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कुरआन की आयत 2:59 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

فَبَدَّلَ الَّذِينَ ظَلَمُوا قَوْلًا غَيْرَ الَّذِي قِيلَ لَهُمْ فَأَنزَلْنَا عَلَى الَّذِينَ ظَلَمُوا رِجْزًا مِّنَ السَّمَاءِ بِمَا كَانُوا يَفْسُقُونَ


2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • فَبَدَّلَ: तो बदल दिया

  • الَّذِينَ: जिन लोगों ने

  • ظَلَمُوا: ज़ुल्म किया

  • قَوْلًا: बात (शब्द) को

  • غَيْرَ: के अलावा

  • الَّذِي: जो

  • قِيلَ: कहा गया था

  • لَهُمْ: उनसे

  • فَأَنزَلْنَا: तो हमने उतारा

  • عَلَى: पर

  • الَّذِينَ: जिन लोगों ने

  • ظَلَمُوا: ज़ुल्म किया

  • رِجْزًا: प्लेग / प्रकोप

  • مِّنَ: से

  • السَّمَاءِ: आसमान

  • بِمَا: इस कारण कि

  • كَانُوا: वे होते थे

  • يَفْسُقُونَ: नाफरमानी करने वाले


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत पिछली आयत (2:58) का तार्किक परिणाम है। पिछली आयत में अल्लाह ने बनी इस्राईल को बैतुल मुक़द्दस में प्रवेश करने का आदेश दिया था, साथ ही विनम्रता (सजदे) और क्षमा याचना ("हित्ततुन" कहने) का निर्देश दिया था। इस आयत में बताया गया है कि बनी इस्राईल ने उस आसान आदेश के साथ क्या किया और उसका क्या परिणाम हुआ।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "तो जिन लोगों ने ज़ुल्म किया, उन्होंने उस बात को बदल दिया जो उनसे कही गई थी..."

  • "बद्दला" (बदल दिया): यह शब्द उनकी जानबूझकर की गई हेराफेरी और अवज्ञा को दर्शाता है। उन्होंने अल्लाह के स्पष्ट आदेश में जानबूझकर फेरबदल किया।

  • ज़ालिमों की हरकत: ऐतिहासिक व्याख्याओं के अनुसार, उन्होंने दो तरह से बदलाव किया:

    1. शब्दों में बदलाव: उन्होंने "हित्ततुन" (हमारे गुनाह धो डाल) के बजाय कोई और शब्द बोला। कुछ कहते हैं कि उन्होंने "हब्बतुन फी शअरतिन" (जौ का एक दाना) जैसे तुच्छ शब्द कहे, जो अल्लाह के आदेश का मज़ाक उड़ाने जैसा था।

    2. क्रिया में बदलाव: उन्होंने सजदे की हालत में दरवाजे से दाखिल होने के बजाय, अपने नितंबों के बल घुसरते हुए प्रवेश किया, जो एक उपहासपूर्ण क्रिया थी।

भाग 2: "...तो हमने उन ज़ालिमों पर आसमान से प्रकोप (रिज़) उतार दिया..."

  • तत्काल दंड: उनकी इस धृष्टता और अवज्ञा का तुरंत जवाब दिया गया। "रिज़" एक भयानक दंड था, जो संभवतः एक प्लेग (ताऊन) या कोई अन्य महामारी थी जिसने उन्हें आकाश से प्रभावित किया।

  • दंड का लक्ष्य: यह दंड सिर्फ उन "ज़ालिमों" के लिए था जिन्होंने यह बदलाव किया था, न कि पूरे समुदाय के लिए।

भाग 3: "...इस कारण कि वे नाफरमानी (फिस्क) करते थे।"

  • दंड का कारण: अल्लाह दंड का कारण बताता है - "बिमा कानू यफ्सिकून" - क्योंकि वे लगातार सीमाओं को लाँघने वाले (फासिक) बन गए थे।

  • फिस्क (नाफरमानी) का अर्थ: यह केवल एक गुनाह नहीं, बल्कि एक नियमित व्यवहार था। बार-बार अल्लाह के आदेशों को तोड़ना, उनका मज़ाक उड़ाना और उनमें फेरबदल करना उनकी आदत बन गई थी। यह दंड उनकी इसी स्थापित अवज्ञा का परिणाम था।


4. सबक (Lessons)

  1. अल्लाह के आदेशों में हेराफेरी गंभीर अपराध है: अल्लाह के धर्म में मनमाने बदलाव करना, उसके आदेशों का मज़ाक उड़ाना या उन्हें तोड़ना सबसे बड़े ज़ुल्मों में से एक है।

  2. विद्रोह की आदत खतरनाक है: जब इंसान लगातार छोटे-छोटे गुनाह करता रहता है, तो वह एक आदत बन जाती है (फिस्क) जो अंततः उसे बड़े दंड तक ले जाती है।

  3. दंड न्यायसंगत है: अल्लाह का दंड अनुचित नहीं है। यह इंसान के अपने कर्मों का सीधा परिणाम होता है। ज़ालिम स्वयं अपने लिए दंड का कारण बनते हैं।

  4. विनम्रता का महत्व: पिछली आयत में विनम्रता का आदेश और इस आयत में घमंड और उपहास का दंड, यह स्पष्ट करता है कि अल्लाह के सामने विनम्रता ही एकमात्र स्वीकार्य रवैया है।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल को उनकी एक और नाकामी और अवज्ञा याद दिला रही थी, ताकि वे अपने व्यवहार को सुधारें और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के मार्गदर्शन को स्वीकार करें।

  • यह दर्शाती थी कि अल्लाह के आदेशों के साथ छेड़छाड़ करने का परिणाम बहुत भयानक हो सकता है।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

यह आयत आज के मुसलमानों और इंसानों के लिए एक शक्तिशाली चेतावनी है:

  • धार्मिक बदलाव (बिदअत): आज कई मुसलमान इस्लाम में नए-नए रीति-रिवाज (बिदअत) गढ़ लेते हैं और उन्हें धर्म का हिस्सा बताते हैं। नमाज़, रोज़े, हज और दुआओं के तरीकों में मनमाने बदलाव करना आधुनिक "बदलना" (तब्दील) है।

  • आदेशों का मज़ाक उड़ाना: जो लोग इस्लामी हुक्मों (जैसे हिजाब, दाढ़ी, ब्याज की मनाही) का मज़ाक उड़ाते हैं या उन्हें तुच्छ समझते हैं, वे ठीक बनी इस्राईल जैसा व्यवहार कर रहे हैं।

  • फिस्क (नाफरमानी) की आदत: आज का समाज गुनाहों में इतना डूब गया है कि झूठ, ब्याज, अश्लीलता और बेईमानी आम बात हो गई है। यह सामूहिक "फिस्क" है जो अल्लाह के प्रकोप को आमंत्रित कर सकता है (जैसे महामारी, युद्ध, प्राकृतिक आपदाएँ)।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह के आदेशों के साथ छेड़छाड़ और अवज्ञा का परिणाम हमेशा विनाशकारी होता है।

  • यह हमेशा यह संदेश देगी कि धर्म में मनमाने बदलाव (बिदअत) और अवज्ञा (फिस्क) से बचना ही सच्ची सफलता का रास्ता है।

  • यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: जो लोग अल्लाह के शब्दों को बदलते हैं, वे स्वयं अपने ऊपर ज़ुल्म करते हैं और अल्लाह का प्रकोप उनपर उतरता है।