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क़ुरआन 2:88 (सूरह अल-बक़राह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. पूरा आयत अरबी में:

وَقَالُوا قُلُوبُنَا غُلْفٌ ۚ بَل لَّعَنَهُمُ اللَّهُ بِكُفْرِهِمْ فَقَلِيلًا مَّا يُؤْمِنُونَ

२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • وَقَالُوا: और उन्होंने कहा।

  • قُلُوبُنَا: हमारे दिल।

  • غُلْف: ढके हुए, आवरण में लिपटे हुए।

  • بَل: बल्कि (उनका ये कहना सही नहीं है)।

  • لَّعَنَهُمُ: उन पर लानत (फटकार, दूरी) की।

  • اللَّهُ: अल्लाह ने।

  • بِكُفْرِهِم: उनके कुफ्र (इनकार) के कारण।

  • فَقَلِيلًا: तो बहुत थोड़ा।

  • مَّا: (यहाँ अर्थ को जोर देने के लिए आया है)।

  • يُؤْمِنُونَ: ईमान लाते हैं।

३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "और उन (यहूदियों) ने कहा: 'हमारे दिल ढके हुए हैं (और इसलिए तुम्हारी बात समझ नहीं सकते)।' बल्कि अल्लाह ने उन्हें उनके इनकार (कुफ्र) के कारण लानत (अपनी रहमत से दूर) कर दिया है, इसलिए वे बहुत ही थोड़े ईमान लाते हैं।"

गहन व्याख्या:
जब बनी इस्राईल (यहूदियों) के सामने पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का संदेश आया, तो उन्होंने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। अपने इस इनकार को उचित ठहराने के लिए उन्होंने एक तर्क दिया: "हमारे दिल ढके हुए हैं" (कुलूबुना गुल्फुन)

इस वक्तव्य के दो संभावित अर्थ हो सकते हैं:

  1. शाब्दिक अर्थ: हमारे दिलों पर एक आवरण चढ़ा हुआ है, इसलिए हम तुम्हारी बात को समझ नहीं पा रहे या उसे स्वीकार नहीं कर पा रहे।

  2. अहंकारपूर्ण अर्थ: हमारे दिल (ज्ञान और समझ से) इतने भरे हुए हैं कि उनमें तुम्हारा संदेश समाएगा ही नहीं। हम पहले से ही ज्ञानी हैं, हमें और किसी ज्ञान की आवश्यकता नहीं।

अल्लाह का जवाब:
अल्लाह उनके इस बहाने को पूरी तरह से खारिज कर देता है और सच्चाई स्पष्ट कर देता है:

  • "बल्कि अल्लाह ने उन्हें उनके इनकार के कारण लानत कर दी है।" यहाँ "लानत" का मतलब है अल्लाह की रहमत से दूरी और उसकी नाराज़गी। यह उनके अपने ही कर्मों का नतीजा है। उनके दिलों पर जो आवरण चढ़ा है, वह उनके अपने जिद्दी इनकार, अहंकार और पापों का परिणाम है, न कि कोई प्राकृतिक स्थिति।

  • "इसलिए वे बहुत ही थोड़े ईमान लाते हैं।" यह उनकी स्थायी मानसिकता है। उनमें से बहुत कम लोग ही किसी सच्चाई को स्वीकार कर पाते हैं, क्योंकि अल्लाह की रहमत उनसे दूर हो चुकी है।

४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • बहानेबाजी का खंडन: इंसान जब सच्चाई स्वीकार नहीं करना चाहता तो तरह-तरह के बहाने बनाता है। अल्लाह ऐसे सभी बहानों को जानता है और उन्हें खारिज करता है।

  • कर्मों का परिणाम: इंसान के दिल का सख्त होना और रहमत से दूर होना उसके अपने ही कर्मों का नतीजा होता है। लगातार पाप और इनकार करते रहने से अल्लाह की रहमत दूर हो जाती है।

  • अहंकार सबसे बड़ी बाधा: ज्ञान का दावा करना या अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ समझना, ईमान की सबसे बड़ी रुकावट है।

  • ईमान अल्लाह की देन: ईमान एक दिव्य प्रकाश है जिसे अल्लाह अपनी रहमत से दिल में डालता है। जब इंसान लगातार अवज्ञा करता है, तो वह इस रहमत के योग्य नहीं रह जाता।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के संदर्भ में:

    • यह आयत सीधे तौर पर मदीना के यहूदियों की उस मानसिकता को उजागर करती है जो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को पहचानने के बावजूद अहंकारवश ईमान नहीं लाए।

    • यह उन सभी पिछली कौमों पर भी लागू होती है जिन्होंने पैगंबरों के खिलाफ ऐसे ही बहाने बनाए।

  • वर्तमान (Present) के संदर्भ में:

    • धार्मिक अहंकार: आज भी कई लोग या समुदाय यह दावा करते हैं कि सच्चाई सिर्फ उनके पास है और दूसरों के पास सीखने के लिए कुछ नहीं है। यह "हमारे दिल भरे हुए हैं" वाली मानसिकता का आधुनिक रूप है।

    • विज्ञान और नास्तिकता: कुछ लोग विज्ञान के नाम पर धर्म को झुठलाते हैं और कहते हैं कि "हम तार्किक लोग हैं, हमारे दिल अंधविश्वास के लिए नहीं हैं।" यह भी एक तरह का "कुलूबुना गुल्फुन" का बहाना है, जहाँ वे अपनी सीमित समझ को ही अंतिम मान लेते हैं।

    • बहानेबाजी की संस्कृति: लोग अल्लाह के आदेशों (जैसे हिजाब, दाढ़ी, सूद से परहेज) को मानने से बचने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। यह आयत हमें यह सिखाती है कि अल्लाह के सामने कोई बहाना स्वीकार्य नहीं है।

  • भविष्य (Future) के संदर्भ में:

    • शाश्वत मनोविज्ञान: जब तक इंसान रहेगा, सच्चाई से मुंह मोड़ने के लिए बहाने ढूंढता रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए उसके अपने मन के बहानों को पहचानने का एक साधन है।

    • आध्यात्मिक खोज का महत्व: यह आयत भविष्य के लोगों को सिखाएगी कि ज्ञान का दावा करना नहीं, बल्कि सच्चाई के लिए हमेशा तैयार रहना और अपने दिल को खुला रखना ही आस्तिकता की निशानी है।

    • ईश्वरीय कृपा पर निर्भरता: यह संदेश हमेशा प्रासंगिक रहेगा कि ईमान अल्लाह की देन है और उसे पाने के लिए दिल का विनम्र और खुला होना जरूरी है। अहंकार और जिद इंसान को इस दिव्य प्रकाश से वंचित कर देते हैं।

निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत मानव मनोविज्ञान की एक गहरी पड़ताल करती है। यह उस मानसिक अवरोध (Mental Block) की ओर इशारा करती है जो इंसान को सत्य स्वीकार करने से रोकता है। यह हमें सिखाती है कि दिलों पर पड़ा आवरण हमारे अपने कर्मों का फल है और उसे हटाने के लिए अहंकार छोड़कर अल्लाह की शरण में आना ही एकमात्र रास्ता है। यह अतीत के लिए एक ताड़ना, वर्तमान के लिए एक दर्पण और भविष्य के लिए एक चेतावनी है।