1. पूरी आयत अरबी में:
وَظَلَّلْنَا عَلَيْكُمُ الْغَمَامَ وَأَنزَلْنَا عَلَيْكُمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوَىٰ كُلُوا مِن طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَٰكِن كَانُوا أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):
وَظَلَّلْنَا: और हमने छाया कर दी
عَلَيْكُمُ: तुम पर
الْغَمَامَ: बादलों की
وَأَنزَلْنَا: और हमने उतारा
عَلَيْكُمُ: तुम पर
الْمَنَّ: 'मन्न' (एक विशेष भोजन)
وَالسَّلْوَىٰ: और 'सलवा' (बटेर पक्षी)
كُلُوا: खाओ
مِن: से
طَيِّبَاتِ: पवित्र/शुद्ध चीज़ों में से
مَا رَزَقْنَاكُمْ: जो हमने तुम्हें रोज़ी दी है
وَمَا ظَلَمُونَا: और उन्होंने हमपर ज़ुल्म नहीं किया
وَلَٰكِن: लेकिन
كَانُوا: वे थे
أَنفُسَهُمْ: अपने आप को
يَظْلِمُونَ: ज़ुल्म करने वाले
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत बनी इस्राईल पर अल्लाह के एहसानों की सूची जारी रखती है। यह घटना उस समय की है जब वे फिरौन से मुक्त होकर तीह (Sinai) के रेगिस्तान में भटक रहे थे। इस कठिन और बंजर वातावरण में अल्लाह ने उनकी हर मूलभूत आवश्यकता - सुरक्षा और भोजन - का पूरा प्रबंध कर दिया, जो उसकी असीम दया और ताकत का प्रमाण था।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "और हमने तुमपर बादलों की छाया कर दी..."
सुरक्षा और आराम का एहसान: रेगिस्तान की भीषण गर्मी और धूप से बचाने के लिए अल्लाह ने उनके सिर पर बादलों का एक छत्र लगा दिया, जो उनका मार्गदर्शन भी करता था और छाया भी प्रदान करता था। यह एक असाधारण दैवीय सुरक्षा थी।
भाग 2: "...और हमने तुमपर 'मन्न' और 'सलवा' उतारा।"
भोजन का एहसान: बंजर रेगिस्तान में, जहाँ खाने-पीने का कोई साधन नहीं था, अल्लाह ने स्वर्गीय भोजन उपलब्ध कराया।
अल-मन्न (मन्न): यह एक मीठा, शहद जैसा पदार्थ था जो सुबह-सुबह पेड़ों और चट्टानों पर ओस की तरह जमा मिलता था।
अस-सलवा (सलवा): यह एक विशेष प्रकार का बटेर पक्षी था जो बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होता था और जिसे आसानी से पकड़ा जा सकता था।
भाग 3: "(और कहा कि) खाओ उन पवित्र चीज़ों में से जो हमने तुम्हें रोज़ी दी हैं।"
हलाल और शुद्ध रोज़ी: अल्लाह ने न सिर्फ भोजन दिया, बल्कि वह भोजन "तय्यिबात" (पवित्र, शुद्ध, हलाल) था। यह आदेश दया और देखभाल का प्रतीक है।
भाग 4: "और उन्होंने हमपर ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि वे स्वयं अपने ऊपर ज़ुल्म कर रहे थे।"
सबसे महत्वपूर्ण सबक: यह वाक्यांश पूरी आयत का सार है। अल्लाह स्पष्ट करता है कि बनी इस्राईल की अकृतज्ञता और विद्रोह से अल्लाह को कोई नुकसान नहीं होता। उनका ज़ुल्म (अवज्ञा और अकृतज्ञता) का बुरा परिणाम सीधे उन्हीं को भुगतना पड़ता है। जो लोग अल्लाह के आदेशों को नहीं मानते, वे वास्तव में अपने ही अस्तित्व और आत्मा को नुकसान पहुँचाते हैं।
4. सबक (Lessons)
अल्लाह की देखभाल: अल्लाह अपने बंदों की हर छोटी-बड़ी जरूरत (छाया, भोजन) का ख्याल रखता है, खासकर तब जब वे उसके मार्ग में होते हैं।
रोज़ी का स्रोत: रोज़ी का वास्तविक स्रोत अल्लाह है। वह किसी भी हालात में, किसी भी स्थान पर अपने बंदों के लिए रोज़ी के रास्ते बना सकता है।
शुक्रगुज़ारी का फर्ज: अल्लाह की नेमतों पर शुक्र अदा करना हर मोमिन का कर्तव्य है। नेमतें मिलने के बाद अकृतज्ञता सबसे बड़ा अपराध है।
गुनाह का वास्तविक शिकार: गुनाह करने से अल्लाह को कोई नुकसान नहीं होता। गुनाह का सीधा और मुख्य शिकार गुनाह करने वाला खुद होता है, क्योंकि वह अपने आप को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाता है।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल को उनके ऊपर हुए अतुल्य एहसान याद दिला रही थी ताकि वे अपनी अकृतज्ञता को पहचानें और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) पर ईमान ले आएं।
यह दर्शाती थी कि अल्लाह की मदद हर संकट में आ सकती है।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक "मन्न और सलवा": आज का मुसलमान भी अपने जीवन में अल्लाह की अनगिनत नेमतों (स्वास्थ्य, पैसा, परिवार, इस्लाम) से घिरा हुआ है। क्या हम उन पर शुक्र अदा करते हैं या बनी इस्राईल की तरह अकृतज्ञ हैं?
रोज़ी का डर: लोग रोज़ी के लिए हलाल-हराम की परवाह किए बिना दौड़ते हैं। यह आयत याद दिलाती है कि रोज़ी देने वाला अल्लाह है और उसने हलाल रोज़ी का वादा किया है।
गुनाह का भ्रम: आज लोग सोचते हैं कि हलाल-हराम का पालन करने से उनकी रोज़ी कम हो जाएगी। यह आयत इस भ्रम को तोड़ती है और दर्शाती है कि अल्लाह अपने आज्ञाकारी बंदों के लिए रोज़ी के अप्रत्याशित स्रोत खोल देता है।
आत्म-धोखा: जब हम गुनाह करते हैं (झूठ बोलना, ब्याज खाना, ग़ैर-महरम से संबंध), तो हम सोचते हैं कि हमने किसी और को धोखा दिया। यह आयत स्पष्ट करती है कि हम अपने आप को धोखा दे रहे हैं।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह आश्वासन देती रहेगी कि अल्लाह हर हाल में अपने बंदों की देखभाल करता है।
यह हमेशा मानवता को यह सिखाती रहेगी कि गुनाह का सबसे बड़ा नुकसान गुनाहगार को ही होता है और अल्लाह की नेमतों पर शुक्र अदा करना सच्ची सफलता की कुंजी है।
यह संदेश हमेशा प्रासंगिक रहेगा कि अल्लाह पर भरोसा (तवक्कुल) रखो और हलाल रोज़ी की तलाश करो, अल्लाह तुम्हारे लिए रास्ता निकाल देगा।