1. पूरी आयत अरबी में:
أَفَتَطْمَعُونَ أَن يُؤْمِنُوا لَكُمْ وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِّنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلَامَ اللَّهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُ مِن بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ
2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):
أَفَتَطْمَعُونَ: क्या तुम आशा रखते हो?
أَن: कि
يُؤْمِنُوا: वे ईमान लाएँगे
لَكُمْ: तुमपर (तुम्हारी बात पर)
وَقَدْ: और इसके बावजूद कि
كَانَ: था
فَرِيقٌ: एक समूह
مِّنْهُمْ: उनमें से
يَسْمَعُونَ: सुनते थे
كَلَامَ: बात (वचन)
اللَّهِ: अल्लाह के
ثُمَّ: फिर
يُحَرِّفُونَهُ: उसे बदल डालते हैं
مِن بَعْدِ: के बाद
مَا: जब
عَقَلُوهُ: उन्होंने उसे समझ लिया
وَهُمْ: और वे
يَعْلَمُونَ: जानते हुए (भी)
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और आपके साथियों को संबोधित करती है। मदीना के यहूदी लगातार विवाद और हठधर्मिता दिखा रहे थे। कुछ मुसलमान शायद यह आशा (तमा') कर रहे थे कि यहूदी अंततः इस्लाम स्वीकार कर लेंगे, क्योंकि वे "अहले किताब" (किताब वाले) थे और उनकी अपनी किताब (तौरात) में पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणी थी। इस आयत में अल्लाह मुसलमानों को यहूदियों की उस घृणित आदत से अवगत करा रहा है जो सदियों से उनकी पहचान रही है - अल्लाह के कलाम को सुनने के बाद भी जानबूझकर उसमें तब्दीली (बदलाव) करना।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग 1: "क्या तुम (मुसलमानों) को आशा है कि वे (यहूदी) तुमपर ईमान ले आएँगे..."
एक यथार्थवादी चेतावनी: अल्लाह मुसलमानों की इस आशा पर पानी फेर रहा है। यह एक तरह की मनोवैज्ञानिक तैयारी है ताकि मुसलमान निराश न हों और यहूदियों की हठधर्मिता को समझ सकें।
भाग 2: "...जबकि उनमें से एक समूह अल्लाह के कलाम को सुनता था, फिर उसे बदल डालता है..."
ऐतिहासिक पाप का खुलासा: यहाँ "अल्लाह के कलाम" से मतलब तौरात से है, जिसे अल्लाह ने हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) पर उतारा था।
"तहरीफ" (बदलाव) का अर्थ: इसके दो रूप हैं:
तहरीफ-ए-लफ़्ज़ी (शब्दों में बदलाव): तौरात की आयतों के शब्दों और अक्षरों को बदल देना।
तहरीफ-ए-मनवी (अर्थ में बदलाव): शब्दों को न बदलना, लेकिन उनकी गलत व्याख्या करके उनके अर्थ को ही बदल देना। (जैसे पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के लक्षणों वाली आयतों का गलत अर्थ निकालना)
भाग 3: "...इसके बाद कि उसे समझ चुके होते हैं, और यह जानते हुए (भी)?"
जानबूझकर किया गया पाप: यह वाक्यांश उनके अपराध को और गंभीर बना देता है। उनका पाप तीन स्तरों पर था:
सुनना: उन्होंने अल्लाह का कलाम सुना।
समझना: उन्होंने उसका अर्थ और मतलब समझा ("अक़लूह")।
जानना: वे जानते थे कि यह अल्लाह का कलाम है और उसे बदलना गुनाह है ("व हुम यअ'लमून")।
इन तीनों के बावजूद उन्होंने उसे बदल डाला। यह सोचा-समझा और जानबूझकर किया गया धोखा था।
4. सबक (Lessons)
धार्मिक नेताओं से सावधानी: किसी समुदाय के धार्मिक नेताओं और विद्वानों पर अंधविश्वास नहीं करना चाहिए। उनमें से कुछ लोग जानबूझकर धार्मिक ग्रंथों में बदलाव कर सकते हैं।
ज्ञान की जिम्मेदारी: ज्ञान एक बहुत बड़ी अमानत है। उसका दुरुपयोग करना, उसे छिपाना या उसमें बदलाव करना सबसे बड़ा धोखा है।
ईमान आशा से परे है: ईमान अल्लाह की देन है। जिसके दिल पर अल्लाह मुहर लगा दे, उसे कोई दलील, कोई चमत्कार ईमान की ओर नहीं ले जा सकता, भले ही वह किताब वाला ही क्यों न हो।
सच्चाई को स्वीकार करने में देरी: हठधर्मिता और पूर्वाग्रह इंसान को सच्चाई को स्वीकार करने से रोकते हैं, भले ही वह उसके सामने स्पष्ट हो।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत मदीना के मुसलमानों को यहूदियों की सच्चाई से अवगत करा रही थी, ताकि वे उनसे अत्यधिक आशा न रखें और उनकी चालों से सावधान रहें।
यह यहूदी विद्वानों (रब्बियों) द्वारा तौरात में किए गए बदलावों का खुलासा था।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक "तहरीफ" (बदलाव): आज भी लोग धर्म के नाम पर "तहरीफ" करते हैं:
कुरआन की गलत व्याख्या: कुछ लोग कुरआन की आयतों का अर्थ तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं ताकि वह उनकी इच्छाओं के अनुरूप हो जाए।
धर्म में नई बातें (बिदअत): इस्लाम में नए-नए रिवाज (जैसे कुछ मज़ारों पर जाना, वहाँ सजदा करना) जोड़ना भी एक प्रकार की "तहरीफ" है।
सुन्नत को नकारना: पैगंबर (सल्ल.) की सुन्नत को कम महत्व देना या नकारना।
मीडिया और तहरीफ: आज मीडिया और सोशल मीडिया इस्लाम की छवि को विकृत (तहरीफ) करने का काम कर रहा है। इस्लाम के सच्चे स्वरूप को बदलकर एक हिंसक और कट्टर धर्म का रूप दिखाया जा रहा है।
सच्चे ज्ञान की तलाश: इस आयत से सीख मिलती है कि हमें धार्मिक ज्ञान सीधे मूल स्रोतों (कुरआन और सही हदीस) से लेना चाहिए, न कि उन लोगों से जो जानबूझकर या अनजाने में धर्म में बदलाव करते हैं।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि धार्मिक ग्रंथों और शिक्षाओं के साथ छेड़छाड़ (तहरीफ) एक स्थायी खतरा है।
यह हमेशा मुसलमानों को सचेत करती रहेगी कि वे अपने धर्म की रक्षा करें और उसे मनमाने बदलावों से बचाएँ।
यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "जो लोग अल्लाह के कलाम को जानबूझकर बदलते हैं, वे कभी सच्चे ईमान की ओर नहीं आ सकते।"