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क़ुरआन 2:97 (सूरह अल-बक़राह) - पूर्ण व्याख्या

 

१. पूरी आयत अरबी में:

قُلْ مَن كَانَ عَدُوًّا لِّجِبْرِيلَ فَإِنَّهُ نَزَّلَهُ عَلَىٰ قَلْبِكَ بِإِذْنِ اللَّهِ مُصَدِّقًا لِّمَا بَيْنَ يَدَيْهِ وَهُدًى وَبُشْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ

२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):

  • قُلْ: (हे पैगंबर!) आप कह दीजिए।

  • مَن: जो कोई।

  • كَانَ: है।

  • عَدُوًّا: दुश्मन।

  • لِّجِبْرِيلَ: जिब्रील का।

  • فَإِنَّهُ: तो निश्चय ही वह (जिब्रील)।

  • نَزَّلَهُ: उसे (क़ुरआन) उतारा है।

  • عَلَىٰ: पर।

  • قَلْبِكَ: आपके दिल।

  • بِإِذْنِ اللَّهِ: अल्लाह की अनुमति से।

  • مُصَدِّقًا: पुष्टि करने वाला।

  • لِّمَا: उसकी।

  • بَيْنَ يَدَيْهِ: उसके सामने (पहले की किताबों)।

  • وَهُدًى: और मार्गदर्शन है।

  • وَبُشْرَىٰ: और शुभ सूचना है।

  • لِلْمُؤْمِنِينَ: ईमान वालों के लिए।

३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):

इस आयत का पूरा अर्थ है: "(हे पैगंबर!) आप कह दीजिए: जो कोई जिब्रील का दुश्मन है (उसे मालूम होना चाहिए) कि निश्चय ही उस (जिब्रील) ने ही अल्लाह की अनुमति से इस (क़ुरआन) को आपके दिल पर उतारा है, जो पहले की (आसमानी) किताबों की पुष्टि करने वाला है और ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन तथा शुभ सूचना है।"

गहन व्याख्या:
यह आयत एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना और यहूदियों की एक चाल का जवाब है। मदीना के यहूदी, पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नबुव्वत को कमजोर करने के लिए एक अजीब तर्क देते थे। वे कहते थे कि हम जिब्रील (अलैहिस्सलाम) के दुश्मन हैं क्योंकि वह हमारे खिलाफ अज़ाब (यातना) लेकर आने वाला फरिश्ता है। इसलिए, अगर आप पर वही (प्रकाशना) जिब्रील लाते हैं, तो हम आप पर ईमान कैसे ला सकते हैं?

इस आयत में अल्लाह उनकी इस हठधर्मिता का सीधा और तार्किक जवाब देता है:

  1. जिब्रील का महत्व: सबसे पहले, अल्लाह इस बात की पुष्टि करता है कि क़ुरआन को लाने वाले कोई और नहीं बल्कि फरिश्ता जिब्रील ही हैं। यहूदियों की इस दुश्मनी का मतलब है कि वे अल्लाह के उस फरिश्ते के दुश्मन हैं जो दिव्य संदेश लेकर आता है।

  2. जिब्रील अल्लाह के आदेश से कार्य करते हैं: यह स्पष्ट किया गया है कि जिब्रील अपनी तरफ से कुछ नहीं करते, बल्कि "अल्लाह की अनुमति से" ही वह वही लेकर आते हैं। इसलिए जिब्रील से दुश्मनी रखना वास्तव में अल्लाह के आदेश और उसकी मर्जी से दुश्मनी रखना है।

  3. क़ुरआन का उद्देश्य: आयत क़ुरआन के तीन मुख्य उद्देश्य बताती है:

    • "पहले की किताबों की पुष्टि करने वाला": क़ुरआन तौरात और इंजील जैसी पिछली किताबों में दिए गए मूल सिद्धांतों (एकेश्वरवाद, नबुव्वत, आखिरत) की पुष्टि करता है।

    • "मार्गदर्शन": यह इंसानों को सीधा रास्ता दिखाता है।

    • "ईमान वालों के लिए शुभ सूचना": जो लोग इस पर ईमान लाते हैं, उनके लिए यह जन्नत और अल्लाह की रहमत की खुशखबरी है।

४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):

  • वास्तविक दुश्मनी का स्रोत: जब इंसान सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहता, तो वह तुच्छ बहाने ढूंढता है। यहूदियों की असली दुश्मनी जिब्रील से नहीं, बल्कि सच्चाई (क़ुरआन) से थी।

  • क़ुरआन का दर्जा: क़ुरआन अल्लाह का कलाम है जो उसके एक सम्मानित फरिश्ते के द्वारा उसके अंतिम पैगंबर के दिल पर उतारा गया।

  • ईमान की शर्त: सच्चा ईमान रखने के लिए अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों और उसके पैगंबरों सभी पर विश्वास जरूरी है। किसी एक को नकारना ईमान को अधूरा कर देता है।

  • तार्किक जवाब: इस्लाम हर तरह के तर्क और शंका का जवाब तर्क और ज्ञान के साथ देता है।

५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):

  • अतीत (Past) के संदर्भ में:

    • यह आयत सीधे तौर पर मदीना के यहूदियों की उस चाल का जवाब थी जिसमें वे पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नबुव्वत पर सवाल उठा रहे थे।

    • इस आयत ने उनके बहाने को बेबुनियाद साबित कर दिया और सच्चाई को स्पष्ट कर दिया।

  • वर्तमान (Present) के संदर्भ में:

    • क़ुरआन पर संदेह: आज भी कुछ लोग क़ुरआन की दिव्यता पर सवाल उठाते हैं और इसे पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की अपनी रचना बताते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि क़ुरआन अल्लाह की तरफ से है और जिब्रील के माध्यम से उतारा गया है।

    • फरिश्तों पर ईमान: यह आयत फरिश्तों पर ईमान की अहमियत को दोहराती है, जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों में से एक है।

    • बहानेबाजी की मानसिकता: आज भी लोग इस्लाम को स्वीकार नहीं करने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। यह आयत हमें सिखाती है कि ऐसे बहानों का सामना सच्चाई और तर्क से करना चाहिए।

    • अंतर-धार्मिक संवाद: ईसाई और यहूदी भी जिब्रील (गेब्रियल) को मानते हैं। यह आयत अंतर-धार्मिक बातचीत का एक आधार बन सकती है कि जिब्रील द्वारा लाई गई अंतिम किताब क़ुरआन है।

  • भविष्य (Future) के संदर्भ में:

    • क़ुरआन की सत्यता का स्थायी प्रमाण: जब तक क़ुरआन रहेगा, यह आयत इस बात का प्रमाण बनी रहेगी कि यह अल्लाह का कलाम है जो जिब्रील के माध्यम से आया।

    • ईमान के स्तंभ: यह आयत भविष्य की पीढ़ियों को इस्लाम के मूल सिद्धांतों - अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों और उसके पैगंबरों पर ईमान - की याद दिलाती रहेगी।

    • मार्गदर्शन का स्रोत: यह आयत भविष्य के लोगों के लिए हमेशा यह स्पष्ट करती रहेगी कि क़ुरआन ही सच्चा मार्गदर्शन और ईमान वालों के लिए खुशखबरी है।

निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "सत्य के प्रति हठधर्मिता" और "बहानेबाजी" का एक शानदार खंडन करती है। यह क़ुरआन के दिव्य स्रोत को स्पष्ट करते हुए, उसे पिछली किताबों का समर्थक, मानवता के लिए मार्गदर्शन और ईमान वालों के लिए शुभ सूचना घोषित करती है। यह अतीत की एक चाल का पर्दाफाश, वर्तमान में क़ुरआन की सच्चाई का प्रमाण और भविष्य के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है।