1. पूरी आयत अरबी में:
قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا لَوْنُهَا ۚ قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ صَفْرَاءُ فَاقِعٌ لَّوْنُهَا تَسُرُّ النَّاظِرِينَ
2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):
قَالُوا: उन्होंने कहा
ادْعُ: तुम दुआ करो (प्रार्थना करो)
لَنَا: हमारे लिए
رَبَّكَ: अपने पालनहार से
يُبَيِّن: स्पष्ट कर दे
لَّنَا: हमारे लिए
مَا: क्या
لَوْنُهَا: उसका रंग
قَالَ: उन्होंने कहा (मूसा ने)
إِنَّهُ: निश्चय ही वह (अल्लाह)
يَقُول: कहता है
इِنَّهَا: निश्चय ही वह
بَقَرَةٌ: एक गाय है
صَفْرَاءُ: पीली
فَاقِعٌ: गहरी / चटकीली
لَّوْنُهَا: उसका रंग
تَسُرُّ: खुश करती है
النَّاظِرِينَ: देखने वालों को
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत "गाय की कुर्बानी" की कहानी का अगला चरण है। पिछली आयत में बनी इस्राईल ने गाय की उम्र के बारे में अनावश्यक सवाल पूछा था और अल्लाह ने उन्हें जवाब दे दिया था। अब वे अपनी हठधर्मिता जारी रखते हुए एक और सतही विशेषता - गाय के रंग - के बारे में पूछते हैं। यह उनकी टालमटोल की रणनीति का दूसरा चरण है।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "उन्होंने कहा: 'अपने पालनहार से हमारे लिए दुआ करो कि वह हमारे लिए स्पष्ट कर दे कि उसका रंग क्या है?'"
हठधर्मिता का दूसरा दौर: पहले उम्र पूछी, अब रंग पूछ रहे हैं। यह स्पष्ट करता है कि उनका उद्देश्य आज्ञा का पालन करना नहीं, बल्कि उसे टालना और मूसा (अलैहिस्सलाम) को कठिनाई में डालना था।
सतही जिज्ञासा: वे गाय के सार (essence) या कुर्बानी के उद्देश्य में दिलचस्पी नहीं रखते थे, बल्कि उसके बाहरी रंग-रूप में उलझे हुए थे।
भाग 2: "(मूसा ने) कहा: 'वह (अल्लाह) कहता है कि वह (गाय) पीली रंग की गाय है, उसका रंग इतना गहरा (चटकीला) है कि देखने वालों को खुश कर देती है।'"
अल्लाह की असीम सहनशीलता: अल्लाह एक बार फिर उनकी अनावश्यक जिज्ञासा का जवाब देता है। यह अल्लाह की दया और पैगंबर की सहनशीलता को दर्शाता है।
गाय के रंग का विवरण: गाय के रंग की दो विशेषताएँ बताई गईं:
"सफ़राउ" - पीली।
"फाकिउन लौनुहा" - उसका रंग गहरा और चटकीला है (इतना शुद्ध और तेज कि वह एकदम साफ पहचानी जा सके)।
"तसुर्रुन नाज़िरीन" (देखने वालों को खुश कर देती है): यह वर्णन दर्शाता है कि वह गाय अपने रंग और स्वरूप में इतनी सुंदर और आकर्षक थी कि उसे देखकर लोग प्रसन्न हो जाते थे। यह इस बात का संकेत भी हो सकता है कि वह गाय बहुत कीमती और दुर्लभ थी, जिसे ज़बह करने में उन्हें दिलजमई होगी।
4. सबक (Lessons)
हठधर्मिता से बचें: अल्लाह के आदेशों के प्रति हठधर्मिता और अनावश्यक सवाल इंसान को उसकी मंजिल से भटका देते हैं। सच्चा ईमान सरल आज्ञाकारिता में है।
सार पर ध्यान दें, सतह पर नहीं: बनी इस्राईल गाय के बाहरी रंग-रूप (सतह) में उलझे रहे, जबकि अल्लाह का उद्देश्य उनकी आज्ञाकारिता (सार) की परीक्षा लेना था। धर्म का असली सार आंतरिक आज्ञाकारिता और तक्वा है, न कि बाहरी रूप-रंग।
अल्लाह की दया का दुरुपयोग न करें: अल्लाह की दया और सहनशीलता को उसकी अवज्ञा करने के लिए इजाजत नहीं समझना चाहिए। बार-बार दिया गया मौका एक दिन खत्म हो सकता है।
कुर्बानी की भावना: असली कुर्बानी वह है जिसमें इंसान अपनी पसंद की चीज अल्लाह के लिए देता है। गाय का सुंदर और कीमती होना इस बात का संकेत था कि उन्हें अपनी पसंद की चीज कुर्बान करनी थी।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल की हठधर्मिता और पैगंबरों के साथ उनके व्यवहार को दर्शा रही थी, ताकि वे अपनी गलती समझें।
यह दर्शाती थी कि कैसे अनावश्यक सवाल एक सीधे-सादे आदेश को कठिन बना देते हैं।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक "रंग" के सवाल: आज के मुसलमान भी धर्म के मामलों में ऐसे ही सतही सवालों में उलझे रहते हैं। उदाहरण के लिए:
दाढ़ी: "दाढ़ी कितनी लंबी होनी चाहिए? एक मुट्ठी या उससे कम?" (यह आधुनिक "मा लौनुहा" है)।
हिजाब: "हिजाब का रंग कैसा हो? क्या काले रंग का होना जरूरी है?"
नमाज़: "क्या जूते पहनकर नमाज़ पढ़ सकते हैं? क्या मोजे पहनकर वुजू हो सकता है?"
सार को भूल जाना: लोग नमाज़ की हाजिरी दिल (खुशू) के बजाय सजदे की जगह (सतह) पर ध्यान देते हैं, जकात के हिसाब (सतह) के बजाय उसके सामाजिक उद्देश्य (सार) को भूल जाते हैं।
धर्म को कठिन बनाना: बनी इस्राईल की तरह आज के कुछ लोग भी इस्लाम को अनावश्यक सवालों और शर्तों से इतना कठिन बना देते हैं कि लोग इससे दूर भागने लगते हैं।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि धर्म के मामलों में हठधर्मिता और अनावश्यक सवाल इंसान को सच्ची आज्ञाकारिता से दूर ले जाते हैं।
यह हमेशा यह संदेश देगी कि अल्लाह के धर्म का असली सार आंतरिक आज्ञाकारिता और तक्वा है, न कि बाहरी विवरणों में उलझना।
यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "जब अल्लाह का आदेश मिल जाए, तो सीधे-सादे ढंग से उसे मान लो, अनावश्यक सवालों से काम को जटिल न बनाओ।"