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कुरआन की आयत 2:68 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا هِيَ قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ لَّا فَارِضٌ وَلَا بِكْرٌ عَوَانٌ بَيْنَ ذَٰلِكَ فَافْعَلُوا مَا تُؤْمَرُونَ


2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • قَالُوا: उन्होंने कहा

  • ادْعُ: तुम दुआ करो (प्रार्थना करो)

  • لَنَا: हमारे लिए

  • رَبَّكَ: अपने पालनहार से

  • يُبَيِّن: स्पष्ट कर दे

  • لَّنَا: हमारे लिए

  • مَا: कैसी

  • هِيَ: वह (गाय)

  • قَالَ: उन्होंने कहा (मूसा ने)

  • إِنَّهُ: निश्चय ही वह (अल्लाह)

  • يَقُول: कहता है

  • إِنَّهَا: निश्चय ही वह

  • بَقَرَةٌ: एक गाय है

  • لَّا: न

  • فَارِضٌ: बूढ़ी

  • وَلَا: और न

  • بِكْرٌ: जवान (बच्ची)

  • عَوَانٌ: बीच की उम्र वाली

  • بَيْنَ: के बीच

  • ذَٰلِكَ: उस (बूढ़ी और जवान) के

  • فَافْعَلُوا: तो कर डालो

  • مَا: जो

  • تُؤْمَرُونَ: तुम्हें आदेश दिया गया है


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत "गाय की कुर्बानी" की प्रसिद्ध कहानी का अगला चरण है। पिछली आयत में बनी इस्राईल ने हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) के आदेश का मज़ाक उड़ाया था। अब वे अपनी हठधर्मिता जारी रखते हुए गाय की क़िस्म के बारे में अनावश्यक और विस्तृत सवाल पूछना शुरू कर देते हैं। यह आयत उनकी इस टालमटोल और अवज्ञा को दर्शाती है।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "उन्होंने कहा: 'अपने पालनहार से हमारे लिए दुआ करो कि वह हमारे लिए स्पष्ट कर दे कि वह (गाय) कैसी है?'"

  • ढोंग और टालमटोल: उनका यह सवाल वास्तविक जिज्ञासा नहीं, बल्कि आज्ञा का पालन करने से बचने का एक बहाना था। उन्हें सिर्फ एक साधारण गाय ज़बह करनी थी, लेकिन उन्होंने इसे जटिल बना दिया।

  • औपचारिकता का ढोंग: "अपने रब से दुआ करो" कहकर वे अपनी बात को एक धार्मिक रूप दे रहे थे, जबकि असल में वे अवज्ञा कर रहे थे।

भाग 2: "(मूसा ने) कहा: 'वह (अल्लाह) कहता है कि वह (गाय) न तो बूढ़ी है और न ही जवान, बल्कि उम्र में उन दोनों के बीच (जवान) है...'"

  • अल्लाह की दया और सहनशीलता: अल्लाह ने उनके अनावश्यक सवाल का जवाब दे दिया। यह अल्लाह की दया थी कि उसने उनकी हठधर्मिता के बावजूद उन्हें और स्पष्टता प्रदान की।

  • गाय का विवरण: गाय की तीन विशेषताएँ बताई गईं:

    1. "ला फारिद" - बूढ़ी नहीं (जो काम के लायक न रही हो)।

    2. "ला बिक्र" - बच्ची नहीं (जो बहुत छोटी हो)।

    3. "अवानुन बैना ज़ालिक" - बीच की उम्र की जवान (जो अपने जीवन के चरम पर हो)।

भाग 3: "'...तो जो कुछ तुम्हें आदेश दिया गया है, वह कर डालो।'"

  • अंतिम चेतावनी: हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने उनके सवाल का जवाब देने के बाद एक स्पष्ट और दृढ़ निर्देश दिया: "फ़फ़'अलू मा तु'मरून" (तो जो कुछ तुम्हें आदेश दिया गया है, वह कर डालो)। यह एक प्रकार की अंतिम चेतावनी थी कि अब और सवाल-जवाब न करो और आज्ञा का पालन करो।


4. सबक (Lessons)

  1. आज्ञाकारिता में देरी न करें: अल्लाह के आदेशों का पालन करने में अनावश्यक सवाल पूछकर देरी करना या बहाने बनाना एक प्रकार की अवज्ञा है।

  2. धार्मिक जिज्ञासा की सीमा: इस्लाम ज्ञान और समझ को प्रोत्साहित करता है, लेकिन जब आदेश स्पष्ट हो जाए, तो फिर उसे मानने में ही भलाई है। सवाल पूछने का उद्देश्य आज्ञा से बचना नहीं होना चाहिए।

  3. अल्लाह की दया: अल्लाह अपने बंदों की कमजोरियों और हठधर्मिता के बावजूद उनपर दया करता है और उनके (अनावश्यक) सवालों के जवाब देता है।

  4. सादगी को जटिल न बनाएँ: बनी इस्राईल ने एक सीधे-सादे आदेश को अपनी जिज्ञासा और हठ से इतना जटिल बना दिया कि वह एक प्रसिद्ध घटना बन गई। हमें अपने धार्मिक जीवन में सादगी को बनाए रखना चाहिए।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल की मानसिकता को दर्शा रही थी कि कैसे वे हर आदेश में कमी निकालते और पैगंबर को कठिनाई में डालते थे।

  • यह उनकी अवज्ञा का एक और प्रमाण था।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

  • आधुनिक टालमटोल: आज के मुसलमान भी अल्लाह के आदेशों के साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं। उदाहरण के लिए:

    • नमाज़: "मैं नमाज़ पढ़ूँगा, लेकिन पहले यह काम खत्म हो जाए," या "क्या 5 वक्त की नमाज़ जरूरी है? क्या 3 वक्त से काम नहीं चल सकता?"

    • हिजाब: "हिजाब क्यों? क्या दिल का हिजाब काफी नहीं है?" या "क्या इस तरह का स्कार्फ पहन लूँ?"

    • दाढ़ी: "दाढ़ी रखना क्या जरूरी है? क्या यह सिर्फ एक रिवाज नहीं है?"

  • फतवों की भीड़: लोग धर्म के स्पष्ट आदेशों को छोड़कर हलाल-हराम के ऐसे फतवे ढूंढते रहते हैं जो उनकी सुविधा के अनुकूल हों। यह आधुनिक "मा हिया" (वह कैसी है?) है।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह के स्पष्ट आदेशों के साथ टालमटोल और अनावश्यक सवाल करना हठधर्मिता है।

  • यह हमेशा यह संदेश देगी कि ईमान की शोभा सरल आज्ञाकारिता में है, न कि जटिलताएँ गढ़ने में।

  • यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "जब अल्लाह का आदेश स्पष्ट हो जाए, तो बहानेबाजी छोड़कर उसे कर डालो।"