1. पूरी आयत अरबी में:
ثُمَّ قَسَتْ قُلُوبُكُم مِّن بَعْدِ ذَٰلِكَ فَهِيَ كَالْحِجَارَةِ أَوْ أَشَدُّ قَسْوَةً ۚ وَإِنَّ مِنَ الْحِجَارَةِ لَمَا يَتَفَجَّرُ مِنْهُ الْأَنْهَارُ ۚ وَإِنَّ مِنْهَا لَمَا يَشَّقَّقُ فَيَخْرُجُ مِنْهُ الْمَاءُ ۚ وَإِنَّ مِنْहَا لَمَا يَهْبِطُ مِنْ خَشْيَةِ اللَّهِ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ
2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):
ثُمَّ: फिर / इसके बाद
قَسَتْ: सख्त हो गई
قُلُوبُكُم: तुम्हारे दिल
مِّن بَعْدِ: के बाद
ذَٰلِكَ: उस (चमत्कार के)
فَهِيَ: तो वे (दिल) हैं
كَالْحِجَارَةِ: पत्थरों के समान
أَوْ: या
أَشَدُّ: अधिक सख्त
قَسْوَةً: कठोरता में
وَإِنَّ: और निश्चय ही
مِنَ: में से
الْحِجَارَةِ: पत्थरों
لَمَا: ऐसे हैं जो
يَتَفَجَّرُ: फूट निकलते हैं
مِنْهُ: उनमें से
الْأَنْهَارُ: नदियाँ
وَإِنَّ: और निश्चय ही
مِنْهَا: उनमें से
لَمَا: ऐसे हैं जो
يَشَّقَّقُ: फट जाते हैं
فَيَخْرُجُ: तो निकल जाता है
مِنْهُ: उनमें से
الْمَاءُ: पानी
وَإِنَّ: और निश्चय ही
مِنْهَا: उनमें से
لَمَا: ऐसे हैं जो
يَهْبِطُ: गिर जाते हैं
مِنْ: से
خَشْيَةِ: डर के कारण
اللَّهِ: अल्लाह के
وَمَا: और नहीं है
اللَّهُ: अल्लाह
بِغَافِلٍ: बेखबर / गाफिल
عَمَّا: उससे
تَعْمَلُونَ: तुम करते हो
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत बनी इस्राईल की आध्यात्मिक कठोरता और अकृतज्ञता का अंतिम चित्रण है। पिछली आयत में अल्लाह ने उन्हें मुर्दे को जिलाने का अद्भुत चमत्कार दिखाया था। अब इस आयत में अल्लाह बताता है कि इतने स्पष्ट चमत्कार और निशानियों के बाद भी बनी इस्राईल के दिलों पर क्या असर हुआ।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "फिर उस (चमत्कार) के बाद भी तुम्हारे दिल सख्त हो गए, तो वे पत्थरों के समान हैं, बल्कि उनसे भी अधिक सख्त..."
आध्यात्मिक कठोरता: "क़सवत" का अर्थ है कठोरता, संवेदनहीनता और नर्मी का अभाव। इतने स्पष्ट चमत्कार के बाद भी उनके दिलों में न तो ईमान आया, न ही अल्लाह का डर पैदा हुआ।
पत्थरों से तुलना: अल्लाह उनके दिलों की तुलना पत्थरों से करता है, क्योंकि पत्थर सख्त और बेजान होते हैं। लेकिन फिर एक चौंकाने वाली बात कहता है - "बल्कि उनसे भी अधिक सख्त"। क्यों? क्योंकि पत्थर में तो कुछ संवेदनशीलता होती है (जैसा कि आगे बताया गया है), लेकिन उनके दिलों में कोई संवेदना ही नहीं बची थी।
भाग 2: "...और निश्चय ही कुछ पत्थर ऐसे हैं जिनमें से नदियाँ फूट निकलती हैं, और कुछ ऐसे हैं जो फट जाते हैं तो उनमें से पानी निकल आता है, और कुछ ऐसे हैं जो अल्लाह के डर से (ऊपर से) गिर जाते हैं..."
पत्थरों की संवेदनशीलता: अल्लाह पत्थरों की तीन उदाहरण देकर दर्शाता है कि बेजान पत्थर भी अल्लाह की शक्ति और महानता के आगे प्रतिक्रिया करते हैं:
नदियाँ फूटना: कुछ पत्थरों/चट्टानों से नदियाँ निकलती हैं (प्राकृतिक स्रोत)।
पानी निकलना: कुछ फटकर पानी देते हैं।
अल्लाह के डर से गिरना: यह एक अद्भुत वर्णन है। कुछ पत्थर (जैसे पहाड़) अल्लाह की महानता के डर से लगातार नीचे खिसकते रहते हैं या भूकंप आदि में गिर जाते हैं। इसका एक व्याख्या यह भी है कि जब अल्लाह का नाम लिया जाता है तो कुछ पत्थरों में हलचल होती है।
भाग 3: "...और अल्लाह उस सबसे बेखबर नहीं है जो तुम करते हो।"
अंतिम चेतावनी: यह वाक्यांश एक गंभीर चेतावनी के साथ आयत का अंत करता है। अल्लाह उनकी इस कठोरता, अवज्ञा और अकृतज्ञता को देख रहा है और वह उनके कर्मों से बेखबर नहीं है। उन्हें इसका हिसाब देना होगा।
4. सबक (Lessons)
दिल की कोमलता जरूरी है: ईमान दिल में उतरता है। अगर दिल सख्त और संवेदनहीन हो गया, तो फिर चमत्कार और निशानियाँ देखकर भी इंसान हिदायत नहीं पाता।
निशानियों से सबक लो: पूरी कायनात अल्लाह की ताकत और बड़ाई की गवाही दे रही है। अगर पत्थर जैसी बेजान चीजें भी अल्लाह के आगे झुक जाती हैं, तो इंसान को तो और भी झुकना चाहिए।
अकृतज्ञता सबसे बड़ा पाप: अल्लाह की नेमतों और चमत्कारों के बाद भी अविश्वास और कठोरता दिखाना सबसे बड़ी अकृतज्ञता है।
अल्लाह की निगरानी: इंसान चाहे कितना भी कठोर क्यों न हो जाए, अल्लाह उसके हर कर्म को देख रहा है और एक दिन उससे पूछेगा।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत बनी इस्राईल की आध्यात्मिक मृत्यु का सटीक चित्रण थी, ताकि वे अपनी हालत को पहचानें।
यह दर्शाती थी कि चमत्कारों का असर तभी होता है जब दिल कोमल और स्वीकार करने के लिए तैयार हो।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक "कठोर दिल": आज के इंसान के दिल भी पत्थरों से ज्यादा सख्त हो गए हैं। लोग:
कुरआन सुनकर भी प्रभावित नहीं होते।
मौत और आखिरत की चेतावनी सुनकर भी नहीं सुधरते।
प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, बाढ़) देखकर भी अल्लाह की याद नहीं आती।
पत्थरों से सबक: यह आयत हमें प्रकृति को अल्लाह की निशानी के रूप में देखना सिखाती है। पहाड़, नदियाँ, बारिश - ये सब अल्लाह की ताकत के सामने झुकते हैं, लेकिन इंसान का अहंकार उसे झुकने नहीं देता।
ईमान की कोमलता: आज के मुसलमान का भी ईमान कठोर हो गया है। नमाज़, दुआ, कुरआन पढ़ने से दिल नहीं पिघलते। यह एक खतरनाक संकेत है।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि दिल की कठोरता इंसान की सबसे बड़ी आध्यात्मिक बीमारी है।
यह हमेशा मानवता को यह संदेश देगी कि प्रकृति की हर चीज अल्लाह की बड़ाई कर रही है, इंसान को भी उसके सामने झुक जाना चाहिए।
यह आयत कयामत तक एक स्थायी सत्य स्थापित करती है: "अल्लाह तुम्हारे हर कर्म को देख रहा है, इसलिए अपने दिलों को कठोर मत बनाओ।"