1. पूरी आयत अरबी में:
وَإِذْ قُلْنَا ادْخُلُوا هَٰذِهِ الْقَرْيَةَ فَكُلُوا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ رَغَدًا وَادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَقُولُوا حِطَّةٌ نَّغْفِرْ لَكُمْ خَطَايَاكُمْ ۚ وَسَنَزِيدُ الْمُحْسِنِينَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):
وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब
قُلْنَا: हमने कहा
ادْخُلُوا: दाखिल हो जाओ
هَٰذِهِ: इस
الْقَرْيَةَ: बस्ती (शहर) में
فَكُلُوا: तो खाओ
مِنْهَا: उसमें से
حَيْثُ: जहाँ
شِئْتُمْ: तुम चाहो
رَغَدًا: खूब फैलाव / आराम से
وَادْخُلُوا: और दाखिल होओ
الْبَابَ: दरवाजे से
سُجَّدًا: सजदे की हालत में (झुककर)
وَقُولُوا: और कहो
حِطَّةٌ: "हित्ततुन" (हमारे गुनाह धो डालो)
نَّغْفِرْ: हम माफ कर देंगे
لَكُمْ: तुम्हारे
خَطَايَاكُمْ: तुम्हारे गुनाह
وَسَنَزِيدُ: और हम बढ़ा देंगे
الْمُحْسِنِينَ: अच्छा करने वालों को
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत बनी इस्राईल के इतिहास की एक और महत्वपूर्ण घटना का वर्णन करती है। यह घटना तब की है जब वे 40 साल के रेगिस्तानी जीवन के बाद अंततः "बैतुल मुक़द्दस" (Jerusalem) या उसके आसपास के शहर में प्रवेश करने वाले थे। यह उनके लिए वादा किए गए भूमि में प्रवेश का क्षण था। अल्लाह ने उन्हें एक बहुत ही आसान परीक्षा दी और सफलता पर बड़ा इनाम देने का वादा किया।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब हमने कहा: 'इस बस्ती (शहर) में दाखिल हो जाओ..."
वादा की पूर्ति: यह अल्लाह के उस वादे की पूर्ति थी जो उसने उन्हें फिरौन से मुक्ति दिलाने के बाद किया था। यह एक पवित्र भूमि थी।
भाग 2: "'...तो उसमें से जहाँ चाहो, खूब आराम से (रगदन) खाओ।'"
असीम अनुमति: अल्लाह ने उन्हें बिना किसी प्रतिबंध के शहर के हर प्रकार के फल और भोजन का आनंद लेने की अनुमति दे दी। "रगदन" शब्द भरपूरता, आसानी और विलासिता को दर्शाता है।
भाग 3: "'...और दरवाज़े से सजदे की हालत में (विनम्रतापूर्वक) दाखिल होओ..."
विनम्रता की परीक्षा: यह अल्लाह का आदेश था जो एक साधारण सी परीक्षा थी। उन्हें शहर के मुख्य दरवाजे से विनम्रतापूर्वक, झुककर (सजदे की स्थिति में) प्रवेश करना था। यह अल्लाह के प्रति कृतज्ञता और विनम्रता का प्रतीक था।
भाग 4: "'...और कहो: 'हित्ततुन' (हे अल्लाह! हमारे गुनाह धो डाल)...'"
क्षमा याचना: "हित्ततुन" एक प्रार्थना थी जिसका अर्थ है "हमारे पापों को उतार दे" या "हमें हल्का कर दे।" यह दर्शाता है कि अल्लाह के एहसानों के बीच भी इंसान को अपनी कमजोरी और गुनाहगारी का एहसास रखना चाहिए और अल्लाह से माफी माँगनी चाहिए।
भाग 5: "'... (तो) हम तुम्हारे गुनाह माफ कर देंगे और हम अच्छा करने वालों को और (पुण्य) बढ़ा देंगे।'"
दोहरा इनाम: अल्लाह ने इस साधारण आज्ञापालन के लिए एक दोहरा पुरस्कार दिया:
माफी: उनके पिछले गुनाहों की माफी।
वृद्धि: "मुहसिनीन" (अच्छा करने वालों) के लिए अतिरिक्त पुण्य और सम्मान। यह अल्लाह की उदारता को दर्शाता है।
4. सबक (Lessons)
विनम्रता की कुंजी: सफलता और अल्लाह की कृपा पाने की कुंजी विनम्रता (सजदा) है। घमंड और अहंकार विनाश का कारण बनता है।
कृतज्ञता और क्षमा याचना: अल्लाह की नेमतों का आनंद लेते हुए भी उसके सामने अपनी गुनाहगारी का एहसास बनाए रखना चाहिए और माफी माँगते रहना चाहिए।
अल्लाह की उदारता: अल्लाह अपने बंदों से बहुत छोटे-छोटे अमलों का बहुत बड़ा बदला देता है। एक छोटी सी आज्ञा का पालन करने पर उसने माफी और अतिरिक्त पुण्य का वादा किया।
ईमान और आज्ञाकारिता: ईमान केवल मान्यताओं का नाम नहीं है, बल्कि व्यावहारिक आज्ञाकारिता और विनम्रता है।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल को उनकी एक और नाकामी याद दिला रही थी (जैसा कि अगली आयत में आता है कि उन्होंने इस आदेश का पालन नहीं किया)। इसका उद्देश्य था कि वे अपनी हठधर्मिता छोड़ दें।
यह दर्शाती थी कि अल्लाह की आज्ञाएँ बहुत आसान होती हैं और उनका पालन करने में ही इंसान की भलाई है।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक "हित्ततुन": आज का मुसलमान अल्लाह की अनगिनत नेमतों (शांति, रोज़ी, सुरक्षा) में जी रहा है। क्या हम उसके प्रति विनम्र हैं? क्या हम नमाज़ में सजदे की हालत में उससे अपने गुनाहों की माफी माँगते हैं? यह आयत हमें यही करने का निमंत्रण देती है।
विनम्रता बनाम घमंड: आज का समाज घमंड, अहंकार और स्वार्थ से भरा है। इस आयत का संदेश है कि सच्ची सफलता और माफी विनम्रता में है।
छोटे अमल का महत्व: लोग सोचते हैं कि बड़े-बड़े कर्मों से ही अल्लाह खुश होता है। यह आयत सिखाती है कि एक सजदा, एक दुआ "हित्ततुन" भी अल्लाह को इतना पसंद आता है कि वह गुनाह माफ कर देता है और पुण्य बढ़ा देता है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह संदेश देती रहेगी कि अल्लाह के सामने विनम्रता ही सफलता की कुंजी है।
यह हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि अल्लाह की नेमतों और सफलताओं के क्षणों में भी उससे क्षमा याचना करते रहना चाहिए।
यह आयत कयामत तक मानवता के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत स्थापित करती है: "दाखिल होओ विनम्रता से और माँगो क्षमा, ताकि तुम्हें माफी मिले और तुम्हारा ईनाम बढ़ाया जाए।"