१. पूरी आयत अरबी में:
وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ لَا تَسْفِكُونَ دِمَاءَكُمْ وَلَا تُخْرِجُونَ أَنفُسَكُم مِّن دِيَارِكُمْ ثُمَّ أَقْرَرْتُمْ وَأَنتُمْ تَشْهَدُونَ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
وَإِذْ: और (याद करो) वह समय जब।
أَخَذْنَا: हमने लिया।
مِيثَاقَكُمْ: तुम्हारा वादा, तुम्हारी प्रतिज्ञा।
لَا تَسْفِكُونَ: तुम बहाओगे नहीं।
دِمَاءَكُمْ: तुम्हारा खून (यानी एक-दूसरे का खून)।
وَلَا تُخْرِجُونَ: और न निकालोगे।
أَنفُسَكُم: अपने आप को (अपने लोगों को)।
مِّن دِيَارِكُمْ: अपने घरों से।
ثُمَّ: फिर।
أَقْرَرْتُمْ: तुमने स्वीकार किया, तुमने कबूल किया।
وَأَنتُمْ: और तुम।
تَشْهَدُونَ: गवाही दे रहे हो।
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "और (वह समय याद करो) जब हमने तुमसे प्रतिज्ञा ली कि तुम एक-दूसरे का खून नहीं बहाओगे और न ही एक-दूसरे को अपने घरों (बस्तियों) से निकालोगे। फिर तुमने (इस प्रतिज्ञा को) स्वीकार किया और तुम स्वयं इस बात के गवाह हो।"
गहन व्याख्या:
यह आयत बनी इस्राईल (यहूदियों) से लिए गए एक और विशेष वचन (Covenant) की ओर इशारा करती है। पिछली आयतों में उनसे लिए गए सामान्य धार्मिक और नैतिक वचन का जिक्र था, जबकि यह आयत एक विशिष्ट सामाजिक अनुबंध की बात करती है।
इस वचन के दो मुख्य बिंदु थे:
आपसी हत्या पर प्रतिबंध: "तुम एक-दूसरे का खून नहीं बहाओगे।" यह आदेश उनके आपसी झगड़ों, कबीलाई संघर्षों और रक्त-विवादों को रोकने के लिए था।
जबरन निर्वासन पर प्रतिबंध: "और न ही एक-दूसरे को अपने घरों से निकालोगे।" यह एक बहुत ही गंभीर अपराध था। किसी को उसकी जमीन और घर से बेदखल करना सामाजिक एकता को पूरी तरह तोड़ देता है।
आयत के अंत में जोर देकर कहा गया है कि उन्होंने न सिर्फ यह वचन दिया बल्कि उसे स्वीकार भी किया और खुद इसके गवाह बने। यह इस बात का प्रमाण है कि यह वचन उनकी अपनी सहमति और जिम्मेदारी के तहत लिया गया था, इसमें कोई जबरदस्ती नहीं थी।
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
मानव जीवन की पवित्रता: इस आयत का सबसे बड़ा सबक यह है कि इंसान का जीवन अत्यंत पवित्र है। किसी इंसान की हत्या करना सिर्फ एक व्यक्ति को मारना नहीं है, बल्कि अल्लाह के साथ किए गए एक पवित्र वचन को तोड़ना है।
सामाजिक शांति और एकता की जिम्मेदारी: समाज में शांति बनाए रखना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति और समुदाय की धार्मिक जिम्मेदारी है। आपसी लड़ाई-झगड़े और खून-खराबे से बचना ईमान का हिस्सा है।
नागरिक अधिकारों की गारंटी: किसी को उसके घर और समुदाय से बेदखल करना इस्लाम की नजर में एक गंभीर पाप और जुल्म है। हर इंसान को सुरक्षित और सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार है।
वचन की पवित्रता: अल्लाह के सामने दिया गया वचन हल्का नहीं है। उसे पूरी ईमानदारी से निभाना हर मोमिन का फर्ज है।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के संदर्भ में:
यह आयत बनी इस्राईल के इतिहास में उनकी एक बड़ी विफलता को दर्शाती है। ऐतिहासिक रूप से, उनके बीच कबीलाई युद्ध और आपसी खून-खराबा आम बात थी। यह आयत उनकी इसी अवज्ञा को उजागर करती है।
यह पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के समय के यहूदियों के लिए एक चेतावनी थी कि वे अपने पूर्वजों की तरह आपसी फूट और संघर्ष का रास्ता न अपनाएं।
वर्तमान (Present) के संदर्भ में:
साम्प्रदायिक दंगे: आज भी दुनिया भर में साम्प्रदायिक दंगे होते हैं, जहाँ लोग एक-दूसरे का खून बहाते हैं और दूसरे समुदायों को उनके घरों से बेदखल कर देते हैं। यह आयत ऐसे सभी लोगों के लिए एक सख्त चेतावनी है।
घरेलू और सामाजिक हिंसा: सिर्फ बड़े दंगे ही नहीं, बल्कि छोटे स्तर पर होने वाली हिंसा, हत्या, ऑनर किलिंग आदि सभी इस आयत की चेतावनी के दायरे में आते हैं।
जबरन विस्थापन: युद्ध, साम्राज्यवाद या सांप्रदायिक हिंसा के कारण लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर किया जाता है। यह आयत इस जुल्म की ओर इशारा करती है और इसे एक गंभीर पाप घोषित करती है।
सोशल मीडिया पर 'निकाला' की संस्कृति: आजकल सोशल मीडिया पर लोगों को 'कैंसल' करना या उन्हें सामाजिक रूप से 'बाहर निकालने' की कोशिश करना एक तरह का आधुनिक रूप है। हालाँकि यह शारीरिक नहीं है, लेकिन इसकी मानसिक पीड़ा भारी हो सकती है।
भविष्य (Future) के संदर्भ में:
शांति स्थापना का सिद्धांत: भविष्य में एक शांतिपूर्ण वैश्विक समाज बनाने के लिए यह आयत एक आधारशिला है। यह सिखाती है कि किसी भी समाज की नींव उसकी आंतरिक शांति और नागरिकों की सुरक्षा पर टिकी होती है।
मानवाधिकारों की धार्मिक पुष्टि: यह आयत भविष्य के मानवाधिकार चार्टरों के लिए एक धार्मिक और नैतिक आधार प्रदान करती है, जो जीवन के अधिकार और निवास के अधिकार को सर्वोच्च स्थान देती है।
वैश्विक नागरिकता: बढ़ती वैश्विकता के साथ, यह संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम सभी एक-दूसरे के "भाई" हैं और एक-दूसरे के जीवन और घर की सुरक्षा की जिम्मेदारी हम सब पर है।
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत मानव समाज के लिए दो मौलिक सिद्धांत स्थापित करती है: जीवन की पवित्रता और घर की सुरक्षा। यह स्पष्ट करती है कि धर्म सिर्फ पूजा-पाठ का नाम नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा सामाजिक अनुबंध (Social Contract) है जो हर इंसान के जीवन और सम्मान की गारंटी देता है। यह अतीत की गलतियों से सबक, वर्तमान की हिंसा के लिए एक दवा और भविष्य के शांतिपूर्ण समाज का एक खाका है।