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कुरआन की आयत 2:76 (सूरह अल-बक़ारह) का पूर्ण विस्तृत विवरण

 

1. पूरी आयत अरबी में:

وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَا بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ قَالُوا أَتُحَدِّثُونَهُم بِمَا فَتَحَ اللَّهُ عَلَيْكُمْ لِيُحَاجُّوكُم بِهِ عِندَ رَبِّكُمْ ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ


2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):

  • وَإِذَا: और जब

  • لَقُوا: मिलते हैं

  • الَّذِينَ: जो लोग

  • آمَنُوا: ईमान लाए

  • قَالُوا: कहते हैं

  • آمَنَّا: हम ईमान लाए

  • وَإِذَا: और जब

  • خَلَا: अकेला हो जाता है

  • بَعْضُهُمْ: उनमें से कुछ

  • إِلَىٰ: से

  • بَعْضٍ: कुछ (दूसरे)

  • قَالُوا: कहते हैं

  • أَتُحَدِّثُونَهُم: क्या तुम बताते हो उन्हें

  • بِمَا: उस (ज्ञान) को

  • فَتَح: खोल दिया (प्रकट किया)

  • اللَّهُ: अल्लाह ने

  • عَلَيْكُمْ: तुमपर

  • لِيُحَاجُّوكُم: ताकि वे बहस करें तुमसे

  • بِهِ: उसके साथ

  • عِند: के पास

  • رَبِّكُمْ: तुम्हारे पालनहार के

  • أَفَلَا: तो क्या तुम नहीं

  • تَعْقِلُونَ: अक्ल से काम लेते


3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)

संदर्भ (Context):

यह आयत मदीना के यहूदी नेताओं और विद्वानों की पाखंडपूर्ण और धोखेबाज़ प्रकृति को उजागर करती है। यह पिछली आयतों में वर्णित उनके चरित्र का एक और पहलू दिखाती है - दोगलापन और सच्चाई को छिपाना। वे आम मुसलमानों के सामने एक रवैया अपनाते थे और अपने निजी समूह में दूसरा।

आयत के भागों का विश्लेषण:

भाग 1: "और जब वे उन लोगों से मिलते हैं जो ईमान लाए हैं, तो कहते हैं: 'हम ईमान ला चुके हैं।'"

  • बाहरी दिखावा: यहूदी नेता मुसलमानों से मिलते समय दावा करते थे कि वे भी पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) पर ईमान ले आए हैं। यह एक राजनीतिक और सामाजिक दिखावा था। वे मुसलमानों का विश्वास जीतकर अपना प्रभाव बनाए रखना चाहते थे या उनसे कोई लाभ उठाना चाहते थे।

भाग 2: "और जब उनमें से कुछ कुछ (अन्य) से अकेले में मिलते हैं, तो कहते हैं: 'क्या तुम उन्हें (मुसलमानों को) वह (ज्ञान) बता रहे हो जो अल्लाह ने तुमपर खोल दिया है...'"

  • असली चेहरा: अपने निजी समूह में, वे एक-दूसरे को डाँटते और आलोचना करते थे। जब कोई यहूदी विद्वान गलती से मुसलमानों के सामने तौरात में वर्णित पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के लक्षणों का जिक्र कर देता, तो दूसरे यहूदी उसे यह कहकर डाँटते: "तुम उन्हें यह राज क्यों बता रहे हो?"

भाग 3: "'...ताकि वे तुम्हारे पालनहार के पास तुमसे इसके आधार पर बहस करें?'"

  • छिपाने का कारण: वे सच्चाई को इसलिए छिपा रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि अगर मुसलमानों को तौरात में पैगंबर के आने के स्पष्ट प्रमाण मिल गए, तो वे कयामत के दिन अल्लाह के सामने इस सबूत का इस्तेमाल करके उनसे बहस करेंगे और उनकी हार हो जाएगी। उनकी चिंता सच्चाई को स्वीकार करने की नहीं, बल्कि आखिरत में शर्मिंदा होने की थी।

भाग 4: "'...तो क्या तुम अक्ल से काम नहीं लेते?'"

  • तर्क की पुकार: अल्लाह उनकी इस मूर्खता पर हैरानी जताता है। यह एक तार्किक सवाल है: क्या तुम्हारी अक्ल यही कहती है कि सच्चाई को छिपाकर रखो और आखिरत में शर्मिंदगी को न्यौता दो? सही अक्ल तो यह कहती है कि सच्चाई को स्वीकार कर लो और दुनिया और आखिरत में सफल हो जाओ।


4. सबक (Lessons)

  1. पाखंड से सावधान: इस आयत में "मुनाफिक़ी" (पाखंड) का एक स्पष्ट उदाहरण है। बाहर से दिखावा और अंदर से इनकार बहुत बड़ा पाप है।

  2. ज्ञान छिपाना पाप है: धार्मिक ज्ञान, विशेष रूप से मार्गदर्शन से संबंधित ज्ञान, को छिपाना एक भारी जिम्मेदारी है। इसे फैलाना चाहिए।

  3. आखिरत की चिंता: इंसान को हमेशा आखिरत के हिसाब-किताब को याद रखना चाहिए। दुनिया की छोटी-छोटी चालाकियाँ आखिरत में बेकार साबित होंगी।

  4. सच्चाई स्वीकार करने में बुद्धिमानी है: सच्चाई को छिपाने या उससे बचने की कोशिश करना मूर्खता है। बुद्धिमानी इसी में है कि उसे तुरंत स्वीकार कर लिया जाए।


5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)

अतीत (Past) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत मुसलमानों को मदीना के यहूदियों की दोगली नीति और उनके डर से अवगत करा रही थी।

  • यह दर्शाती थी कि यहूदी नेता पैगंबर (सल्ल.) की पैगंबरी को जानते थे लेकिन हठ और ईर्ष्या के कारण उसे छिपा रहे थे।

वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:

  • आधुनिक पाखंड: आज भी कई लोगों का व्यवहार ऐसा ही है। वे सार्वजनिक रूप से तो धार्मिक बातें करते हैं लेकिन निजी जिंदगी में इस्लाम के हुक्मों की अवहेलना करते हैं। यह आधुनिक "हम ईमान लाए" का दिखावा है।

  • ज्ञान छिपाना: आज कुछ लोग इस्लाम के बारे में सच्चाई (जैसे पैगंबर के चमत्कार, इस्लाम की सुंदर शिक्षाएँ) को छिपाते हैं या उसे विकृत करके पेश करते हैं ताकि लोग इस्लाम की ओर न आएँ।

  • मीडिया का रवैया: मीडिया अक्सर इस्लाम के बारे में सच्चाई को छिपाता है या तोड़-मरोड़ कर पेश करता है, जो एक प्रकार का "तुम उन्हें क्यों बता रहे हो?" जैसा रवैया है।

  • व्यक्तिगत जीवन: कई बार हम अपने गुनाहों या कमियों को छिपाने के लिए लोगों के सामने एक अच्छे इंसान का दिखावा करते हैं। यह भी एक प्रकार का पाखंड है।

भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:

  • यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह चेतावनी देती रहेगी कि पाखंड और दोगलापन एक गंभीर बीमारी है जिससे बचना चाहिए।

  • यह हमेशा मानवता को यह संदेश देगी कि सच्चाई को छिपाना और उससे डरना मूर्खता है, जबकि उसे स्वीकार करना बुद्धिमानी है।

  • यह आयत कयामत तक एक स्थायी सिद्धांत स्थापित करती है: "अल्लाह के सामने कोई रहस्य छिपा नहीं रहेगा, इसलिए दिखावे की जिंदगी जीने से बेहतर है कि ईमानदार बनो।"