1. पूरी आयत अरबी में:
وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّورَ خُذُوا مَا آتَيْنَاكُم بِقُوَّةٍ وَاذْكُرُوا مَا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ
2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):
وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब
أَخَذْنَا: हमने लिया
مِيثَاقَكُمْ: तुम्हारा वादा/अहद
وَرَفَعْنَا: और हमने उठाया
فَوْقَكُمُ: तुम्हारे ऊपर
الطُّورَ: पहाड़ (कोह-ए-तूर)
خُذُوا: ले लो (पकड़ लो)
مَا: जो
آتَيْنَاكُم: हमने तुम्हें दिया है
بِقُوَّةٍ: मजबूती के साथ
وَاذْكُرُوا: और याद करो
مَا: जो
فِيهِ: उसमें है
لَعَلَّكُمْ: ताकि तुम
تَتَّقُونَ: डर रखो (परहेज़गार बनो)
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत बनी इस्राईल के इतिहास की एक और महत्वपूर्ण और डरावनी घटना का वर्णन करती है। यह घटना तब की है जब हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) कोह-ए-तूर से तौरात लेकर लौटे थे। अल्लाह ने बनी इस्राईल से तौरात को स्वीकार करने और उस पर अमल करने का एक गंभीर वादा (अहद) लिया था। इस वादे को उनके दिलों में बैठाने के लिए, अल्लाह ने एक शक्तिशाली चमत्कार दिखाया।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब हमने तुम्हारा वादा (मीसाक) लिया..."
"मीसाक" का अर्थ: मीसाक एक पवित्र, दृढ़ और बंधनकारी वादा या अनुबंध है। यह केवल एक वचन नहीं था, बल्कि अल्लाह और बनी इस्राईल के बीच एक गंभीर समझौता था कि वे तौरात पर ईमान लाएंगे और उसके हुक्मों का पालन करेंगे।
भाग 2: "...और हमने तुम्हारे ऊपर पहाड़ (तूर) को उठा लिया..."
चमत्कार का स्वरूप: अल्लाह ने पूरे कोह-ए-तूर को उनके सिरों के ऊपर इस तरह उठा लिया जैसे कोई छतरी हो। यह दृश्य अत्यंत भयावह और रौबदार था।
उद्देश्य: इस चमत्कार के कई उद्देश्य थे:
उन्हें अल्लाह की ताकत और बड़ाई का एहसास कराना।
इस वादे की गंभीरता को उनके दिल और दिमाग में बैठा देना।
यह चेतावनी देना कि अगर वे अपना वादा तोड़ेंगे तो उनका हश्र इस पहाड़ के नीचे आने जैसा भयानक होगा।
भाग 3: "...(और कहा) कि जो (किताब) हमने तुम्हें दी है, उसे मजबूती के साथ थाम लो..."
"बि-कुव्वत" (मजबूती के साथ): इसका अर्थ है:
दृढ़ विश्वास के साथ: तौरात पर पूरे यकीन के साथ ईमान लाओ।
लगन के साथ: उसकी शिक्षाओं को सीखने और समझने में कोई कसर न छोड़ो।
व्यवहार में लाने के साथ: उसके आदेशों और मनाहियों को अपने जीवन में लागू करो।
भाग 4: "...और जो कुछ उसमें है, उसे याद रखो (और याद दिलाते रहो), ताकि तुम डर रखने वाले (मुत्तकी) बन जाओ।"
"इज़्कुरू" (याद करो): इसका मतलब है:
तौरात की आयतों को दोहराते और पढ़ते रहो।
उसकी शिक्षाओं और चेतावनियों को कभी न भूलो।
दूसरों को भी उसकी तालीम दो।
अंतिम लक्ष्य - "तक्वा": इस पूरी प्रक्रिया (वादा लेना, चमत्कार दिखाना, किताब देना) का अंतिम लक्ष्य यह नहीं था कि वे सिर्फ किताब के वाहक बन जाएं। असली लक्ष्य था कि वे "मुत्तकी" बनें - अल्लाह से डरने वाले, परहेज़गार और पवित्र इंसान।
4. सबक (Lessons)
किताब की जिम्मेदारी: अल्लाह की किताब मिलना एक बहुत बड़ा सम्मान है, लेकिन उसके साथ एक भारी जिम्मेदारी भी आती है। उसे सिर्फ रखना नहीं है, बल्कि उसे "मजबूती से थामना" है।
अल्लाह की शक्ति का एहसास: अल्लाह की ताकत इतनी विशाल है कि वह पहाड़ों को उठा सकता है। इस एहसास के बाद उसकी अवज्ञा करना सबसे बड़ी मूर्खता है।
तक्वा ही लक्ष्य है: दीन का असली मकसद इंसान के अंदर "तक्वा" (ईश्वर-भय) पैदा करना है। किताबें, पैगंबर और चमत्कार सब इसी लक्ष्य को पाने के साधन हैं।
वादे का पालन: अल्लाह के साथ किया गया वादा (ईमान का अहद) बहुत गंभीर है। उसे तोड़ने के परिणाम भयानक हो सकते हैं।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल को उनके इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना याद दिला रही थी, ताकि वे अपने वादे को पहचानें और पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) पर ईमान ले आएं, जो तौरात में उनके आने की भविष्यवाणी करता था।
यह दर्शाती थी कि उन्होंने इस वादे और चेतावनी के बावजूद तौरात को छिपाया और उसके साथ खिलवाड़ किया।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
मुसलमानों और कुरआन: आज मुसलमानों के पास कुरआन के रूप में अल्लाह की आखिरी किताब है। क्या हम उसे "मजबूती से थामे" हुए हैं? क्या हम उसे पढ़ते, समझते और उस पर अमल करते हैं, या सिर्फ एक तख्ती पर सजाकर रख देते हैं?
आधुनिक "पहाड़": आज अल्लाह हमारे ऊपर कोई पहाड़ नहीं उठा रहा, लेकिन कुरआन की आयतें, प्रकृति के नियम और इतिहास के सबक हमारे लिए एक चेतावनी का काम करते हैं। क्या हम उनसे सबक लेते हैं?
वादे की याद: हर मुसलमान ने अपने ईमान के साथ अल्लाह से एक वादा (अहद) किया है कि वह उसकी इबादत करेगा और गुनाह से बचेगा। यह आयत हमें उस वादे को याद दिलाती है।
तक्वा की कमी: आज हमारे पास कुरआन है, लेकिन "तक्वा" (अल्लाह का डर) गायब है। यह आयत हमें याद दिलाती है कि किताब का असली मकसद तक्वा हासिल करना है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह की किताब मिलना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
यह हमेशा यह संदेश देगी कि दीन का असली लक्ष्य किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि इंसान के दिल में "तक्वा" पैदा करना है।
यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "अल्लाह की किताब को मजबूती से थामो और उसे याद रखो, ताकि तुम बच जाओ।"