१. पूरी आयत अरबी में:
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا بِالْآخِرَةِ ۖ فَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنصَرُونَ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
- أُولَٰئِكَ: वे ही लोग। 
- الَّذِينَ: जिन्होंने। 
- اشْتَرَوُا: खरीद लिया, बदले में ले लिया। 
- الْحَيَاةَ الدُّنْيَا: सांसारिक जीवन। 
- بِالْآخِرَةِ: आखिरत (परलोक) के बदले में। 
- فَلَا: तो नहीं। 
- يُخَفَّفُ: हल्का किया जाएगा। 
- عَنْهُمُ: उनसे। 
- الْعَذَابُ: यातना। 
- وَلَا: और न ही। 
- هُمْ: वे। 
- يُنصَرُونَ: सहायता दी जाएगी। 
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "ये वे लोग हैं जिन्होंने आखिरत (परलोक) के बदले में दुनिया की ज़िंदगी को खरीद लिया। अतः न तो उनकी यातना हल्की की जाएगी और न ही उनकी कोई सहायता की जाएगी।"
गहन व्याख्या:
यह आयत पिछली कुछ आयतों (83-85) में वर्णित बनी इस्राईल के उन लोगों के भयानक परिणाम की घोषणा करती है, जो:
- अल्लाह के वचन को तोड़ते थे। 
- आपसी खून-खराबा करते थे। 
- लोगों को उनके घरों से निकालते थे। 
- पाप और अत्याचार में एक-दूसरे का साथ देते थे। 
- किताब के कुछ हिस्सों पर ईमान रखते थे और कुछ का इनकार करते थे। 
आयत उनके इस व्यवहार को "एक सौदा" बताती है। उन्होंने जानबूझकर एक भयानक अदला-बदली की:
- बेचा क्या? अपनी आखिरत, अपना स्थायी सुख और जन्नत। 
- खरीदा क्या? दुनिया की थोड़ी सी लाभ और सुविधाएँ, जो नश्वर और अस्थायी हैं। 
यह दुनिया का सबसे घाटे का सौदा है। इस आयत में उनके लिए दो कड़ी चेतावनियाँ हैं:
- "न तो उनकी यातना हल्की की जाएगी": इसका मतलब है कि उन्हें आखिरत में जो दंड मिलेगा, उसमें किसी भी प्रकार की छूट नहीं मिलेगी। रियायत या कमी नहीं की जाएगी। 
- "और न ही उनकी कोई सहायता की जाएगी": वहाँ कोई भी उन्हें उस सज़ा से बचाने नहीं आएगा। न कोई वकील, न कोई सहायक और न कोई मददगार। 
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
- जीवन का वास्तविक लक्ष्य: इंसान का अंतिम लक्ष्य अल्लाह की रज़ा और आखिरत की सफलता होनी चाहिए, न कि दुनिया की कामयाबी। दुनिया एक खेल और दिखावा है, जबकि आखिरत का घर ही सच्चा और स्थायी है। 
- सोच-समझकर चुनाव: हर इंसान को अपने हर कर्म के परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। क्या मैं अल्लाह की नाराज़गी के बदले में किसी दुनियावी फायदे को खरीद रहा हूँ? 
- ईमान की शर्त: सच्चा ईमान इस बात की माँग करता है कि इंसान आखिरत को दुनिया पर प्राथमिकता दे। 
- चेतावनी: यह आयत उन सभी के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है जो जानबूझकर पाप करते हैं और सोचते हैं कि दुनिया में तो सब ठीक चल रहा है। आखिरत का हिसाब बिल्कुल अलग होगा। 
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
- अतीत (Past) के संदर्भ में: - यह आयत बनी इस्राईल के उन लोगों पर लागू होती थी जिन्होंने पैगंबरों की शिक्षाओं को छोड़कर दुनियावी लाभ, सत्ता और धन को चुना। 
- यह कुरैश के उन लोगों पर भी लागू होती थी जो सच्चाई को जानते थे लेकिन अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और व्यापारिक फायदे के कारण इस्लाम स्वीकार नहीं कर रहे थे। 
 
- वर्तमान (Present) के संदर्भ में: - भौतिकवाद का युग: आज का युग पूरी तरह से भौतिकवाद (Materialism) का युग है। लोग पैसा, शोहरत, ऐशो-आराम और सत्ता हासिल करने के लिए हर वह काम करते हैं जो गलत है। वे झूठ बोलते हैं, धोखा देते हैं, रिश्वत लेते हैं, ब्याज खाते हैं, यह सोचकर कि दुनिया में सब कुछ मिल गया तो सफल हो गए। यह आयत ठीक इसी मानसिकता को संबोधित करती है। 
- धर्म को दूसरे स्थान पर रखना: बहुत से लोग कहते हैं, "पहले दुनिया ठीक कर लेते हैं, फिर धर्म की बात करेंगे।" यह सोच भी "दुनिया को आखिरत पर प्राथमिकता देने" जैसी ही है। 
- पाप करके दान देना: कोई व्यक्ति गैर-कानूनी कारोबार (जैसे शराब, जुआ, ब्याज) से पैसा कमाता है और फिर उसमें से कुछ हिस्सा दान दे देता है, यह सोचकर कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। यह आयत बताती है कि यह एक धोखा है। 
 
- भविष्य (Future) के संदर्भ में: - शाश्वत चेतावनी: जब तक दुनिया रहेगी, इंसान के सामने "दुनिया बनाम आखिरत" का चुनाव रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक और चेतावनी के रूप में रहेगी। 
- प्राथमिकताओं का संतुलन: भविष्य की तकनीकी प्रगति और भौतिक चुनौतियाँ चाहे जितनी बढ़ जाएँ, यह आयत हमेशा यह याद दिलाती रहेगी कि इंसान की सच्ची सफलता का पैमाना उसकी आखिरत है, न कि उसकी दुनियावी उपलब्धियाँ। 
- नैतिक पतन से बचाव: जैसे-जैसे समाज में नैतिक मूल्य कमजोर होंगे, यह आयत एक मजबूत रोकथाम (Deterrent) का काम करेगी, यह सोचकर कि आखिरत में कोई रियायत नहीं मिलेगी। 
 
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत मानव जीवन के सबसे बड़े सौदे की ओर इशारा करती है। यह हमें बताती है कि हमारे हर कर्म का एक बदला है। जो लोग अल्लाह और आखिरत पर विश्वास रखते हुए भी दुनिया को प्राथमिकता देते हैं, वे सबसे बड़ा घाटा उठाने वाले हैं। यह आयत हमारे दिलों में आखिरत का डर और दुनिया के प्रति बेपरवाही का सही संतुलन पैदा करती है, ताकि हम इस नश्वर दुनिया के पीछे भागकर अपनी अनंत जिंदगी न गँवा बैठें।