१. पूरी आयत अरबी में:
مَن كَانَ عَدُوًّا لِّلَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَرُسُلِهِ وَجِبْرِيلَ وَمِيكَالَ فَإِنَّ اللَّهَ عَدُوٌّ لِّلْكَافِرِينَ
२. शब्द-दर-शब्द अर्थ (Arabic Words Meaning):
مَن: जो कोई।
كَانَ: है।
عَدُوًّا: दुश्मन।
لِّلَّهِ: अल्लाह का।
وَمَلَائِكَتِهِ: और उसके फ़रिश्तों का।
وَرُسُلِهِ: और उसके पैग़म्बरों का।
وَجِبْرِيلَ: और जिब्रील का।
وَمِيكَالَ: और मीकाईल का।
فَإِنَّ: तो निश्चय ही।
اللَّهَ: अल्लाह।
عَدُوٌّ: दुश्मन है।
لِّلْكَافِرِينَ: काफिरों का।
३. आयत का पूरा अर्थ (Full Explanation in Hindi):
इस आयत का पूरा अर्थ है: "जो कोई अल्लाह का, उसके फ़रिश्तों का, उसके पैग़म्बरों का, जिब्रील का और मीकाईल का दुश्मन है, तो (उसे मालूम होना चाहिए) कि निश्चय ही अल्लाह भी काफिरों का दुश्मन है।"
गहन व्याख्या:
यह आयत पिछली आयत (2:97) में दिए गए विषय को ही और स्पष्ट तथा सार्वभौमिक रूप देती है। पिछली आयत में यहूदियों द्वारा जिब्रील (अलैहिस्सलाम) से दुश्मनी रखने का जिक्र था। इस आयत में अल्लाह उस दुश्मनी के वास्तविक स्वरूप और उसके गंभीर परिणाम को स्पष्ट करता है।
दुश्मनी का विस्तार:
अल्लाह बताता है कि केवल जिब्रील से दुश्मनी रखना कोई अलग बात नहीं है। यह दुश्मनी वास्तव में एक श्रृंखला की एक कड़ी है। जो कोई भी दुश्मनी रखता है, वह वास्तव में इन सभी से दुश्मनी रखता है:
अल्लाह का दुश्मन
अल्लाह के सभी फरिश्तों का दुश्मन
अल्लाह के सभी पैगंबरों का दुश्मन
विशेष रूप से जिब्रील का दुश्मन
विशेष रूप से मीकाईल का दुश्मन
मीकाईल का उल्लेख:
जिब्रील: वही (प्रकाशना) लाने वाले फरिश्ते हैं।
मीकाईल: प्रकृति और जीविका (बारिश, पैदावार आदि) के प्रबंधक फरिश्ते हैं।
यहूदी दावा करते थे कि जिब्रील तो अज़ाब लाने वाला है, लेकिन मीकाईल उनका मित्र है। अल्लाह ने इस आयत में दोनों का नाम लेकर उनके इस झूठे दावे का खंडन कर दिया। दोनों ही अल्लाह के सम्मानित फरिश्ते हैं और दोनों से दुश्मनी रखना अल्लाह से दुश्मनी रखना है।
अंतिम चेतावनी:
आयत एक बहुत ही स्पष्ट और कठोर चेतावनी के साथ समाप्त होती है: "तो निश्चय ही अल्लाह भी काफिरों का दुश्मन है।"
यह एक दैवीय नियम है। जो अल्लाह और उसके दीन से दुश्मनी रखेगा, अल्लाह भी उससे दुश्मनी रखेगा। और जब अल्लाह किसी का दुश्मन बन जाए, तो फिर दुनिया और आखिरत में उसका कोई सहायक नहीं हो सकता।
४. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral):
ईमान एक संपूर्ण व्यवस्था है: सच्चा ईमान अल्लाह, उसके सभी फरिश्तों और सभी पैगंबरों पर पूर्ण विश्वास की मांग करता है। इसमें से किसी एक को भी नकारना पूरे ईमान को खत्म कर देता है।
दुश्मनी का सही लक्ष्य: जो लोग इस्लाम या पैगंबर की बातों से दुश्मनी रखते हैं, उनकी यह दुश्मनी वास्तव में अल्लाह और उसके दीन से होती है।
फरिश्तों पर ईमान: इस्लाम के मूल सिद्धांतों में फरिश्तों पर ईमान लाना अनिवार्य है। उनमें से किसी एक के प्रति भी शत्रुता ईमान के विपरीत है।
परिणाम की गंभीरता: अल्लाह का दुश्मन होना दुनिया और आखिरत की सबसे बड़ी विफलता और विनाश का कारण है।
५. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future):
अतीत (Past) के संदर्भ में:
यह आयत मदीना के यहूदियों की उस हठधर्मिता का अंतिम जवाब थी, जहाँ उन्होंने जिब्रील से दुश्मनी को अपने इनकार का आधार बनाया था।
इसने स्पष्ट कर दिया कि उनकी दुश्मनी सिर्फ एक फरिश्ते से नहीं, बल्कि पूरे दीन-ए-इस्लाम से है।
वर्तमान (Present) के संदर्भ में:
इस्लामोफोबिया (इस्लाम से डर/घृणा): आज दुनिया में इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ जो नफरत फैलाई जा रही है, यह आयत उसकी वास्तविक प्रकृति को उजागर करती है। यह दुश्मनी सिर्फ मुसलमानों से नहीं, बल्कि अल्लाह, उसके फरिश्तों और उसके पैगंबर से है।
फरिश्तों पर विश्वास का संकट: आधुनिक भौतिकवादी युग में कुछ लोग फरिश्तों के अस्तित्व पर सवाल उठाते हैं। यह आयत स्पष्ट करती है कि ऐसा करना कुफ्र है।
चुनिन्दा आस्तिकता: कुछ लोग केवल अल्लाह पर तो विश्वास करते हैं लेकिन फरिश्तों या पैगंबरों के रोल को नहीं मानते। यह आयत बताती है कि यह दृष्टिकोण ईमान के लिए पर्याप्त नहीं है।
अंतर-धार्मिक संबंध: यह आयत ईसाइयों और यहूदियों के लिए भी एक संदेश है कि जिब्रील और मीकाईल दोनों ही अल्लाह के फरिश्ते हैं और उन्हें स्वीकार करना चाहिए।
भविष्य (Future) के संदर्भ में:
शाश्वत सिद्धांत: यह आयत एक शाश्वत सिद्धांत स्थापित करती है कि अल्लाह और उसके दीन से दुश्मनी रखने वाला, अल्लाह का दुश्मन है। यह सिद्धांत कयामत तक के लिए मान्य रहेगा।
ईमान की पूर्णता का मानदंड: भविष्य की पीढ़ियों के लिए, यह आयत हमेशा यह मानदंड स्थापित करेगी कि सच्चा ईमान अल्लाह, उसके फरिश्तों और उसके पैगंबरों सभी पर विश्वास का नाम है।
चेतावनी: यह आयत भविष्य के सभी लोगों के लिए एक स्थायी चेतावनी है कि अल्लाह की दुश्मनी मोल लेना दुनिया और आखिरत में सबसे बड़ी हानि है।
निष्कर्ष: क़ुरआन की यह आयत "ईमान की संपूर्णता" और "दुश्मनी के वास्तविक लक्ष्य" पर एक स्पष्ट और अटल रेखा खींचती है। यह सिखाती है कि अल्लाह, उसके फरिश्तों और उसके पैगंबरों के बीच कोई अलगाव नहीं है। उनमें से किसी एक से भी दुश्मनी रखना, अल्लाह से सीधी दुश्मनी मोल लेने के समान है, जिसका परिणाम अल्लाह की दुश्मनी के रूप में सामने आता है। यह अतीत के लिए एक स्पष्टीकरण, वर्तमान के लिए एक चेतावनी और भविष्य के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है।