1. पूरी आयत अरबी में:
وَإِذْ قُلْتُمْ يَا مُوسَىٰ لَن نَّصْبِرَ عَلَىٰ طَعَامٍ وَاحِدٍ فَادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُخْرِجْ لَنَا مِمَّا تُنبِتُ الْأَرْضُ مِن بَقْلِهَا وَقِثَّائِهَا وَفُومِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَا ۖ قَالَ أَتَسْتَبْدِلُونَ الَّذِي هُوَ أَدْنَىٰ بِالَّذِي هُوَ خَيْرٌ ۚ اهْبِطُوا مِصْرًا فَإِنَّ لَكُم مَّا سَأَلْتُمْ ۗ وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ وَالْمَسْكَنَةُ وَبَاءُوا بِغَضَبٍ مِّنَ اللَّهِ ۗ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُوا يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ وَيَقْتُلُونَ النَّبِيِّينَ بِغَيْرِ الْحَقِّ ۗ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَوا وَّكَانُوا يَعْتَدُونَ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Word-to-Word Meaning):
पहला भाग (बनी इस्राईल की शिकायत):
وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब
قُلْتُمْ: तुमने कहा
يَا مُوسَىٰ: हे मूसा!
لَن نَّصْبِرَ: हम कदापि सहन नहीं कर सकते
عَلَىٰ: पर
طَعَامٍ: भोजन
وَاحِدٍ: एक (ही)
فَادْعُ: तो दुआ करो
لَنَا: हमारे लिए
رَبَّكَ: अपने पालनहार से
يُخْرِجْ: निकाले
لَنَا: हमारे लिए
مِمَّا: उनमें से
تُنبِتُ: उगाती है
الْأَرْضُ: धरती
مِن: से
بَقْلِهَا: उसकी सब्जियाँ
وَقِثَّائِهَا: और उसके खीरे
وَفُومِهَا: और उसके लहसुन / गेहूँ
وَعَدَسِهَا: और उसकी दालें
وَبَصَلِهَا: और उसके प्याज
दूसरा भाग (मूसा की प्रतिक्रिया और परिणाम):
قَالَ: उन्होंने कहा (मूसा ने)
أَتَسْتَبْدِلُونَ: क्या तुम बदल रहे हो
الَّذِي: उसे
هُوَ: जो
أَدْنَىٰ: नीच / घटिया है
بِالَّذِي: उसके बदले जो
هُوَ: है
خَيْرٌ: बेहतर
اهْبِطُوا: उतर जाओ
مِصْرًا: किसी शहर / नगर में (मिस्र या कोई अन्य)
فَإِنَّ: तो निश्चय ही
لَكُم: तुम्हारे लिए है
مَّا: वह
سَأَلْتُمْ: तुमने माँगा
وَضُرِبَتْ: और ठोक दी गई
عَلَيْهِمُ: उन पर
الذِّلَّة: अपमान / दीनता
وَالْمَسْكَنَة: और गरीबी / मुफलिसी
وَبَاءُوا: और लौट आए
بِغَضَبٍ: गुस्से के साथ
مِّنَ اللَّهِ: अल्लाह का
ذَٰلِكَ: यह (हालत)
بِأَنَّهُمْ: इसलिए कि वे
كَانُوا: होते थे
يَكْفُرُونَ: इनकार करने वाले
بِآيَاتِ اللَّهِ: अल्लाह की आयतों का
وَيَقْتُلُونَ: और मार डालते थे
النَّبِيِّينَ: पैगम्बरों को
بِغَيْرِ: बिना
الْحَقِّ: किसी अधिकार के
ذَٰلِكَ: यह (सब)
بِمَا: इस कारण
عَصَوا: उन्होंने नाफरमानी की
وَّكَانُوا: और वे होते थे
يَعْتَدُونَ: हद से गुजरने वाले
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत बनी इस्राईल की अकृतज्ञता और हठधर्मिता का चरम दर्शाती है। अल्लाह उन्हें रेगिस्तान में स्वर्गीय भोजन "मन्न-ओ-सलवा" प्रदान कर रहा था, जो बिना किसी मेहनत के मिल रहा था और पौष्टिकता में सर्वश्रेष्ठ था। लेकिन उन्होंने इस उत्तम भोजन से ऊबकर साधारण सब्जियों की माँग कर डाली।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: बनी इस्राईल की अकृतज्ञ माँग
"हम एक ही भोजन पर सहन नहीं कर सकते": यह एक तरह का ऐश्वर्य और असंतोष था। अल्लाह की देन से बोर हो जाना उनकी घोर अकृतज्ञता थी।
साधारण सब्जियों की सूची: उन्होंने प्याज, लहसुन, दालें, खीरे आदि की माँग की। ये सब्जियाँ मिस्र में गुलामी के दौरान उनके भोजन का हिस्सा थीं। इसका मतलब था कि वे अल्लाह की दी हुई आज़ादी और उत्तम रोज़ी से असंतुष्ट होकर गुलामी के जमाने की साधारण चीजों को तरस रहे थे।
भाग 2: हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की प्रतिक्रिया
तर्कसंगत प्रश्न: मूसा (अलैहिस्सलाम) ने उनसे पूछा, "क्या तुम उस चीज के बदले जो घटिया है, उसे लेना चाहते हो जो बेहतर है?" यह सवाल उनकी मूर्खता और अकृतज्ञता को उजागर करता है।
परिणाम की घोषणा: मूसा (अलैहिस्सलाम) ने कहा, "किसी शहर में चले जाओ, तुम्हें वही मिलेगा जो तुमने माँगा है।" यह एक तरह की सजा थी। अल्लाह की विशेष रोज़ी (मन्न-ओ-सलवा) छिन गई और उन्हें दुनियावी खेती-बाड़ी और मेहनत पर छोड़ दिया गया।
भाग 3: बनी इस्राईल पर अल्लाह का अभिशाप
इस अकृतज्ञता के परिणामस्वरूप उन पर तीन अभिशाप टूट पड़े:
अज़-ज़िल्ला (अपमान और दीनता): दुनिया भर में उन्हें हमेशा अपमान और दूसरों के अधीन रहना पड़ा।
अल-मसकना (गरीबी और मुफलिसी): उन पर आर्थिक तंगी और लाचारी की मार पड़ी।
ग़ज़ब मिन अल्लाह (अल्लाह का गुस्सा): उन्होंने अल्लाह के गुस्से को अपने ऊपर मोल ले लिया।
भाग 4: अभिशाप के कारण
ये अभिशाप उनके अपने ही कर्मों का नतीजा थे:
अल्लाह की आयतों का इनकार करना।
पैगम्बरों को निर्दोष मार डालना। (यह उनके भविष्य के एक बड़े पाप की ओर इशारा है)
अवज्ञा और हद से गुजरना।
4. सबक (Lessons)
अकृतज्ञता सबसे बड़ा पाप: अल्लाह की नेमतों को तुच्छ समझना और उससे असंतुष्ट रहना एक भयानक अकृतज्ञता है।
आध्यात्मिकता बनाम भौतिकता: बनी इस्राईल ने आध्यात्मिक और उत्तम रोज़ी (मन्न-ओ-सलवा) को छोड़कर भौतिक और साधारण चीजों (सब्जियों) को चुना। यह दुनिया पर आखिरत को तरजीह न देने का प्रतीक है।
गुनाहों का दूरगामी परिणाम: अकृतज्ञता और अवज्ञा जैसे गुनाहों का परिणाम सिर्फ दुनिया में ही नहीं, बल्कि पीढ़ियों तक अपमान और गरीबी के रूप में भुगतना पड़ सकता है।
पैगम्बरों का सम्मान: पैगम्बरों का विरोध और उन्हें कष्ट देना अल्लाह के गुस्से को सबसे ज्यादा भड़काता है।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल को उनकी अकृतज्ञता और उसके भयानक परिणाम याद दिला रही थी ताकि वे पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के मार्गदर्शन को स्वीकार करें।
यह उनकी ऐतिहासिक स्थिति (यहूदियों का दुनिया भर में फैलाव और उत्पीड़न) की व्याख्या करती है।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक अकृतज्ञता: आज का इंसान अल्लाह की अनगिनत नेमतों (स्वास्थ्य, समय, ज्ञान, इस्लाम) से ऊब चुका है और हमेशा और अधिक की माँग करता है। वह दुनियावी चीजों (पैसा, शौहरत) के पीछे भागता है और आखिरत को भूल जाता है।
मुसलमानों की स्थिति: आज कई मुसलमानों की हालत बनी इस्राईल जैसी है। उन्होंने कुरआन और सुन्नत जैसी उत्तम नेमत को छोड़कर पश्चिमी संस्कृति, ब्याज और भ्रष्टाचार जैसी "सब्जियों" को चुना है। नतीजतन, दुनिया भर में मुसलमान अक्सर "ज़िल्लत" (अपमान) और "मसकनत" (गरीबी) का शिकार हैं।
चुनाव की जिम्मेदारी: यह आयत हमें हर समय यह चुनाव करने को कहती है: क्या हम अल्लाह की दी हुई उत्तम चीजों (हलाल रोज़ी, इस्लामी जीवनशैली) को चुनेंगे या दुनियावी और नीच (हराम, गुनाह) चीजों को?
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह की नेमतों के प्रति अकृतज्ञता और असंतोष विनाश और अपमान का कारण बनता है।
यह हमेशा यह संदेश देगी कि आध्यात्मिक और दैवीय चीजों को भौतिक और सांसारिक चीजों पर प्राथमिकता देना ही सच्ची सफलता का रास्ता है।
यह आयत कयामत तक एक स्थायी नियम स्थापित करती है: "जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करते हैं और पैगम्बरों की अवज्ञा करते हैं, उनपर दुनिया और आखिरत में अपमान और गुस्सा नाजिल होता है।"