Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

क़ुरआन की आयत 2:198 की पूर्ण व्याख्या

 यह आयत हज के संदर्भ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और दयालु रियायत (छूट) प्रदान करती है। यह स्पष्ट करती है कि अल्लाह की पैदा की हुई नेमतों से फायदा उठाना और जायज़ तरीके से रोज़ी कमाना, इबादत के दौरान भी पूरी तरह से जायज़ है।

1. पूरी आयत अरबी में:

لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَن تَبْتَغُوا فَضْلًا مِّن رَّبِّكُمْ ۚ فَإِذَا أَفَضْتُم مِّنْ عَرَفَاتٍ فَاذْكُرُوا اللَّهَ عِندَ الْمَشْعَرِ الْحَرَامِ ۖ وَاذْكُرُوهُ كَمَا هَدَاكُمْ وَإِن كُنتُم مِّن قَبْلِهِ لَمِنَ الضَّالِّينَ

2. आयत के शब्दार्थ (Word-to-Word Meaning):

  • لَيْسَ (लैसा) : नहीं है

  • عَلَيْكُمْ (अलैकुम) : तुम पर

  • جُنَاحٌ (जुनाहुन) : कोई पाप/दोष/गुनाह

  • أَن (अन) : यह कि

  • تَبْتَغُوا (तब्तग़ू) : तलाश करो (चाहो)

  • فَضْلًا (फ़ज़लन) : अनुग्रह/फ़ज़ल/अतिरिक्त लाभ

  • مِّن (मिन) : से

  • رَّبِّكُمْ (रब्बिकुम) : तुम्हारे पालनहार का

  • فَإِذَا (फ़ा इज़ा) : फिर जब

  • أَفَضْتُم (अफ़ज़्तुम ) : तुम उमड़ पड़े (वापस आ गए)

  • مِّن (मिन) : से

  • عَرَفَاتٍ (अरफातिन) : अरफात (का मैदान)

  • فَاذْكُرُوا (फ़ज़्कुरू) : तो याद करो (ज़िक्र करो)

  • اللَّهَ (अल्लाह) : अल्लाह को

  • عِندَ (इंद) : पास

  • الْمَشْعَرِ (अल-मशअरि) : निशानी/संकेत के स्थान

  • الْحَرَامِ (अल-हराम) : पवित्र

  • وَاذْكُرُوهُ (वज़्कुरूहू) : और उसका याद करो

  • كَمَا (कमा) : जैसे

  • هَدَاكُمْ (हदाकुम) : उसने तुम्हें मार्गदर्शन दिया

  • وَإِن (व इन) : और यद्यपि

  • كُنتُم (कुंतुम) : तुम थे

  • مِّن (मिन) : से

  • قَبْلِهِ (कब्लिही) : इससे पहले

  • لَمِنَ (ला-मिन) : अवश्य ही में से

  • الضَّالِّينَ (अज़-ज़ाल्लीन) : गुमराह लोगों के


3. आयत का पूरा अर्थ और व्याख्या:

अर्थ: "तुमपर कोई गुनाह नहीं है कि तुम अपने रब का अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो। फिर जब तुम अरफात से वापस आ जाओ, तो मशअर-ए-हराम (मुज़दलिफा) के पास अल्लाह का ज़िक्र करो और उसका ज़िक्र करो जैसे उसने तुम्हें मार्गदर्शन दिया, हालाँकि इससे पहले तुम स्पष्ट रूप से गुमराह लोगों में से थे।"

व्याख्या:

इस आयत के दो मुख्य भाग हैं:

1. आर्थिक गतिविधि की अनुमति (Permission for Economic Activity): "लैसा अलैकुम जुनाहुन अन तब्तग़ू फ़ज़लम मिन रब्बिकुम"

  • ऐतिहासिक संदर्भ: जाहिलिय्यत के ज़माने में कुछ लोग यह समझते थे कि हज के दौरान व्यापार करना एक पाप है। इस गलतफहमी को दूर करते हुए अल्लाह स्पष्ट करता है कि हज के दौरान जायज़ तरीके से रोज़ी कमाने में कोई पाप नहीं है।

  • "फ़ज़ल" (अनुग्रह): इस शब्द में व्यापार, नौकरी, या कोई भी हलाल पेशा शामिल है जिससे इंसान अल्लाह की दी हुई रोज़ी कमाता है।

  • "मिन रब्बिकum" (तुम्हारे रब से): यह याद दिलाता है कि सारी रोज़ी का असली स्रोत अल्लाह ही है। व्यापार और मेहनत सिर्फ एक सबब (कारण) हैं।

2. आध्यात्मिक कर्तव्य की याद (Reminder of Spiritual Duty): "फ़ा इज़ा अफ़ज़्तुम मिन अरफातिन..."

  • यह अनुमति एक शर्त के साथ है। हज के मुख्य आध्यात्मिक कर्मों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।

  • आयत हज के एक महत्वपूर्ण रुक्न (स्तंभ) की ओर इशारा करती है: वुकूफ-ए-अरफात (अरफात के मैदान में ठहरना)।

  • जब हाजी अरफात से वापस आते हैं, तो उन्हें मुज़दलिफा (जिसे "अल-मशअरिल हराम" कहा गया है) में अल्लाह का ज़िक्र (याद) करना चाहिए।

  • "वज़्कुरूहू कमा हदाकुम" - "और उसका ज़िक्र करो जैसे उसने तुम्हें मार्गदर्शन दिया।" यह एक कृतज्ञता का भाव है। अल्लाह ने हज जैसी पूर्ण इबादत का तरीका सिखाकर हिदायत दी, इसलिए उसी के निर्देशानुसार उसका ज़िक्र करो।

  • "व इन कुंतुम मिन कब्लिही लमिनाज़ जाल्लीन" - "हालाँकि इससे पहले तुम स्पष्ट रूप से गुमराह लोगों में से थे।" यह अतीत की गुमराही को याद दिलाकर वर्तमान की हिदायत के प्रति कृतज्ञता का भाव पैदा करता है।


4. शिक्षा और सबक (Lesson):

  • धर्म और दुनिया का संतुलन: इस्लाम एक संतुलित जीवन-पद्धति है। यह इबादत और रोज़ी कमाने के बीच कोई टकराव पैदा नहीं करता। दोनों को एक साथ और जायज़ तरीके से अंजाम दिया जा सकता है।

  • हलाल रोज़ी की अहमियत: हलाल तरीके से कमाई करना कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि यह स्वयं एक इबादत है।

  • आध्यात्मिक प्राथमिकताएँ: दुनियावी फायदे की अनुमति है, लेकिन इबादत और ज़िक्र-ए-इलाही को प्राथमिकता देना ज़रूरी है।

  • अल्लाह के एहसान को याद रखो: हमें हमेशा अल्लाह के उस एहसान को याद रखना चाहिए जिसने हमें गुमराही से निकालकर सीधा रास्ता दिखाया।


5. अतीत, वर्तमान और भविष्य से प्रासंगिकता (Relevancy):

  • अतीत (Past) के लिए:

    • इस आयत ने प्रारंभिक मुस्लिम समाज में एक बहुत बड़ी गलतफहमी को दूर किया। इसने हज यात्रा को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाया, क्योंकि लंबी यात्रा का खर्च व्यापार के जरिए निकाला जा सकता था।

  • वर्तमान (Present) के लिए:

    • हज और आजीविका: आज भी, कई हाजी हज की यात्रा के दौरान छोटा-मोटा व्यापार करते हैं या अपने व्यवसाय के काम निपटाते हैं। यह आयत उनके लिए एक धार्मिक आधार प्रदान करती है।

    • कर्म और आध्यात्मिकता: आज की दुनिया में, जहाँ लोग बहुत व्यस्त हैं, यह आयत यह सिखाती है कि कर्मठ जीवन और आध्यात्मिक जीवन एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। ईमानदारी से काम करना भी अल्लाह की रज़ा हासिल करने का एक तरीका है।

    • इस्लामिक बैंकिंग और फाइनेंस: हज के समय होने वाले व्यापार को हलाल तरीके से करने का यह सिद्धांत, आज के इस्लामिक वित्तीय उद्योग के लिए भी मार्गदर्शक है।

  • भविष्य (Future) के लिए:

    • शाश्वत मार्गदर्शन: यह आयत हमेशा मुसलमानों को यह याद दिलाती रहेगी कि इस्लाम एक व्यावहारिक धर्म है जो मनुष्य की भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों ज़रूरतों को पूरा करता है।

    • नए व्यवसाय models: भविष्य में डिजिटल व्यापार और नए प्रकार के पेशों के लिए भी यह सिद्धांत लागू होगा कि हलाल रोज़ी कमाना इबादत में कोई रुकावट नहीं है, बशर्ते इबादत के मुख्य कर्तव्यों को न भुलाया जाए।

    • जीवन का संतुलन: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को "Work-Life-Spiritual Balance" का एक दिव्य मॉडल प्रदान करती रहेगी।