यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की उनतालीसवीं आयत (2:39) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।
कुरआन 2:39 - "वल्लजीना कफरू व कज्जबू बि आयातिना उलाइका अशाबुन नार, हुम फीहा खालिदून"
(وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَٰئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ)
हिंदी अर्थ: "और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही जहन्नमी हैं, वे उसमें सदैव रहने वाले हैं।"
यह आयत पिछली आयत (2:38) में दिए गए आशावादी वादे का दूसरा पहलू प्रस्तुत करती है। जहाँ आयत 38 में हिदायत का पालन करने वालों के लिए शुभ सूचना थी, वहीं यह आयत उन लोगों के भयानक परिणाम की घोषणा करती है जो अल्लाह के मार्गदर्शन को ठुकरा देते हैं।
आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।
1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)
व (Wa): और (And)
अल्लजीना (Allazeena): जिन लोगों ने (Those who)
कफरू (Kafaroo): इनकार किया (Disbelieved)
व (Wa): और (And)
कज्जबू (Kazzaboo): झुठलाया (Denied)
बि आयातिना (Bi aayaatinaa): हमारी आयतों को (Our verses)
उलाइका (Ulaaika): वे लोग (Those)
अशाबुन (Ashaabu): साथी हैं (Companions of)
अन-नार (An-naar): आग (The Fire)
हुम (Hum): वे (They)
फीहा (Feehaa): उसमें (In it)
खालिदून (Khaalidoon): सदैव रहने वाले (Will abide forever)
2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)
यह आयत उन लोगों की पहचान और उनके परिणाम को तीन स्पष्ट चरणों में बताती है:
1. अपराध की प्रकृति: इनकार और झूठ (The Nature of the Crime: Denial and Falsehood)
आयत उन लोगों के दो गंभीर अपराध गिनाती है:
"अल्लजीना कफरू" - "जिन लोगों ने इनकार किया।"
"कुफ्र" का अर्थ है 'ढकना' या 'इनकार करना'। यह अल्लाह, उसके पैगंबरों, आख़िरत के दिन और उसके दिए हुए मार्गदर्शन के प्रति जानबूझकर की गई अकृतज्ञता और इनकार की मानसिकता है।
यह एक आंतरिक स्थिति है, दिल का एक फैसला।
"व कज्जबू बि आयातिना" - "और हमारी आयतों को झुठलाया।"
"आयात" से तात्पर्य अल्लाह की निशानियों से है, जो दो प्रकार की हैं:
कौनाती आयत: ब्रह्मांड और मनुष्य के अंदर छिपी अल्लाह की निशानियाँ (जैसे आकाश, पहाड़, इंसान की रचना)।
कुरआनी आयत: कुरआन की आयतें, जो स्पष्ट मार्गदर्शन और प्रमाण हैं।
"तकज़ीब" (झुठलाना) एक बाहरी क्रिया है। यह कुफ्र की मानसिकता का व्यावहारिक रूप है। इसमें अल्लाह की आयतों का मजाक उड़ाना, उन पर तर्क-वितर्क करना या उन्हें झूठा बताना शामिल है।
2. परिणाम की घोषणा: जहन्नम के साथी (The Declaration of the Outcome: Companions of the Fire)
"उलाइका अशाबुन नार" - "वही जहन्नमी हैं।"
"अशाबुन नार" का अर्थ है "आग के साथी"। यह एक भयानक पहचान है जो बताती है कि उनका अंतिम ठिकाना जहन्नम की आग है।
यह कोई अन्याय नहीं, बल्कि उनके अपने कर्मों का न्यायसंगत परिणाम है। उन्होंने स्वयं अल्लाह की रहमत (मार्गदर्शन) को ठुकराकर आग को चुना है।
3. सजा की अवधि: शाश्वत वास (The Duration of the Punishment: Eternal Abode)
"हुम फीहा खालिदून" - "वे उसमें सदैव रहने वाले हैं।"
"खालिदून" शब्द पिछली आयत के "ला खौफुन अलैहिम व ला हुम यह्ज़नून" का सीधा और पूर्ण विपरीत है।
यह सजा अनंत काल तक के लिए है। यह इस बात का प्रतीक है कि अल्लाह के मार्गदर्शन को ठुकराने का पाप इतना गंभीर है कि उसकी सजा भी अस्थायी नहीं, बल्कि स्थायी है।
3. आयत 38 और 39 का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study of Verses 38 and 39)
इन दोनों आयतों को एक साथ पढ़ने पर स्पष्ट विपरीतता दिखाई देती है, जो मनुष्य के सामने दो स्पष्ट विकल्प रखती है:
| पहलू | आयत 2:38 (हिदायत का पालन करने वाले) | आयत 2:39 (हिदायत को ठुकराने वाले) |
|---|---|---|
| कार्य | मार्गदर्शन का पालन करते हैं | इनकार करते हैं और आयतों को झुठलाते हैं |
| परिणाम | जन्नत | जहन्नम |
| भविष्य | कोई भय नहीं | स्थायी भय और यातना |
| अतीत | कोई दुख नहीं | स्थायी पश्चाताप और दुख |
| अवधि | सदैव रहने वाले (जन्नत में) | सदैव रहने वाले (जहन्नम में) |
4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)
गंभीर चेतावनी: यह आयत हर इंसान के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह दर्शाती है कि अल्लाह के मार्गदर्शन को हल्के में लेना या उसका मजाक उड़ाना एक भयानक परिणाम को आमंत्रित करना है।
जिम्मेदारी का एहसास: यह आयत हमें हमारे विश्वास और कर्मों की जिम्मेदारी का एहसास कराती है। हमारे चुनाव का एक स्थायी परिणाम होगा।
सच्चाई को स्वीकार करना: यह आयत हमें सिखाती है कि हमें अहंकार छोड़कर सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। इब्लीस का पतन भी अहंकार के कारण ही हुआ था।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 2:39 मानव जाति के सामने स्पष्ट कर देती है कि अल्लाह की दया और क्षमा की एक सीमा है। जो लोग जानबूझकर सत्य का इनकार करते हैं और अल्लाह की निशानियों को झुठलाते हैं, उनके लिए जहन्नम की स्थायी यातना तैयार है। यह आयत पिछली आयत में दिए गए वादे को पूरा करती है और मनुष्य के सामने दो स्पष्ट मार्ग रखती है: या तो हिदायत को स्वीकार करो और शाश्वत शांति पाओ, या उसका इनकार करो और शाश्वत यातना के भागी बनो। यह चुनाव हर इंसान को स्वयं करना है।