Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन 2:4 - "वल्लजीना यू'मिनूना बिमा उन्जिला इलैका व मा उन्जिला मिन कब्लिका व बिल आखिरति हम यूकिनून" (وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَبِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ)

 यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की चौथी आयत (2:4) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:4 - "वल्लजीना यू'मिनूना बिमा उन्जिला इलैका व मा उन्जिला मिन कब्लिका व बिल आखिरति हम यूकिनून" (وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَبِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ)

हिंदी अर्थ: "और जो लोग उस (वह्य) पर ईमान रखते हैं जो आपकी ओर उतारी गई है और (उस पर भी) जो आपसे पहले उतारी गई थी, और वे आख़िरत (परलोक) के (भी) पक्के यक़ीन रखने वाले हैं।"

यह आयत "मुत्तक़ीन" (ईश्वर-भीरु लोगों) के गुणों का वर्णन करने वाली आयतों की श्रृंखला को जारी रखती है। पिछली आयत (2:3) में तीन गुण बताए गए थे, और यह आयत उसमें तीन और महत्वपूर्ण गुण जोड़ती है। यह आयत एक मोमिन की आस्था के दायरे और गहराई को परिभाषित करती है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • वल्लजीना (Wallazeena): और जो लोग

  • यू'minoona (Yu'minoona): ईमान रखते हैं (विश्वास करते हैं)

  • बिमा (Bima): उस पर (जिस पर)

  • उन्जिला (Unzila): उतारा गया

  • इलैका (Ilaika): आपकी ओर (पैगंबर मुहम्मद सल्ल. की ओर)

  • व मा (Wa ma): और जो (चीज़)

  • मिन कब्लिका (Min qablika): आपसे पहले

  • व बिल आख़िरति (Wa bil aakhirati): और आख़िरत (परलोक) पर

  • हम यूकिनून (Hum yooqinoon): वे पक्का यक़ीन रखते हैं


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

यह आयत "मुत्तक़ीन" के तीन और मौलिक गुणों का वर्णन करती है:

1. पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) पर उतारे गए वह्य पर ईमान (Belief in what was revealed to Prophet Muhammad)

  • "जो आपकी ओर उतारी गई" से सीधा तात्पर्य पवित्र कुरआन से है।

  • इस गुण का अर्थ है कि एक मोमिन कुरआन को अल्लाह का कलाम (वचन) मानता है, न कि पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) की अपनी रचना।

  • वह कुरआन की हर आयत, हर आदेश और हर निषेध को पूर्ण रूप से स्वीकार करता है, चाहे वह उसकी समझ में आए या न आए। यह पैगंबर की पैगंबरी और उनके संदेश की सच्चाई पर पूर्ण विश्वास को दर्शाता है।

2. पिछले पैगंबरों पर उतारे गए वह्य पर ईमान (Belief in what was revealed to previous Prophets)

  • "जो आपसे पहले उतारी गई" से तात्पर्य अल्लाह की ओर से पिछले पैगंबरों पर उतारी गई मूल और असली किताबों से है, जैसे:

    • पैगंबर मूसा (अलैहिस्सलाम) पर तौरात (Torah)

    • पैगंबर दाऊद (अलैहिस्सलाम) पर ज़बूर (Psalms)

    • पैगंबर ईसा (अलैहिस्सलाम) पर इंजील (Gospel)

  • महत्वपूर्ण बिंदु: इसका मतलब यह नहीं है कि मुसलमान आज उपलब्ध बाइबिल के हर शब्द पर ईमान रखते हैं। इसका अर्थ है कि वे उन मूल और असली किताबों पर ईमान रखते हैं जो अल्लाह की ओर से उतारी गई थीं, लेकिन समय के साथ मनुष्यों ने उनमें परिवर्तन कर दिया।

  • इस गुण का महत्व:

    • धर्मों की एकता: यह इस्लाम के सार्वभौमिक संदेश को दर्शाता है। इस्लाम एक नया धर्म नहीं, बल्कि इब्राहीम, मूसा और ईसा जैसे सभी पैगंबरों के मूल संदेश की पुष्टि और पूर्णता है।

    • सहिष्णुता: यह दूसरे धर्मों के अनुयायियों के प्रति सम्मान का भाव पैदा करता है, क्योंकि वे भी अल्लाह के पैगंबरों की एक श्रृंखला का हिस्सा हैं।

3. आख़िरत (परलोक) पर दृढ़ यक़ीन (Certain Belief in the Hereafter)

  • "यूकिनून" शब्द बहुत ही मजबूत है। इसका अर्थ "यक़ीन" या "दृढ़ विश्वास" है, जो इतना पक्का हो कि उसमें ज़रा-सा भी संदेह न हो। यह सिर्फ एक सैद्धांतिक स्वीकृति नहीं, बल्कि एक जीवंत और प्रभावशाली विश्वास है।

  • आख़िरत पर यक़ीन के प्रभाव:

    • जिम्मेदारी की भावना: यह विश्वास इंसान के मन में यह बात बैठा देता है कि उसे अपने हर कर्म का हिसाब देना है। इससे उसके अंदर एक स्व-नियंत्रण पैदा होता है।

    • नैतिक आधार: यह दुनिया की असमानताओं और अत्याचारों के बावजूद इंसान को नेकी और सच्चाई पर डटे रहने की ताकत देता है, क्योंकि उसे पता है कि अंतिम न्याय आख़िरत में होगा।

    • दुनिया की मोहताजी कम करना: यह विश्वास इंसान को दुनिया की चकाचौंध और लालच से मुक्त करके एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है।


3. पिछली आयतों से संबंध (Connection with Previous Verses)

अब हम "मुत्तक़ीन" के छः गुणों का एक पूरा चित्र देख सकते हैं:

आयतगुणविवरण
2:31. ग़ैब पर ईमानअदृश्य सत्यों पर विश्वास (आधार)
2. नमाज़ कायम करनाअल्लाह के साथ संबंध (व्यक्तिगत इबादत)
3. खर्च करनाबंदों के साथ संबंध (सामाजिक जिम्मेदारी)
2:44. कुरआन पर ईमानअंतिम मार्गदर्शन पर विश्वास
5. पिछली किताबों पर ईमानऐतिहासिक मार्गदर्शन पर विश्वास
6. आख़िरत पर यक़ीनअंतिम लक्ष्य पर दृढ़ विश्वास

ये सभी गुण मिलकर एक संपूर्ण "मुत्तक़ी" (ईश्वर-भीरु) का चरित्र बनाते हैं, जो आस्था, इबादत और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ-साथ ऐतिहासिक निरंतरता और अंतिम जवाबदेही में विश्वास रखता है।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:4 एक सच्चे मोमिन की आस्था के दायरे को विस्तार देती है। यह सिखाती है कि ईमान सिर्फ कुरआन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अल्लाह के सभी पैगंबरों और उन पर उतरी हुई मूल किताबों में विश्वास की माँग करता है। साथ ही, यह आख़िरत के प्रति एक दृढ़ और जीवंत यक़ीन की आवश्यकता पर जोर देती है, जो इंसान के पूरे जीवन और व्यवहार को एक उच्च उद्देश्य प्रदान करती है। यह आयत बताती है कि "मुत्तक़ीन" वे लोग हैं जिनकी आस्था समय और स्थान की सीमाओं से परे है और जिनका विश्वास इतना गहरा है कि वह उनके कर्मों में स्पष्ट दिखाई देता है।