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कुरआन की आयत 2:72 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذْ قَتَلْتُمْ نَفْسًا فَادَّارَأْتُمْ فِيهَا وَاللَّهُ مُخْرِجٌ مَّا كُنتُمْ تَكْتُمُونَ


2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَإِذْ: और (वह समय) याद करो जब

  • قَتَلْتُمْ: तुमने मार डाला

  • نَفْسًا: एक व्यक्ति को

  • فَادَّارَأْتُمْ: तो तुमने झगड़ा किया

  • فِيهَا: उसके बारे में

  • وَاللَّهُ: और अल्लाह

  • مُخْرِجٌ: निकालने वाला है

  • مَّا: जो (भेद)

  • كُنتُمْ: तुम होते थे

  • تَكْتُمُونَ: छिपाते हुए


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत अब "गाय की कुर्बानी" की कहानी के पीछे छिपे वास्तविक कारण को उजागर करती है। पिछली आयतों में गाय की कुर्बानी का आदेश दिया गया था, लेकिन यह नहीं बताया गया था कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी। इस आयत में उस रहस्योद्घाटन की शुरुआत होती है - यह सब एक अनसुलझी हत्या के मामले को सुलझाने के लिए था।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "और (वह समय) याद करो जब तुमने एक व्यक्ति को मार डाला..."

  • एक गंभीर अपराध: आयत सीधे एक हत्या का जिक्र करती है। यह कोई साधारण मामला नहीं था बल्कि एक गंभीर अपराध था जिसे छिपाया जा रहा था।

भाग 2: "...तो तुमने उस (के मामले) में आपस में झगड़ा किया..."

  • झगड़ा और इनकार: हत्या के बाद, बनी इस्राईल के बीच झगड़ा शुरू हो गया। कोई दोषी को पकड़वाना चाहता था, तो कोई उसे छिपाना चाहता था। यह झगड़ा इतना बढ़ गया कि हत्यारे की पहचान एक रहस्य बनकर रह गई।

भाग 3: "...और अल्लाह वह (भेद) निकालने वाला था जिसे तुम छिपा रहे थे।"

  • अल्लाह का हस्तक्षेप: अल्लाह ने इस सामाजिक अराजकता और छिपे हुए सच को सामने लाने का फैसला किया। "मुख़रीजुन" (निकालने वाला) शब्द बहुत शक्तिशाली है। यह दर्शाता है कि अल्लाह हर छिपे हुए रहस्य को, चाहे वह कितना भी गहरा क्यों न हो, बाहर निकाल सकता है।

  • छिपाया गया सच: "मा कुंतुम तकतिमून" (जिसे तुम छिपा रहे थे) - इससे मतलब सिर्फ हत्यारे का नाम ही नहीं, बल्कि वह पाप, झूठ और एक-दूसरे पर आरोप भी थे जो वे छिपा रहे थे।


4. सबक (Lessons)

  1. कोई अपराध छिपा नहीं रहता: अल्लाह के सामने कोई भी रहस्य नहीं छिप सकता। वह हर छिपी हुई बात को उजागर करने की शक्ति रखता है, चाहे वह कितनी भी चतुराई से क्यों न छिपाई गई हो।

  2. सामाजिक जिम्मेदारी: किसी समुदाय में हुआ गुनाह सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी बन जाता है। उसे छिपाने की बजाय सुलझाना चाहिए।

  3. अल्लाह का समाधान: जब इंसानी कोशिशें नाकाम हो जाएँ, तो अल्लाह अपने तरीके से समस्या का समाधान निकालता है। गाय की कुर्बानी का आदेश देकर अल्लाह ने न सिर्फ हत्यारे को पकड़वाया, बल्कि बनी इस्राईल की आज्ञाकारिता की भी परीक्षा ली।

  4. ईमानदारी सबसे अच्छी नीति: अगर बनी इस्राईल ने शुरू में ही हत्यारे का नाम बता दिया होता या सच्चाई स्वीकार कर ली होती, तो उन्हें इतनी कठिन प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत बनी इस्राईल को उनके एक और गुप्त पाप की याद दिला रही थी, ताकि वे अपनी करतूतों को पहचानें।

  • यह दर्शाती थी कि अल्लाह ने किस तरह एक चमत्कारी तरीके से एक अनसुलझे मामले को सुलझाया।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

  • आधुनिक "छिपी हत्याएँ": आज भी समाज में कितने ही अपराध और पाप छिपे हुए हैं। भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, रिश्वतखोरी, गलत फैसले - ये सभी आधुनिक "क़तलुन नफ्स" (हत्या) के समान हैं जिन्हें लोग "इद्दाराउ" (झगड़ा/छिपाना) करते हैं।

  • सोशल मीडिया और झगड़े: आज सोशल मीडिया पर लोग बिना सबूत के एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं और "इद्दाराउ" (झगड़ा) करते रहते हैं, जबकि सच्चाई छिपी रह जाती है।

  • अल्लाह का डर: यह आयत हमें याद दिलाती है कि अल्लाह हर छिपी हुई बात को जानता है और एक दिन उसे जरूर उजागर करेगा, चाहे वह दुनिया में हो या आखिरत में।

  • समाधान के लिए अल्लाह की ओर रुजू: जब कोई समस्या इतनी जटिल हो जाए कि उसका समाधान न मिले, तो अल्लाह की ओर रुजू करना और उससे मदद माँगना ही सही रास्ता है।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि कोई भी गुनाह, चाहे वह कितना भी छिपा क्यों न लिया जाए, अल्लाह के सामने एक दिन जरूर उजागर होता है।

  • यह हमेशा यह संदेश देगी कि झगड़ने और सच्चाई को छिपाने की बजाय, उसे स्वीकार करना और सुलझाना ही बेहतर है।

  • यह आयत कयामत तक एक स्थायी सत्य स्थापित करती है: "अल्लाह हर छिपे हुए रहस्य को उजागर करने वाला है।"