1. पूरी आयत अरबी में:
ثُمَّ بَعَثْنَاكُم مِّن بَعْدِ مَوْتِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):
ثُمَّ: फिर / इसके बाद
بَعَثْنَاكُم: हमने तुम्हें जिला उठाया / पुनर्जीवित किया
مِّن بَعْدِ: के बाद
مَوْتِكُمْ: तुम्हारी मौत के
لَعَلَّكُمْ: ताकि तुम
تَشْكُرُونَ: शुक्र अदा करो (कृतज्ञ बनो)
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत पिछली आयत (2:55) में वर्णित घटना का अगला चरण बताती है। बनी इस्राईल ने अल्लाह को सीधे देखने की जो असंभव मांग की थी, उसके परिणामस्वरूप एक भीषण आकाशीय प्रकोप (साइक़ा/बिजली) ने उन्हें आ लिया और वे मृत हो गए। अब इस आयत में अल्लाह उन पर एक और बड़ा एहसान याद दिला रहा है - उन्हें मौत के बाद दोबारा जिला उठाना।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "फिर हमने तुम्हें तुम्हारी मौत के बाद जिला उठाया..."
"बअसनाकुम" (हमने तुम्हें जिला उठाया): यह शब्द कयामत के दिन पुनर्जीवन (Resurrection) के लिए भी प्रयोग होता है। यहाँ यह एक दुनियावी पुनर्जीवन (Temporary revival) था, जो अल्लाह की शक्ति का एक जीवंत प्रमाण था।
चमत्कार का उद्देश्य: यह पुनर्जीवन सिर्फ एक चमत्कार दिखाने के लिए नहीं था। इसके पीछे एक गहरा शैक्षणिक और दयापूर्ण उद्देश्य था:
उन्हें सजा देकर यह एहसास दिलाना कि अल्लाह की अवज्ञा का परिणाम कितना भयानक हो सकता है।
उन्हें दोबारा जीवन देकर यह मौका देना कि वे अपनी गलती सुधारें और सही रास्ते पर लौट आएं।
भाग 2: "...ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो।"
अल्लाह की दया का उद्देश्य: अल्लाह एक बार फिर अपनी दया का उद्देश्य स्पष्ट कर रहा है। माफी और दूसरा मौका देने का उद्देश्य केवल इतना है कि इंसान "शुक्र" यानी कृतज्ञता दिखाए।
"ला'ल्ल" (ताकि): यह शब्द फिर से अल्लाह की इच्छा और आशा को दर्शाता है। अल्लाह चाहता है कि उसका बंदा कृतज्ञ बने, लेकिन वह उसे मजबूर नहीं करता।
4. सबक (Lessons)
अल्लाह की पुनर्जीवन की शक्ति: यह आयत कयामत के दिन पुनर्जीवन के सिद्धांत को स्थापित करने के लिए एक प्रत्यक्ष प्रमाण है। जिस अल्लाह ने बनी इस्राईल को दुनिया में ही दोबारा जीवन दिया, वह कयामत के दिन सारी मानवजाति को जरूर जिला उठाएगा।
दूसरे मौके की दया: अल्लाह बहुत दयावान है। वह इंसान को गुनाह और अवज्ञा के लिए दंड तो देता है, लेकिन साथ ही उसे सुधार का मौका भी देता है। मौत के बाद जीवन इस दूसरे मौके का चरम उदाहरण है।
कृतज्ञता का महत्व: अल्लाह की नेमतों, माफी और दूसरे मौकों का सबसे बेहतरीन जवाब "शुक्र" यानी कृतज्ञता है। कृतज्ञता ईमान का एक अनिवार्य हिस्सा है।
ईमान के बाद की जिम्मेदारी: जिस तरह बनी इस्राईल को चमत्कारिक रूप से जीवन दिया गया और फिर उनसे कृतज्ञता की उम्मीद की गई, उसी तरह हर मोमिन को अपने जीवन को अल्लाह की इबादत और शुक्र में बिताना चाहिए।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल को याद दिला रही थी कि जिस अल्लाह ने तुम्हें मौत के बाद जीवन दिया, उसी के आखिरी पैगंबर पर ईमान क्यों नहीं लाते?
यह मक्का के मुशरिकीन के लिए एक सबक थी जो पुनर्जीवन पर सवाल उठाते थे।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आज के संदर्भ में यह आयत बहुत गहरा अर्थ रखती है:
आध्यात्मिक पुनर्जीवन: हर इंसान गुनाहों और पापों की "मौत" मर चुका होता है। जब वह तौबा करता है और अल्लाह की ओर लौटता है, तो यह उसके आध्यात्मिक पुनर्जीवन का क्षण होता है। अल्लाह की दया उसे दोबारा जीवन दे देती है।
संकटों से उबारना: कई बार इंसान ऐसे संकटों (बीमारी, दिवालियापन, मानसिक अवसाद) में फंस जाता है जो एक "मौत" के समान होते हैं। जब अल्लाह उसे उस संकट से निकालता है, तो यह एक प्रकार का "बअस" (पुनर्जीवन) ही होता है। हमारा फर्ज है कि हम उस पर शुक्र अदा करें।
कयामत पर ईमान: आज का विज्ञान-पूजक इंसान पुनर्जीवन को नहीं मानता। यह आयत उसे यकीन दिलाती है कि पुनर्जीवन संभव है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत कयामत तक मानवजाति के लिए पुनर्जीवन के सिद्धांत का एक ठोस प्रमाण बनी रहेगी।
यह आयत हमेशा हर उस इंसान के लिए आशा की किरण बनी रहेगी जो गुनाहों में डूबकर अपने आप को "आध्यात्मिक रूप से मृत" समझता है। यह संदेश हमेशा जीवित रहेगा कि अल्लाह की दया से दोबारा जीवन पाना संभव है, बशर्ते इंसान सच्चे दिल से लौटे।
यह आयत हमें यह सिखाती रहेगी कि हमारे जीवन का उद्देश्य अल्लाह का शुक्र अदा करना है, क्योंकि यह जीवन स्वयं उसकी एक देन है।