१. पूरी आयत अरबी में:
وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ لَا تَعْبُدُونَ إِلَّا اللَّهَ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَذِي الْقُرْبَىٰ وَالْيَتَامَىٰ وَالْمَسَاكِينِ وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ ثُمَّ تَوَلَّيْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِّنكُمْ وَأَنتُم مُّعْرِضُونَ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَإِذْ: और (याद करो) वह समय जब।
أَخَذْنَا: हमने लिया।
مِيثَاقَ: वादा, प्रतिज्ञा, अहद।
بَنِي إِसْرَائِيل: बनी इस्राईल (हज़रत याकूब (अलैहिस्सलाम) की संतान)।
لَا تَعْبُدُونَ: तुम इबादत न करना।
إِلَّا اللَّه: सिवाय अल्लाह के।
وَبِالْوَالِدَيْنِ: और माता-पिता के साथ।
إِحْسَانًا: भलाई, अच्छा व्यवहार।
وَذِي الْقُرْبَىٰ: और रिश्तेदारों के साथ।
وَالْيَتَامَىٰ: और अनाथों के साथ।
وَالْمَسَاكِين: और मिस्कीनों (गरीबों) के साथ।
وَقُولُوا: और बोलो।
لِلنَّاس: लोगों से।
حُسْنًا: अच्छी बात।
وَأَقِيمُوا: और कायम करो।
الصَّلَاة: नमाज।
وَآتُوا: और दो।
الزَّكَاة: जकात।
ثُمَّ: फिर, इसके बाद।
تَوَلَّيْتُمْ: तुमने पीठ फेर ली, मुकर गए।
إِلَّا قَلِيلًا: मगर थोड़े से (लोगों को छोड़कर)।
مِّنكُمْ: तुम में से।
وَأَنتُم: और तुम।
مُّعْرِضُونَ: पीठ फेरने वाले, उपेक्षा करने वाले।
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "और (वह समय याद करो) जब हमने बनी इस्राईल से प्रतिज्ञा (अहद) ली: 'अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करना, माता-पिता के साथ भलाई करना, और रिश्तेदारों, अनाथों और मिस्कीनों के साथ (भी भलाई करना), और लोगों से अच्छी बात कहना, नमाज़ कायम करना और जकात देना।' फिर तुम में से थोड़े को छोड़कर तुम सब (इस प्रतिज्ञा से) मुड़ गए और तुम पीठ फेरने वाले बन गए।"
गहन व्याख्या:
यह आयत बनी इस्राईल (यहूदियों) के एक ऐतिहासिक वचन (Covenant) की याद दिलाती है जो उन्होंने अल्लाह के साथ किया था। इस वचन में मुख्य रूप से दो प्रकार के कर्तव्य बताए गए थे:
1. अल्लाह के प्रति कर्तव्य (हुकूकुल्लाह - Rights of God):
"सिर्फ अल्लाह की इबादत करो" - यह तौहीद (एकेश्वरवाद) का मूल सिद्धांत है।
"नमाज़ कायम करो" - यह अल्लाह के सामने झुकने और उससे जुड़ाव का प्रतीक है।
"जकात दो" - यह अल्लाह के दिए हुए धन में से उसके बंदों की मदद करने का आदेश है।
2. बंदों के प्रति कर्तव्य (हुकूकुल इबाद - Rights of People):
माता-पिता के साथ भलाई: सम्मान और सेवा।
रिश्तेदारों के साथ भलाई: उनके अधिकारों का ख्याल रखना।
अनाथों और गरीबों के साथ भलाई: समाज के सबसे कमजोर वर्ग की देखभाल करना।
लोगों से अच्छी बात कहना: यह सामाजिक व्यवहार की नींव है। इसमें नम्रता, सच्चाई और शांतिपूर्ण वार्तालाप शामिल है।
आयत का अंत एक गहरे अफसोस के साथ खत्म होता है। अल्लाह कहता है कि इस व्यापक और संपूर्ण मार्गदर्शन के बावजूद, उनमें से अधिकांश लोगों ने इस वचन को तोड़ दिया और इससे मुंह मोड़ लिया। सिर्फ कुछ थोड़े से लोग ही ऐसे थे जो इस पर टिके रहे।
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारी का संतुलन: इस्लाम सिर्फ इबादत (पूजा) का धर्म नहीं है। यह इबादत और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच एक पूर्ण संतुलन स्थापित करता है। एक सच्चा मोमिन वह है जो नमाज़ भी पढ़ता है और अनाथ की भी देखभाल करता है।
वचन का महत्व: अल्लाह के साथ किए गए वचन (ईमान) को पूरी ईमानदारी से निभाना जरूरी है।
सामाजिक न्याय का आधार: यह आयत एक न्यायपूर्ण और देखभाल करने वाले समाज की नींव रखती है, जहाँ हर किसी की जिम्मेदारी कमजोर लोगों की मदद करना है।
भाषण की शक्ति: "लोगों से अच्छी बात कहना" इस बात का प्रमाण है कि इस्लाम शब्दों की शक्ति को पहचानता है। अच्छी बातचीत समाज में शांति और प्रेम फैलाती है।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के संदर्भ में:
यह आयत बनी इस्राईल के इतिहास में उनकी अवज्ञा (नाफरमानी) के एक पैटर्न को उजागर करती है। यह समझाती है कि अल्लाह का कोप उनकी अपनी वचनभंगता का परिणाम था।
यह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय के यहूदियों के लिए एक चेतावनी थी कि वे अपने पूर्वजों की गलतियों को न दोहराएं।
वर्तमान (Present) के संदर्भ में:
धर्म का सही स्वरूप: आज बहुत से लोग धर्म को सिर्फ मंदिर-मस्जिद तक सीमित समझते हैं। यह आयत याद दिलाती है कि सच्चा धर्म मानव सेवा है। मस्जिद में नमाज़ और गली में एक गरीब को दाना, दोनों ही इबादत हैं।
बिगड़ते पारिवारिक और सामाजिक मूल्य: आज माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ना, रिश्तेदारों से मतलब न रखना, और गरीबों-अनाथों की उपेक्षा आम बात हो गई है। यह आयत इन सभी बुराइयों के खिलाफ एक मजबूत दवा है।
विषैली वार्तालाप संस्कृति: सोशल मीडिया और राजनीति में गाली-गलौज, झूठ और नफरत फैलाने वाली बातें आम हैं। "लोगों से अच्छी बात कहना" का सिद्धांत आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक है।
भविष्य (Future) के संदर्भ में:
टिकाऊ समाज का नक्शा: भविष्य में एक स्थिर, शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए इस आयत में दिया गया मार्गदर्शन एक आदर्श रोडमैप है। यह सिखाता है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक सद्भावना भी उतनी ही जरूरी है।
सार्वभौमिक नैतिकता: यह आयत एक ऐसी सार्वभौमिक नैतिक संहिता (Universal Moral Code) प्रस्तुत करती है जो हर धर्म, संस्कृति और युग में मान्य है। भविष्य की पीढ़ियों के लिए, यह मानवता के साझा मूल्यों की याद दिलाती रहेगी।
व्यक्तिगत जवाबदेही: यह संदेश हमेशा प्रासंगिक रहेगा कि अंततः हर व्यक्ति और हर समुदाय को अपने किए का जवाब देना होगा। अगर हमने अल्लाह के वचन और उसके बंदों के अधिकारों को नजरअंदाज किया, तो उसका परिणाम भुगतना होगा।
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत एक व्यापक जीवन-पद्धति (Comprehensive Way of Life) का दस्तावेज है। यह स्पष्ट करती है कि ईश्वर पर विश्वास और मानवता की सेवा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह अतीत के लिए एक सबक, वर्तमान के लिए एक मार्गदर्शन और भविष्य के लिए एक आदर्श चार्टर है।