Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन की आयत 2:71 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ لَّا ذَلُولٌ تُثِيرُ الْأَرْضَ وَلَا تَسْقِي الْحَرْثَ مُسَلَّمَةٌ لَّا شِيَةَ فِيهَا ۚ قَالُوا الْآنَ جِئْتَ بِالْحَقِّ ۚ فَذَبَحُوهَا وَمَا كَادُوا يَفْعَلُونَ


2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • قَالَ: उन्होंने कहा (मूसा ने)

  • إِنَّهُ: निश्चय ही वह (अल्लाह)

  • يَقُول: कहता है

  • إِنَّهَا: निश्चय ही वह

  • بَقَرَةٌ: एक गाय है

  • لَّا: न

  • ذَلُول: जुती हुई / वश में न चलने वाली

  • تُثِير: जोतती है

  • الْأَرْضَ: जमीन को

  • وَلَا: और न

  • تَسْقِي: सींचती है

  • الْحَرْثَ: खेत को

  • مُسَلَّمَةٌ: बिना दोष की / संपूर्ण

  • لَّا: न

  • شِيَةَ: कोई चित्ती / धब्बा

  • فِيهَا: उसमें

  • قَالُوا: उन्होंने कहा

  • الْآنَ: अब

  • جِئْتَ: तुम ले आए

  • بِالْحَقِّ: सच्चाई को

  • فَذَبَحُوهَا: तो उन्होंने उसे ज़बह कर दिया

  • وَمَا كَادُوا: और लगभग नहीं कर पाए

  • يَفْعَلُونَ: करने वाले थे


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत "गाय की कुर्बानी" की लंबी कहानी का अंतिम चरण है। बनी इस्राईल ने लगातार तीन बार अनावश्यक सवाल पूछकर इस साधारण आदेश को जटिल बना दिया था। अब अल्लाह गाय की अंतिम और सबसे विशेष पहचान बता रहा है, जिसके बाद उनकी सारी हठधर्मिता खत्म हो जाती है।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "मूसा ने कहा: 'वह (अल्लाह) कहता है कि वह (गाय) न जुतने वाली है, न जमीन जोतती है और न ही खेत को सींचती है..."

  • गाय की कार्यक्षमता: अल्लाह गाय की तीन नकारात्मक विशेषताएँ बता रहा है:

    1. "ला ज़लूल" - वह किसी काम में जोती हुई नहीं है (किसी ने उसे काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया)।

    2. "ला तुसीरुल अर्द" - वह जमीन जोतने का काम नहीं करती।

    3. "ला तस्किल हर्स" - वह खेत सींचने का काम नहीं करती।

  • उद्देश्य: यह दर्शाता है कि वह गाय किसी भी प्रकार के शारीरिक श्रम से मुक्त और पूर्णतः स्वस्थ थी।

भाग 2: "'...बिल्कुल त्रुटिहीन है, उसमें कोई दाग-धब्बा (चित्ती) नहीं है।'"

  • गाय की शारीरिक स्थिति:

    1. "मुसल्लमह" - बिल्कुल त्रुटिहीन, स्वस्थ और संपूर्ण (कोई शारीरिक दोष नहीं)।

    2. "ला शियता फीहा" - उसमें कोई दूसरा रंग (चित्ती/धब्बा) नहीं है। यह पिछले वर्णन ("गहरी पीली") को और स्पष्ट करता है कि वह एक ही रंग की शुद्ध गाय थी।

भाग 3: "उन्होंने कहा: 'अब तुम सच लेकर आए।' तो उन्होंने उसे ज़बह कर दिया, हालाँकि वे ऐसा करने ही वाले नहीं थे।"

  • मजबूरी में स्वीकारोक्ति: "अल-आना जिता बिल-हक्क" (अब तुम सच लेकर आए) - यह उनकी हार और मजबूरी की स्वीकारोक्ति थी। अब उनके पास कोई बहाना नहीं बचा था।

  • अनिच्छा से आज्ञापालन: "व मा कादू यफ'alून" (और वे ऐसा करने ही वाले नहीं थे) - यह वाक्यांश बहुत महत्वपूर्ण है। इसका अर्थ है:

    • वे बहुत मुश्किल से और अनिच्छा से इस काम को कर पाए।

    • उन्होंने इतनी देरी और हठधर्मिता की कि लगभग यह आदेश पूरा नहीं हो पाता।

    • उनकी नीयत में खोट था - वे आज्ञा का पालन करना ही नहीं चाहते थे।


4. सबक (Lessons)

  1. हठधर्मिता का अंतिम परिणाम: हठधर्मिता का अंत हमेशा अपमान और कठिनाई में होता है। बनी इस्राईल को अंततः वही गाय ज़बह करनी पड़ी, लेकिन उन्होंने अपनी इज्जत और वक्त गवाँ दिया।

  2. आज्ञापालन में सरलता: सच्चा ईमान अल्लाह के आदेशों को बिना जटिल बनाए, सीधे-सादे ढंग से मानने में है।

  3. अनिच्छा के अमल का मूल्य: अल्लाह के यहाँ वही अमल मूल्यवान है जो खुशी-खुशी और पूरी निष्ठा के साथ किया जाए। मजबूरी या अनिच्छा से किया गया अमल उतना मूल्यवान नहीं होता।

  4. परिपूर्ण कुर्बानी: अल्लाह ने जिस गाय की कुर्बानी का आदेश दिया, वह हर दृष्टि से परिपूर्ण थी। यह सिखाता है कि अल्लाह की राह में दी जाने वाली कुर्बानी भी बेहतरीन होनी चाहिए।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल की हठधर्मिता के दुष्परिणाम को दर्शा रही थी, ताकि अगली पीढ़ियाँ सीख लें।

  • यह दर्शाती थी कि आखिरकार अल्लाह का आदेश पूरा होकर रहता है, चाहे इंसान कितनी भी हठ क्यों न कर ले।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

  • आधुनिक हठधर्मिता: आज के मुसलमान भी धार्मिक आदेशों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं। लोग नमाज़, रोज़ा, हज, जकात जैसे फर्जों को टालते हैं और तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। आखिरकार उन्हें वह काम करना ही पड़ता है, लेकिन तब तक बहुत समय और पुण्य गँवा चुके होते हैं।

  • अनिच्छा की इबादत: कई लोग नमाज़ पढ़ते हैं मगर बोझ समझकर, रोज़ा रखते हैं मगर तड़प कर। यह आधुनिक "व मा कादू यफ'alून" (वे करने ही वाले नहीं थे) है।

  • कुर्बानी की भावना: ईदुल अज़हा में लोग सबसे सस्ती या कमजोर जानवर की कुर्बानी देते हैं, जबकि इस कहानी से सीख मिलती है कि अल्लाह के लिए दी जाने वाली कुर्बानी बेहतरीन होनी चाहिए।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि अल्लाह के आदेशों के साथ हठधर्मिता और टालमटोल करने का अंतिम परिणाम हमेशा नुकसान ही होता है।

  • यह हमेशा यह संदेश देगी कि सच्ची आज्ञाकारिता वह है जो तत्परता और खुशी के साथ की जाए, न कि अनिच्छा और मजबूरी में।

  • यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "अल्लाह का हुक्म आखिरकार पूरा होकर रहता है, इसलिए बेहतर है कि उसे तुरंत और खुशी से पूरा कर लिया जाए।"