1. पूरी आयत अरबी में:
أَوَلَا يَعْلَمُونَ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ
2. अरबी शब्दों का अर्थ (Word-to-Word Meaning):
أَوَلَا: क्या वे नहीं जानते?
يَعْلَمُونَ: जानते हैं
أَنَّ: कि
اللَّهَ: अल्लाह
يَعْلَمُ: जानता है
مَا: जो कुछ
يُسِرُّونَ: वे छिपाते हैं
وَمَا: और जो कुछ
يُعْلِنُونَ: वे प्रकट करते हैं
3. पूर्ण विवरण (Full Explanation)
संदर्भ (Context):
यह आयत पिछली आयत (2:76) का तार्किक निष्कर्ष और एक सीधी चेतावनी है। पिछली आयत में बताया गया था कि यहूदी नेता मुसलमानों के सामने ईमान का दिखावा करते हैं ("हम ईमान लाए"), लेकिन अपने निजी समूह में सच्चाई (पैगंबर मुहम्मद सल्ल. के बारे में तौरात की भविष्यवाणी) को छिपाने की सलाह देते हैं। इस आयत में अल्लाह उनकी इस मूर्खता और अज्ञानता पर सीधा प्रहार करते हुए बताता है कि उनकी कोई भी बात अल्लाह से छिपी नहीं है।
आयत के भागों का विश्लेषण:
भाग: "क्या वे नहीं जानते कि अल्लाह उनकी हर छिपी और खुली बात को जानता है?"
एक तार्किक प्रश्न: आयत एक ऐसे प्रश्न के साथ शुरू होती है जिसका उत्तर "हाँ" में दिया जाना तय है। यह प्रश्न उनकी अक्ल और समझ को चुनौती देता है। मूल रूप से कहा जा रहा है: "क्या तुम इतने मूर्ख और अंधे हो कि यह बुनियादी बात भी नहीं जानते?"
"युसिर्रून" (छिपाते हैं): इससे मतलब है:
दिल के भीतर के विचार, इरादे और षड्यंत्र।
अंधेरे में की जाने वाली गुप्त बैठकें और साजिशें।
धार्मिक ज्ञान को छिपाना (जैसा कि पिछली आयत में था)।
"युस्लिनून" (प्रकट करते हैं): इससे मतलब है:
खुलकर की गई बातचीत और कार्य।
दिखावे के लिए किया गया ईमान।
लोगों के सामने की जाने वाली हरकतें।
अल्लाह का सर्वज्ञान: अल्लाह "अल-अलीम" (सर्वज्ञ) है। उसके लिए छिपा और खुला, अंदर और बाहर, रात और दिन - सब कुछ एक समान है। कोई भी रहस्य उससे छिपा नहीं रह सकता।
4. सबक (Lessons)
अल्लाह की सर्वव्यापक जानकारी: अल्लाह का इल्म (ज्ञान) हर चीज को घेरे हुए है। इंसान की हर सांस, हर विचार, हर इरादा उसकी जानकारी में है।
पाखंड बेकार है: दिखावे की इबादत, झूठा ईमान और लोगों को धोखा देने की कोशिश अल्लाह के यहाँ बिल्कुल बेकार है। वह तो दिलों के भीतर की बात जानता है।
ईमानदारी सबसे अच्छी नीति: चूंकि अल्लाह सब कुछ जानता है, इसलिए इंसान के लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि वह अंदर और बाहर से पूरी तरह ईमानदार और सच्चा बन जाए।
गुप्त पापों से डरो: इंसान को सिर्फ खुले गुनाहों से ही नहीं, बल्कि उन गुप्त पापों से भी डरना चाहिए जो कोई नहीं देख रहा, क्योंकि अल्लाह देख रहा है।
5. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevancy: Past, Present & Future)
अतीत (Past) में प्रासंगिकता:
यह आयत यहूदी नेताओं को एक सीधी चेतावनी थी कि उनकी चालाकी और छल-कपट अल्लाह के सामने बेकार है।
यह मुसलमानों के लिए एक सांत्वना और आश्वासन थी कि अल्लाह उनके दुश्मनों की हर चाल को जानता है।
वर्तमान (Present) में प्रासंगिकता:
आधुनिक पाखंड: आज के लोग भी वही करते हैं। वे सोशल मीडिया पर धार्मिक पोस्ट करते हैं लेकिन निजी जिंदगी में गुनाहों में डूबे रहते हैं। वे लोगों के सामने अच्छे बनने का दिखावा करते हैं लेकिन अकेले में अल्लाह की मनाही की हुई चीजें करते हैं। यह आयत उन सभी को चेतावनी है।
गुप्त गुनाह: इंटरनेट और डिजिटल दुनिया ने गुप्त गुनाहों के दरवाजे और खोल दिए हैं। लोग सोचते हैं कि कोई देख नहीं रहा। यह आयत याद दिलाती है कि अल्लाह देख रहा है।
ईमान की शुद्धता: यह आयत हमें अपने इरादों और ईमान को शुद्ध करने की प्रेरणा देती है। हमारा ईमान सिर्फ लोगों के दिखाने के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह के लिए होना चाहिए।
डर और उम्मीद: अल्लाह के इस गुण पर विश्वास इंसान के अंदर एक स्वस्थ्य डर (तक्वा) पैदा करता है और साथ ही यह उम्मीद भी देता है कि हमारे छिपे हुए अच्छे कर्म भी अल्लाह के यहाँ बर्बाद नहीं जाएंगे।
भविष्य (Future) में प्रासंगिकता:
यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी को यह स्थायी सत्य याद दिलाती रहेगी कि अल्लाह का ज्ञान हर छिपी और खुली चीज को समेटे हुए है।
जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी विकसित होगी और गोपनीयता के नए खतरे पैदा होंगे, यह आयत और भी अधिक प्रासंगिक होती जाएगी, क्योंकि यह अंतिम सत्य बताती है कि असली गोपनीयता केवल अल्लाह के सामने ही है।
यह आयत कयामत तक मानवता के लिए एक स्थायी चेतावनी है: "तुम कुछ भी छिपा सकते हो, लेकिन अल्लाह से नहीं।"