यह आयत हज के लिए निर्धारित महीनों की घोषणा करते हुए हज के दौरान अपनाई जाने वाली आचार संहिता और मनःस्थिति को परिभाषित करती है। यह हज की आत्मा को समझने में बहुत महत्वपूर्ण है।
1. पूरी आयत अरबी में:
الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَّعْلُومَاتٌ ۚ فَمَن فَرَضَ فِيهِنَّ الْحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِي الْحَجِّ ۗ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ يَعْلَمْهُ اللَّهُ ۗ وَتَزَوَّدُوا فَإِنَّ خَيْرَ الزَّادِ التَّقْوَىٰ ۚ وَاتَّقُونِ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ
2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):
الْحَجُّ (अल-हज्ज) : हज
أَشْهُرٌ (अशहुरुन) : महीने हैं
مَّعْلُومَاتٌ (मअलुमातुन) : निर्धारित/ज्ञात
فَمَن (फ़ा मan) : फिर जिसने
فَرَضَ (फ़रदा) : अनिवार्य किया (हज की नीयत की)
فِيهِنَّ (फ़ीहिन्ना) : उन (महीनों) में
الْحَجَّ (अल-हज्ज) : हज (को)
فَلَا (फ़ा ला) : तो नहीं (वर्जित है)
رَفَثَ (रफस) : अश्लील बातें / पत्नी के साथ संभोग
وَلَا (व ला) : और न
فُسُوقَ (फुसूक़) : अवज्ञा / पाप / गुनाह
وَلَا (व ला) : और न
جِدَالَ (जिदाल) : झगड़ा / बहस
فِي الْحَجِّ (फ़िल हज्जि) : हज में
وَمَا (व मा) : और जो (कुछ)
تَفْعَلُوا (तफअलू) : तुम करोगे
مِنْ خَيْرٍ (मिन खैरिन) : भलाई में से
يَعْلَمْهُ (यअ'लमहू) : उसे जानता है
اللَّهُ (अल्लाह) : अल्लाह
وَتَزَوَّدُوا (व तज़व्वदू) : और ज़रूरत का सामान लो (ज़हीरा बनाओ)
فَإِنَّ (फ़ा इन्नa) : तो निश्चित रूप से
خَيْرَ (खैर) : सबसे अच्छा
الزَّادِ (अज़-ज़ादि) : ज़हीरा (सफर का सामान)
التَّقْوَىٰ (अत-तक़वा) : परहेज़गारी (अल्लाह का डर) है
وَاتَّقُونِ (वत्तक़ूनि) : और मेरी अवज्ञा से बचो (मुझसे डरो)
يَا (या) : हे!
أُولِي (उली) : वालों
الْأَلْبَابِ (अल-अलबाब) : बुद्धि (समझ रखने वालों)
3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:
अर्थ: "हज (के लिए) निर्धारित महीने हैं। फिर जिसने उन महीनों में हज अनिवार्य कर लिया (यानी हज का इहराम बाँध लिया), तो हज की अवधि में न अश्लील बातें करना है, न पाप करना है और न ही झगड़ा करना है। और तुम जो कुछ भलाई करोगे, अल्लाह उसे जानता है। और (सफर के लिए) ज़रूरत का सामान लो, पर निश्चय ही सबसे अच्छा ज़हीरा परहेज़गारी (तक़वा) है। और हे बुद्धिमान लोगो! मुझसे डरते रहो।"
व्याख्या:
यह आयत हज के लिए एक संपूर्ण दिशा-निर्देश है, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. हज का समय: "अल-हज्जु अशहुरुम मअलुमात"
हज केवल इस्लामी कैलेंडर के आखिरी तीन महीनों (शव्वाल, ज़िल-क़दह और ज़िल-हिज्जा के पहले दस दिन) में ही अदा किया जा सकता है। यह समय सारी दुनिया के मुसलमानों के लिए एक समान और ज्ञात है, जो एकता का प्रतीक है।
2. हज की आचार संहिता (Code of Conduct): "फ़ला रफस वला फुसूक़ वला जिदाल फिल हज्ज"
जब कोई व्यक्ति इहराम बाँध लेता है, तो उस पर तीन चीजें सख्ती से वर्जित हो जाती हैं:
रफस (رفث): अश्लील बातें, कामुक विचार और पत्नी के साथ संभोग। यह मन और जुबान की पवित्रता की ओर इशारा करता है।
फुसूक़ (فسوق): सभी प्रकार के पाप और अवज्ञा। इसमें झूठ बोलना, ग़ीबत (चुगली) करना, किसी को नुकसान पहुँचाना, या कोई भी गुनाह शामिल है।
जिदाल (جدال): बेकार की बहस, झगड़ा और तकरार। हज एकता और शांति का प्रतीक है, इसलिए वहाँ झगड़ा करना इसकी भावना के विपरीत है।
3. प्रोत्साहन और चेतावनी: "व मा तफअलू मिन खैरिन यअ'लमहुल्लाह"
अल्लाह यह याद दिलाता है कि वह हर छोटी-बड़ी नेकी को देख रहा है। यह बात हाजी को और अधिक नेकी करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
4. दो प्रकार का ज़हीरा (Two Types of Provision): "व तज़व्वदू फ़इन्ना खैरज़ जादित तक़वा"
भौतिक ज़हीरा (तज़व्वदू): अल्लाह हाजियों को सांसारिक ज़रूरत का सामान (पैसा, खाना-पीना) ले जाने का आदेश देता है, ताकि वे दूसरों पर बोझ न बनें।
आध्यात्मिक ज़हीरा (खैरज़ जादि): लेकिन अल्लाह स्पष्ट करता है कि सबसे बेहतर और स्थायी ज़हीरा "तक़वा" (अल्लाह का डर और परहेज़गारी) है। यही वह चीज़ है जो मनुष्य को दुनिया और आखिरत में काम आएगी।
5. अंतिम संबोधन: "वत्तक़ूनि या उलिल अलबाब"
आयत का अंत एक सीधे आह्वान के साथ होता है: "हे बुद्धिमान लोगो! मुझसे डरो।" यह संदेश विशेष रूप से समझदार लोगों के लिए है क्योंकि वे ही इसकी गहराई को समझ सकते हैं कि हज का असली उद्देश्य अल्लाह की इबादत और उससे डरना है, न कि सिर्फ बाहरी रस्में अदा करना।
4. शिक्षा और सबक (Lesson):
हज एक विशिष्ट इबादत है: इसके अपने निर्धारित समय और नियम हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है।
आचरण की शुद्धता: हज सिर्फ शारीरिक रस्में नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म की पूर्ण शुद्धता की मांग करता है।
तक़वा सर्वोत्तम संपत्ति है: दुनिया की सारी भौतिक तैयारियाँ तक़वा के बिना अधूरी हैं। असली सफलता अल्लाह का डर है।
एकता और शांति: हज के दौरान झगड़ा और बहस वर्जित है, जो इस बात का प्रतीक है कि यह समागम शांति और भाईचारे के लिए है।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):
अतीत (Past) के लिए:
इस आयत ने जाहिली अरब समाज में प्रचलित उन गलत प्रथाओं को समाप्त किया जहाँ हज के दौरान भी झगड़े-फसाद और अश्लीलता होती थी। इसने हज को एक पवित्र और अनुशासित इबादत में बदल दिया।
वर्तमान (Present) के लिए:
आधुनिक हज प्रबंधन: आज, करोड़ों हाजी इन्हीं नैतिक नियमों का पालन करते हुए हज अदा करते हैं। यह आयत उन्हें याद दिलाती है कि हज की भावना केवल कुछ स्थानों पर जाने और रस्में निभाने में नहीं, बल्कि अपने आचरण को सुधारने में है।
सामाजिक सद्भाव: "ला जिदाल" (झगड़ा न करो) का सिद्धांत आज के हज में और भी महत्वपूर्ण है, जहाँ दुनिया भर के अलग-अलग रंग, नस्ल और संस्कृति के लोग एक साथ इकट्ठा होते हैं। सहनशीलता और शांति बनाए रखना सफल हज की कुंजी है।
आध्यात्मिकता बनाम भौतिकता: यह आयत आज के हाजी को चेतावनी देती है कि वह महँगे होटल और सुविधाओं (भौतिक ज़हीरा) के पीछे भागते हुए हज के असली उद्देश्य "तक़वा" (आध्यात्मिक ज़हीरा) को न भूल जाए।
भविष्य (Future) के लिए:
शाश्वत आचार संहिता: जब तक हज कायम रहेगा, यह आयत हर हाजी के लिए एक शाश्वत आचार संहिता (Permanent Code of Conduct) के रूप में काम करेगी।
मानवता के लिए संदेश: हज में "ला फुसूक़ वला जिदाल" (न पाप करो और न झगड़ा) का सिद्धांत पूरी मानवजाति के लिए एक संदेश है कि शांति, सदाचार और एकता ही सच्ची सफलता का मार्ग है।
आंतरिक परिवर्तन का महत्व: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि किसी भी इबादत का अंतिम लक्ष्य बाहरी रूप नहीं, बल्कि आंतरिक परिवर्तन और अल्लाह के प्रति वास्तविक डर (तक़वा) है।