1. पूरी आयत अरबी में:
وَإِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوْمِهِ إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُكُمْ أَن تَذْبَحُوا بَقَرَةً ۖ قَالُوا أَتَتَّخِذُنَا هُزُوًا ۖ قَالَ أَعُوذُ بِاللَّهِ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْجَاهِلِينَ
2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):
وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब
قَالَ: कहा
مُوسَىٰ: मूसा (अलैहिस्सलाम) ने
لِقَوْمِهِ: अपनी कौम से
إِنَّ: निश्चय ही
اللَّهَ: अल्लाह
يَأْمُرُكُمْ: तुम्हें आदेश देता है
أَن: कि
تَذْبَحُوا: तुम ज़बह करो
بَقَرَةً: एक गाय
قَالُوا: उन्होंने कहा
أَتَتَّخِذُنَا: क्या तुम बनाते हो हमें
هُزُوًا: मज़ाक / ठट्ठा
قَالَ: उन्होंने कहा (मूसा ने)
أَعُوذُ: मैं पनाह माँगता हूँ
بِاللَّهِ: अल्लाह की
أَنْ: इससे कि
أَكُونَ: मैं होऊँ
مِنَ: में से
الْجَاهِلِينَ: अज्ञानियों के
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत बनी इस्राईल के इतिहास की एक प्रसिद्ध घटना की शुरुआत का वर्णन करती है - गाय की कुर्बानी। यह कहानी आगे की आयतों में जारी रहेगी। इस घटना में बनी इस्राईल की हठधर्मिता, संदेह और पैगंबर के आदेशों के प्रति उनकी उपहासपूर्ण प्रतिक्रिया को दर्शाया गया है।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब मूसा ने अपनी कौम से कहा: 'निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय ज़बह करो।'"
सीधा आदेश: हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह का सीधा और स्पष्ट आदेश अपनी कौम के सामने रखा। यह आदेश एक परीक्षा थी, जिसका उद्देश्य उनकी आज्ञाकारिता की जाँच करना था।
गाय की कुर्बानी: यह आदेश एक विशेष मामले (एक अनसुलझी हत्या) को सुलझाने के लिए था, जैसा कि अगली आयतों में स्पष्ट होता है।
भाग 2: "उन्होंने कहा: 'क्या तुम हमसे मज़ाक कर रहे हो?'"
अविश्वास और उपहास: बनी इस्राईल की प्रतिक्रिया अविश्वास, संदेह और उपहास से भरी हुई थी। "क्या तुम हमसे मज़ाक कर रहे हो?" - यह वाक्य दर्शाता है कि:
उन्हें पैगंबर के शब्दों पर विश्वास नहीं हुआ।
उन्होंने इस पवित्र आदेश को एक तुच्छ मज़ाक समझा।
उनके मन में पैगंबर के प्रति सम्मान की कमी थी।
भाग 3: "मूसा ने कहा: 'मैं अल्लाह की पनाह माँगता हूँ इस बात से कि मैं अज्ञानियों में से हो जाऊँ।'"
पैगंबर की गरिमापूर्ण प्रतिक्रिया: हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने उनके इस अपमानजनक सवाल का जवाब क्रोध या तिरस्कार से नहीं, बल्कि एक दुआ और अल्लाह की शरण माँगने के साथ दिया।
"अल-जाहिलीन" (अज्ञानी): इस शब्द का अर्थ सिर्फ "अनपढ़" नहीं है। इस्लामी शब्दावली में "जहालत" वह स्थिति है जहाँ इंसान सच्चाई को जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करता, उसके साथ दुर्व्यवहार करता है और हठधर्मिता दिखाता है। मूसा (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह से इस "जहालत" से बचने की दुआ की।
4. सबक (Lessons)
आज्ञाकारिता की परीक्षा: अल्लाह अपने बंदों का इम्तिहान लेता है, कभी-कभी ऐसे आदेशों के द्वारा जिनका तत्काल तर्क समझ में न आए। सच्चा ईमान बिना सवाल किए आज्ञापालन में है।
पैगंबरों का सम्मान: पैगंबरों के आदेशों के साथ संदेह, उपहास या विलंब करना एक बड़ा पाप है। उनके every word को गंभीरता से लेना चाहिए।
हठधर्मिता का खतरा: बनी इस्राईल को पता था कि मूसा (अलैहिस्सलाम) अल्लाह के पैगंबर हैं, फिर भी उन्होंने हठपूर्वक सवाल करना शुरू कर दिया। यह हठधर्मिता इंसान को सीधे मार्ग से भटका देती है।
शिष्टाचार की प्रतिक्रिया: जब कोई हमारा अपमान करे या मज़ाक उड़ाए, तो मूसा (अलैहिस्सलाम) की तरह धैर्य और शालीनता से काम लेना चाहिए और अल्लाह की शरण में आना चाहिए।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल की उस मानसिकता को उजागर कर रही थी जिसके कारण वे लगातार पैगंबरों का विरोध करते थे। यह दर्शाती थी कि उनकी समस्या ज्ञान की कमी नहीं, बल्कि हठ और अवज्ञा थी।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक "हज़ो" (मज़ाक): आज कई लोग इस्लाम के आदेशों का उपहास उड़ाते हैं। हिजाब, दाढ़ी, हलाल ज़बीहा, नमाज़ जैसी बातों को लोग पुराने जमाने की चीजें या मज़ाक समझते हैं। यही आज का "अतत्तखिज़ुना हुज़ुवन" (क्या तुम हमसे मज़ाक कर रहे हो?) है।
मुसलमानों का व्यवहार: कई मुसलमान स्वयं ही इस्लामी हुक्मों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। जब कोई उन्हें नमाज़, रोज़े या हलाल-हराम का हुक्म याद दिलाता है, तो वे बोलते हैं, "यार, इतनी सख्ती की जरूरत नहीं है," या "अब इन बातों का जमाना नहीं रहा।" यह बनी इस्राईल वाली हठधर्मिता और अवज्ञा का आधुनिक रूप है।
सीखने वाली प्रतिक्रिया: अगर कोई हमारे दीन का मज़ाक उड़ाए, तो हमें मूसा (अलैहिस्सलाम) की तरह धैर्य रखना चाहिए, गुस्से में नहीं आना चाहिए, और अल्लाह से "जहालत" से बचने की दुआ करनी चाहिए।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह और उसके पैगंबर के आदेशों के साथ संदेह या उपहास का व्यवहार सबसे बड़ी "जहालत" (अज्ञानता) है।
यह हमेशा यह संदेश देगी कि सच्चा ईमान सरल आज्ञाकारिता में है, और जटिल सवालों में उलझकर रह जाना हठधर्मिता है।
यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "अल्लाह के हुक्म को सीधे-सादे ढंग से स्वीकार करो, उस पर सवाल उठाकर अपने आप को मुसीबत में न डालो।"