَرَ (इस्तैसरा) : आसान हो
مِنَ الْهَدْيِ (मिनल हदयि) : कुर्बानी के जानवर में से
فَمَن (फ़ा मan) : फिर जिसने
لَّمْ يَجِدْ (लम यजिद) : न पाया
فَصِيَامُ (फ़ा सियामु) : तो रोज़े हैं
ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ (सलासति अय्यामिन) : तीन दिनों के
فِي الْحَجِّ (फ़िल हज्जि) : हज में
وَسَبْعَةٍ (व सबअतिन) : और सात (दिन)
إِذَا رَجَعْتُمْ (इज़ा रजअतुम) : जब तुम लौटो
تِلْكَ (तिलका) : वे हैं
عَشَرَةٌ (अशरतुन) : दस
كَامِلَةٌ (कामिलतun) : पूरे
ذَٰلِكَ (ज़ालिका) : यह (नियम) है
لِمَن (ली मan) : उसके लिए
لَّمْ يَكُنْ (लम यकुन) : नहीं थे
أَهْلُهُ (अह्लुहू) : उसके घर वाले
حَاضِرِي (हाजिरी) : निवासी
الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ (अल-मसजिदिल हराम) : मस्जिद-अल-हराम (मक्का) के
وَاتَّقُوا (वत्तक़ू) : और डरो
اللَّهَ (अल्लाह) : अल्लाह से
وَاعْلَمُوا (वअ'लमू) : और जान लो
أَنَّ (अन्नa) : कि
اللَّهَ (अल्लाह) : अल्लाह
شَدِيدُ (शदीदु) : सख्त है
الْعِقَابِ (अल-इक़ाब) : यातना देने में
3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:
अर्थ: "और हज और उमरह को अल्लाह के लिए पूरा करो। फिर यदि तुम्हें रोक दिया जाए (रुकावट आ जाए), तो जो कुर्बानी का जानवर आसानी से उपलब्ध हो (उसे ज़बह कर दो)। और अपने सिर न मुंडवाओ जब तक कि कुर्बानी का जानवर अपने स्थान (कुर्बानी की जगह) पर न पहुँच जाए। फिर तुम में से जो कोई बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ हो (जैसे जूँ, चोट), तो उसपर रोज़े रखने या सदक़ा (दान) देने या कुर्बानी करने से फिद्या (क्षतिपूर्ति) है। फिर जब तुम सुरक्षित हो जाओ, तो जिसने उमरह से हज तक का फायदा उठाया (क़िरान हज किया), तो जो कुर्बानी का जानवर आसानी से उपलब्ध हो (उसे ज़बह करे)। फिर जिसे (कुर्बानी का जानवर) न मिले, तो हज के दिनों में तीन दिन के रोज़े और (सात दिन) जब लौटो, इस तरह पूरे दस दिन के रोज़े (रखे)। यह (नियम) उसके लिए है जिसके घर वाले मस्जिद-ए-हराम (मक्का) के निवासी न हों। और अल्लाह से डरो और जान लो कि अल्लाह सख्त सज़ा देने वाला है।"
व्याख्या:
यह आयत हज और उमरह के तीन प्रमुख Scenarios को कवर करती है:
1. रुकावट (इह्सार) की स्थिति: "फ़ा इन उह्सिर्तुम..."
अगर कोई व्यक्ति हज या उमरह की नीयत करे लेकिन दुश्मन, बीमारी, या किसी और वजह से मक्का न पहुँच सके, तो वह हलाल (सामान्य) हो जाता है।
शर्त: उसे मीकात (निर्धारित सीमा) पर या जहाँ रुकावट आई वहाँ एक जानवर की कुर्बानी देनी होगी।
फिर वह अपना सिर मुंडवा सकता है और इहराम से निकल सकता है।
2. उमरह और हज के प्रकार (तमत्तु और क़िरान): "फ़ा इज़ा अमिन्तुम..."
यह आयत "तमत्तु" (उमरह करके हलाल होना और फिर हज का इहराम बाँधना) और "क़िरान" (उमरह और हज के लिए एक ही इहराम बाँधना) हज करने वालों से संबंधित है।
ऐसे हाजियों पर कुर्बानी देना अनिवार्य (वाजिब) है।
अगर कोई कुर्बानी का जानवर न पा सके, तो उसे तीन दिन हज के期间 में और सात दिन घर लौटने के बाद, कुल दस रोज़े रखने होंगे।
3. सिर मुंडाने से पहले की शर्त और फिद्या: "व ला तह्लिक़ू रुउसकुम..."
हज या उमरह की अवधि के दौरान इहराम की हालत में बाल नहीं काट सकते।
सिर मुंडाना या बाल कटाना केवल कुर्बानी के बाद ही हो सकता है।
अगर कोई बीमारी या सिर की तकलीफ (जैसे जूँ) की वजह से बाल कटाने के लिए मजबूर हो जाए, तो उसे "फिद्या" (क्षतिपूर्ति) देनी होगी। यह फिद्या तीन में से एक हो सकती है:
तीन दिन के रोज़े।
छः मिस्कीनों को खाना खिलाना।
एक जानवर की कुर्बानी।
आयत का अंत एक सामान्य चेतावनी के साथ होता है कि अल्लाह से डरो क्योंकि वह सज़ा देने में सख्त है, यह दर्शाता है कि इन नियमों का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson):
इबादत को पूरा करो: हज और उमरह जैसी इबादतों को उनके सभी नियमों और शर्तों के साथ पूरा करना जरूरी है।
इस्लाम में आसानी: अल्लाह अपने बंदों पर कोई कठिनाई नहीं डालता। बीमारी या मजबूरी की स्थिति में रियायतें दी गई हैं।
कुर्बानी और त्याग का महत्व: हज इबादत, कुर्बानी और आत्म-त्याग का संगम है।
अल्लाह का डर: हर इबादत का मूल उद्देश्य अल्लाह का डर (तक़वा) पैदा करना है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) के लिए:
यह आयत प्रारंभिक मुसलमानों के लिए एक व्यापक गाइड थी, खासकर उनके लिए जो मक्का से दूर रहते थे और हज के लिए लंबी, खतरनाक यात्रा करते थे। इसने रुकावटों और कठिनाइयों की स्थिति में स्पष्ट नियम दिए।
वर्तमान (Present) के लिए:
आधुनिक हज यात्रा: आज भी, दुनिया भर के करोड़ों हाजी इन्हीं नियमों का पालन करते हैं। क़िरान और तमत्तु हज करने वालों के लिए कुर्बानी का नियम आज भी लागू है।
स्वास्थ्य संबंधी Issues: अगर किसी हाजी को हज期间 में कोई स्वास्थ्य समस्या (जैसे सिर में संक्रमण) हो जाए, तो वह फिद्या देकर बाल कटवा सकता है। यह इस्लाम की व्यावहारिकता को दर्शाता है।
यात्रा में रुकावट: अगर कोई हाजी किसी कारण (जैसे राजनीतिक प्रतिबंध, प्राकृतिक आपदा, कोविड-19 Lockdown) से मक्का नहीं पहुँच पाता, तो यह आयत उसके लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।
भविष्य (Future) के लिए:
शाश्वत मार्गदर्शन: जब तक हज और उमरह रहेंगे, यह आयत हाजियों और उलेमा के लिए एक स्थायी Reference के रूप में काम करेगी।
नई चुनौतियाँ: भविष्य में यात्रा और स्वास्थ्य से जुड़ी नई चुनौतियाँ आ सकती हैं। इस आयत में दिए गए सिद्धांत (रियायत, फिद्या, सुरक्षा) भविष्य के फतवों के लिए आधार प्रदान करेंगे।
एकता का प्रतीक: यह आयत हमेशा याद दिलाती रहेगी कि हज एक ऐसी इबादत है जो दुनिया भर के मुसलमानों को एक ही नियम के तहत एकजुट करती है।