Read Quran translation in Hindi with verse-by-verse meaning and time-relevant explanations for deeper understanding.

कुरआन 2:9 - "युखादिउनल्लाह वल्लजीना आमनू व मा यख्दऊना इल्ला अंफुसहिम व मा यशऊरून" (يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَمَا يَخْدَعُونَ إِلَّا أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ)

यहाँ कुरआन की दूसरी सूरह, अल-बक़ारह की नौवीं आयत (2:9) का पूर्ण विस्तृत व्याख्या हिंदी में प्रस्तुत है।


कुरआन 2:9 - "युखादिउनल्लाह वल्लजीना आमनू व मा यख्दऊना इल्ला अंफुसहिम व मा यशऊरून" (يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَمَا يَخْدَعُونَ إِلَّا أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ)

हिंदी अर्थ: "वे अल्लाह और ईमान वालों को धोखा देने की कोशिश करते हैं, हालाँकि वे धोखा तो सिर्फ अपने आप को ही दे रहे हैं, और उन्हें इसका एहसास नहीं है।"

यह आयत मुनाफिक़ीन (पाखंडियों) के चरित्र का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू सामने लाती है। पिछली आयत (2:8) में बताया गया कि वे ईमान का झूठा दावा करते हैं। अब इस आयत में बताया जा रहा है कि उनकी इस हरकत का असली शिकार कौन होता है।

आइए, इस आयत को शब्द-दर-शब्द और उसके गहन अर्थों में समझते हैं।


1. शब्दार्थ विश्लेषण (Word-by-Word Analysis)

  • युखादिउना (Yukhaadi'oona): वे धोखा देने की कोशिश करते हैं (They seek to deceive)। यह शब्द सिर्फ धोखा देने का नहीं, बल्कि छल-कपट और धूर्तता से काम लेने का भाव रखता है।

  • अल्लाह (Allaha): अल्लाह को।

  • वल्लजीना आमनू (Wallazeena aamanoo): और उन लोगों को जो ईमान लाए (and those who believe)।

  • व मा यख्दऊना (Wa maa yakhda'oona): और वे धोखा नहीं देते (But they do not deceive)।

  • इल्ला अंफुसहिम (Illaa anfusahum): सिवाय अपने आप को (Except themselves)।

  • व मा यशऊरून (Wa maa yash'uroon): और वे महसूस नहीं करते (And they do not perceive)।


2. गहन अर्थ और संदेश (In-depth Meaning & Message)

इस आयत में तीन गहन सत्य छिपे हैं:

1. अल्लाह और ईमान वालों को धोखा देने का दंभ (The Arrogance of Deceiving Allah and the Believers)

  • अल्लाह को धोखा: मुनाफिक़ सोचते हैं कि वे अपने दिखावे और झूठे दावों से अल्लाह को धोखा दे सकते हैं। वे भूल जाते हैं कि अल्लाह तो उनके दिलों के भेद तक जानता है। वह हर छिपी हुई नीयत और हर षड्यंत्र से वाकिफ है।

  • ईमान वालों को धोखा: वे मुसलमान समुदाय को भी धोखा देने की कोशिश करते हैं। वे अपनी सच्ची मंशा (इस्लाम और मुसलमानों को नुकसान पहुँचाना) छिपाकर उनके बीच रहते हैं और उनका विश्वास हासिल करते हैं।

2. स्वयं को धोखा देने की वास्तविकता (The Reality: Deceiving Themselves)

  • आयत स्पष्ट करती है कि उनकी यह चालाकी और धोखेबाज़ी का अंतिम शिकार वे खुद ही होते हैं

  • कैसे?

    • दुनिया में: वे सोचते हैं कि उन्होंने अपना फायदा साध लिया, लेकिन असल में वे अपने अंदर झूठ, पाखंड और कपट का जहर भर रहे हैं जो उनकी आत्मा को नष्ट कर देता है।

    • आख़िरत (परलोक) में: यह सबसे बड़ा धोखा है। वे सोचते हैं कि उन्होंने अल्लाह को बेवकूफ बना दिया, लेकिन क़यामत के दिन जब उनके चेहरे काले कर दिए जाएँगे और उन्हें जहन्नम में डाल दिया जाएगा, तब उन्हें एहसास होगा कि उन्होंने अपनी ही आत्मा को धोखा देकर सदा के लिए घाटे में डाल दिया।

3. अनजाने में नहीं, बल्कि अनजान बनने की स्थिति (Not Unaware, But in a State of Unawareness)

  • "व मा यशऊरून" - "और उन्हें इसका एहसास नहीं है।"

  • यह उनकी सबसे दयनीय स्थिति है। वे इतने आत्म-मोह और अहंकार में डूबे हुए हैं कि उन्हें अपनी इस भयंकर गलती का एहसास ही नहीं होता।

  • वे समझते हैं कि वे बहुत चालाक हैं और सब कुछ संभाल रहे हैं, जबकि असल में वे एक भयानक आध्यात्मिक आपदा की ओर बढ़ रहे हैं और उसे देख नहीं पा रहे। यह अल्लाह की तरफ से एक मानसिक मुहर का प्रकार है।


3. व्यावहारिक जीवन में महत्व (Practical Importance in Daily Life)

  • ईमानदारी की शिक्षा: यह आयत हर मुसलमान को सिखाती है कि उसे हर हाल में ईमानदार और सच्चा बनना चाहिए। दिखावा और पाखंड एक ऐसा जाल है जो खुद को ही फँसाता है।

  • अल्लाह की जानकारी का एहसास: यह आयत हमें यह याद दिलाती है कि अल्लाह हर राज जानता है। कोई भी छिपी हुई नीयत उससे छिपी नहीं है। इसलिए, हमें हमेशा अपनी नीयतों को शुद्ध रखना चाहिए।

  • आत्म-जागरूकता: यह आयत हमें अपने आप पर नजर रखने की सलाह देती है। कहीं हम भी तो किसी मामले में खुद को धोखा तो नहीं दे रहे? कहीं हम भी दिखावे का शिकार तो नहीं हो रहे?


निष्कर्ष (Conclusion)

कुरआन की आयत 2:9 मुनाफिक़ीन की मानसिकता और उनके भ्रम को उजागर करती है। यह एक कड़वे सत्य की ओर इशारा करती है: इंसान चाहे जितनी भी चालाकी कर ले, वह सिर्फ खुद को ही धोखा दे सकता है, अल्लाह को नहीं। उसकी सारी योजनाएँ अंततः उसी के विरुद्ध काम करती हैं। यह आयत हर इंसान के लिए एक चेतावनी है कि वह अपने जीवन में पाखंड और दिखावे से दूर रहे और ईमान व इखलास (शुद्धता) के साथ जिए, क्योंकि अंततः हर किसी को अपने कर्मों का फल भुगतना है।