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कुरआन की आयत 2:70 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا هِيَ إِنَّ الْبَقَرَ تَشَابَهَ عَلَيْنَا وَإِنَّا إِن شَاءَ اللَّهُ لَمُهْتَدُونَ


2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • قَالُوا: उन्होंने कहा

  • ادْعُ: तुम दुआ करो (प्रार्थना करो)

  • لَنَا: हमारे लिए

  • رَبَّكَ: अपने पालनहार से

  • يُبَيِّن: स्पष्ट कर दे

  • لَّنَا: हमारे लिए

  • مَا: कैसी

  • هِيَ: वह (गाय)

  • إِنَّ: निश्चय ही

  • الْبَقَرَ: गायें

  • تَشَابَهَ: मिलती-जुलती हैं

  • عَلَيْنَا: हम पर (हमारे लिए)

  • وَإِنَّا: और निश्चय ही हम

  • إِن: यदि

  • شَاءَ: चाहेगा

  • اللَّهُ: अल्लाह

  • لَمُهْتَدُونَ: अवश्य मार्गदर्शित रहने वाले हैं


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत "गाय की कुर्बानी" की कहानी का तीसरा और अंतिम चरण है जहाँ बनी इस्राईल हठधर्मिता दिखाते हैं। पिछली दो आयतों (68 और 69) में उन्होंने गाय की उम्र और रंग के बारे में अनावश्यक सवाल पूछे थे और हर बार अल्लाह ने उन्हें विस्तृत जवाब दिया था। अब इस आयत में वे एक बार फिर वही पुराना सवाल दोहराते हैं, मानो उन्हें पहले दिए गए जवाब याद ही नहीं हैं।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "उन्होंने कहा: 'अपने पालनहार से हमारे लिए दुआ करो कि वह हमारे लिए स्पष्ट कर दे कि वह (गाय) कैसी है?"

  • हठधर्मिता की पराकाष्ठा: यह तीसरी बार है जब वे यही सवाल दोहरा रहे हैं। यह उनकी जिद और आज्ञा से बचने की मानसिकता को चरम पर पहुँचाता है।

  • ढोंग की पुनरावृत्ति: वे फिर से वही औपचारिक भाषा "अपने रब से दुआ करो" का उपयोग कर रहे हैं, जबकि उनका इरादा आज्ञापालन करना नहीं है।

भाग 2: "'...क्योंकि गायें हमारे लिए (आपस में) मिलती-जुलती हैं..."

  • एक नया बहाना: इस बार वे एक नया तर्क देते हैं - "अल-बकरु तशाबहा अलैना" (गायें हमारे लिए मिलती-जुलती हैं)। यह एक झूठा बहाना था क्योंकि अल्लाह ने पहले ही गाय की इतनी स्पष्ट और विशेष विशेषताएँ बता दी थीं (न बूढ़ी, न बच्ची, जवान, गहरी पीली रंग की) कि उसे पहचानना असंभव नहीं था।

भाग 3: "'...और निश्चय ही हम, यदि अल्लाह ने चाहा तो, सही मार्ग पाने वाले हैं।'"

  • धार्मिक शब्दों का दुरुपयोग: यहाँ वे "इन शा अल्लाह" (अल्लाह ने चाहा तो) जैसे पवित्र शब्द का इस्तेमाल अपनी हठधर्मिता को छिपाने के लिए कर रहे हैं। यह दिखावे की धर्मपरायणता है।

  • मार्गदर्शन का गलत दावा: वे कहते हैं "हम मार्गदर्शित हैं", जबकि उनका व्यवहार इसके बिल्कुल विपरीत है। सच्चा मार्गदर्शन आज्ञापालन में होता है, बहानेबाजी में नहीं।


4. सबक (Lessons)

  1. हठधर्मिता आस्था की दुश्मन है: जब इंसान किसी बात पर जिद पकड़ लेता है, तो वह स्पष्टतम निर्देशों को भी नहीं मानता और बार-बार एक ही सवाल दोहराता है। यह ईमान के लिए बहुत खतरनाक है।

  2. दिखावे की धर्मपरायणता से सावधान: धार्मिक शब्दों (जैसे इन शा अल्लाह) का उपयोग अपनी गलतियों को ढकने या अपनी जिद को सही ठहराने के लिए नहीं करना चाहिए।

  3. आज्ञापालन में तत्परता: सच्चा मोमिन अल्लाह के आदेश मिलते ही उसे तुरंत और खुशी-खुशी मान लेता है। उसमें टालमटोल, बहानेबाजी या अनावश्यक सवाल करने की प्रवृत्ति नहीं होती।

  4. ज्ञान का उद्देश्य: बनी इस्राईल के पास ज्ञान (तौरात) था, लेकिन उन्होंने उसे आज्ञापालन के लिए नहीं, बल्कि बहस और हठधर्मिता के लिए इस्तेमाल किया।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल की मानसिकता को पूरी तरह उजागर कर रही थी कि कैसे वे जानबूझकर पैगंबर के आदेशों को मानने से बचते थे।

  • यह दर्शाती थी कि उनकी समस्या ज्ञान की कमी नहीं बल्कि आज्ञापालन करने की इच्छा की कमी थी।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

  • आधुनिक हठधर्मिता: आज के मुसलमानों में भी यही प्रवृत्ति देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए:

    • नमाज़: "पहले यह काम खत्म हो जाए, फिर नमाज़ पढ़ेंगे" - यह बार-बार का बहाना आधुनिक "मा हिया" है।

    • दाढ़ी/हिजाब: "समय बदल गया है", "लोग क्या कहेंगे" - ये आधुनिक "इन्नल बकरा तशाबहा अलैना" (गायें मिलती-जुलती हैं) जैसे बहाने हैं।

  • धार्मिक शब्दों का दुरुपयोग: लोग "इन शा अल्लाह" कहकर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं, मानो यह शब्द जिम्मेदारी से बचने का तरीका हो।

  • फतवों की खोज: लोग उस उलेमा का फतवा ढूंढते रहते हैं जो उनकी सुविधा के अनुकूल हो, बजाय इसके कि स्पष्ट हुक्म को मान लिया जाए। यह आधुनिक "गाय की तलाश" है।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि हठधर्मिता और अनावश्यक सवाल इंसान को अल्लाह के मार्गदर्शन से दूर ले जाते हैं।

  • यह हमेशा यह संदेश देगी कि सच्ची मार्गदर्शन की निशानी सरल आज्ञाकारिता है, न कि बहानेबाजी और दिखावे की धर्मपरायणता।

  • यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "जब अल्लाह का आदेश स्पष्ट हो जाए, तो बहानेबाजी बंद करो और आज्ञापालन करो।"