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कुरआन 2:8 - "व मिनन नासि मै यकूलू आमन्ना बिल्लाहि व बिल यौमिल आखिरि व मा हुम बि मु'मिनीन" (وَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَمَا هُم بِمُؤْمِنِينَ)

यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की आठवीं आयत (2:8) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:8 - "व मिनन नासि मै यकूलू आमन्ना बिल्लाहि व बिल यौमिल आखिरि व मा हुम बि मु'मिनीन" (وَمِنَ النَّاسِ مَن يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَمَا هُم بِمُؤْمِنِينَ)

हिंदी अर्थ: "और कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि 'हम अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान लाए,' जबकि वे ईमान वाले नहीं हैं।"

यह आयत मानवता के एक नए और बहुत ही खतरनाक वर्ग का परिचय कराती है - "मुनाफिक़ीन" या "पाखंडी"। पिछली आयतों में दो वर्गों का वर्णन किया गया था:

  1. मु'मिनीन (विश्वासी): जो ईमान लाते हैं और सफल होते हैं।

  2. काफ़िरीन (इनकार करने वाले): जो खुलेआम इनकार करते हैं और सजा के भागी हैं।

अब यह आयत तीसरे वर्ग का वर्णन शुरू करती है, जो इन दोनों के बीच की स्थिति है और जो सबसे अधिक खतरनाक है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • व मिनन नासि (Wa minan naasi): "और लोगों में से कुछ" (And among the people there are some). यह बताता है कि यह विशेषता सभी लोगों में नहीं, बल्कि एक खास समूह में पाई जाती है।

  • मै यकूलू (Man yaqoolu): "जो कहते हैं" (Who say). यहाँ जोर "कहने" पर है, यानी उनके वचन पर।

  • आमन्ना बिल्लाहि व बिल यौमिल आख़िरि (Aamanna Billahi wa bil Yawmil Aakhiri): "हम ईमान लाए अल्लाह पर और आख़िरत के दिन पर" (We believe in Allah and the Last Day). यह एक मुसलमान के मौलिक ईमान की घोषणा है।

  • व मा हुम बि मु'मिनीन (Wa ma hum bi mu'mineen): "और वे ईमान वाले नहीं हैं" (But they are not believers). यहाँ "हुम" (वे) और "मु'मिनीन" (ईमान वाले) के बीच "ब" (with) का प्रयोग करके एक दूरी और असत्यता को दर्शाया गया है। यानी, उनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

इस आयत में "मुनाफिक़" (पाखंडी) की पहचान के दो मुख्य बिंदु बताए गए हैं:

1. जबान और दिल का फर्क (The Dichotomy of Tongue and Heart)

  • ये लोग जबान से वह बोलते हैं जो एक मोमिन बोलता है - "हम अल्लाह और आख़िरत पर ईमान लाए।"

  • लेकिन दिल से उनका ईमान नहीं होता। उनके शब्द और उनकी आंतरिक स्थिति के बीच एक गहरा अंतर है।

  • यह एक जानबूझकर का झूठ है। वे समाज में प्रतिष्ठा, सुरक्षा या किसी लाभ के लिए अपने आपको मुसलमान दिखाते हैं, जबकि अंदर से वे ईमान नहीं रखते।

2. ईमान के मूल सिद्धांतों का दिखावा (Pretense of Core Beliefs)

  • मुनाफिक सीधे-सीधे "हम मुसलमान हैं" नहीं कहते। बल्कि वे ईमान के सबसे बुनियादी सिद्धांतों का उल्लेख करते हैं:

    • "बिल्लाह" (अल्लाह पर): यह तौहीद (एकेश्वरवाद) की बुनियाद है।

    • "बिल यौमिल आख़िर" (आख़िरत के दिन पर): यह जवाबदेही और प्रतिफल की बुनियाद है।

  • इस तरह, वे अपनी बात को और भी विश्वसनीय बनाने की कोशिश करते हैं। वे जानते हैं कि सिर्फ "मुसलमान" कहने से ज्यादा असरदार ईमान के इन मूल सिद्धांतों को स्वीकार करना है।


3. मुनाफिक़ीन का खतरा (The Danger of the Hypocrites)

मुनाफिक समाज के लिए खुले काफिरों से कहीं अधिक खतरनाक होते हैं, क्योंकि:

  • घातक विष: वे समाज के अंदर रहकर उसे खोखला करते हैं, जैसे किसी फल के अंदर सड़न पैदा हो जाए।

  • जासूस की भूमिका: वे मुसलमानों के बीच रहकर उनकी कमजोरियों और रहस्यों को जानते हैं और उन्हें दुश्मनों तक पहुँचा सकते हैं।

  • फूट डालो: वे मुसलमानों के बीच अफवाहें फैलाकर, संदेह पैदा करके और झूठी सूचनाएँ देकर फूट डाल सकते हैं।

  • पहचानने में कठिनाई: खुले काफिर तो पहचान में आ जाते हैं, लेकिन मुनाफिक की पहचान करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि वह बाहर से एक मोमिन जैसा दिखता है।


4. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • आत्म-जांच (Self-Reflection): यह आयत हर मुसलमान के लिए एक चेतावनी है। हमें अपने आप से सवाल करना चाहिए: "क्या मेरा ईमान सिर्फ जबानी है या दिल से है? क्या मेरे कर्म मेरे दावों के अनुरूप हैं? कहीं मैं दिखावे की इबादत या ईमान तो नहीं कर रहा?"

  • दिखावे से बचाव: यह आयत सिखाती है कि अल्लाह के यहाँ दिखावा और पाखंड का कोई स्थान नहीं है। इबादत और अच्छे कर्म केवल अल्लाह की रज़ा के लिए होने चाहिए, लोगों को दिखाने के लिए नहीं।

  • सावधानी: यह आयत मुसलमान समुदाय को सिखाती है कि उन्हें हमेशा सतर्क रहना चाहिए और लोगों को सिर्फ उनके दावों पर नहीं, बल्कि उनके कर्मों और चरित्र के आधार पर परखना चाहिए।


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:8 एक ऐसे वर्ग का परिचय कराती है जो इस्लामी समाज के लिए सबसे बड़ा आंतरिक खतरा है - मुनाफिक़ीन (पाखंडी)। यह आयत हमें सिखाती है कि ईमान की असली कसौटी सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि दिल की गहरी आस्था और उसके अनुरूप कर्म हैं। यह हर इंसान के लिए आत्म-मंथन का आह्वान है कि वह अपने ईमान की शुद्धता की जाँच करे और हर प्रकार के दिखावे और पाखंड से अपने आप को बचाए। अगली आयतों में इन मुनाफिक़ीन के और गुणों तथा उनके भयानक परिणाम का वर्णन किया गया है।