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क़ुरआन 3:11 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 11) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

كَدَأْبِ آلِ فِرْعَوْنَ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ ۚ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا فَأَخَذَهُمُ اللَّهُ بِذُنُوبِهِمْ ۗ وَاللَّهُ شَدِيدُ الْعِقَابِ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • كَدَأْبِ (क-दअबि): उसी तरह/तरीके से (जैसा चलन था)।

  • آلِ (आले): परिवार/समुदाय।

  • فِرْعَوْنَ (फिरऔन): फिरौन का।

  • وَالَّذِينَ (वल्लज़ीना): और उन लोगों ने।

  • مِن قَبْلِهِمْ (मिन कब्लिहिम): उनसे पहले।

  • كَذَّبُوا (कज़्ज़बू): झुठलाया।

  • بِآيَاتِنَا (बि-आयातिना): हमारी आयतों (निशानियों) को।

  • فَأَخَذَهُمُ (फ़ा अखज़हुम): तो उन्हें पकड़ लिया।

  • اللَّهُ (अल्लाह): अल्लाह ने।

  • بِذُنُوبِهِمْ (बि-ज़ुनूबिहिम): उनके गुनाहों के कारण।

  • وَاللَّهُ (वल्लाह): और अल्लाह।

  • شَدِيدُ (शदीदु): बहुत सख्त/कठोर है।

  • الْعِقَابِ (अल-इक़ाब): यातना/दंड देने में।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयत (3:10) में दी गई चेतावनी को ऐतिहासिक उदाहरणों के साथ और मज़बूत करती है। अल्लाह सिर्फ यह नहीं कहता कि काफिरों का अंजाम बुरा होगा, बल्कि वह इतिहास से एक स्पष्ट मिसाल पेश करता है ताकि लोग सबक लें।

इस आयत के तीन मुख्य भाग हैं:

1. क-दअबि आले फिरऔन वल्लज़ीना मिन कब्लिहिम (फिरौन के लोगों और उनसे पहले के लोगों के तरीके की तरह):

  • यहाँ "दअब" का मतलब है आदत, तरीका या चलन। अल्लाह कह रहा है कि मक्का के काफिरों का व्यवहार ठीक वैसा ही है जैसा फिरौन और उसके साथियों का था।

  • "उनसे पहले के लोगों" से मतलब है पिछली बहुत सारी कौमें जो अपने-अपने पैगंबरों को झुठला चुकी हैं, जैसे क़ौम-ए-नूह, आद, समूद आदि। यानी यह एक सामान्य नियम है।

2. कज़्ज़बू बि-आयातिना फ़ा अखज़हुमुल्लाहु बि-ज़ुनूबिहिम (उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों के कारण पकड़ लिया):

  • यहाँ "हमारी आयतों" से मतलब दो चीज़ों से है:

    1. तौहीद (अल्लाह की एकता) का संदेश जो पैगंबरों के ज़रिए आया।

    2. अल्लाह की कुदरत की निशानियाँ जो उनके आस-पास मौजूद थीं।

  • फिरौन और उससे पहले की कौमों ने इन स्पष्ट निशानियों और सत्य संदेश को झुठलाया। उनकी इस हठधर्मिता और इनकार का परिणाम यह हुआ कि अल्लाह ने उन्हें दुनिया में ही भयंकर दंड दिया और आखिरत में तो और भी बड़ा दंड है।

3. वल्लाहु शदीदुल इक़ाब (और अल्लाह सख़्त सज़ा देने वाला है):

  • आयत का अंत अल्लाह के गुण "शदीदुल इक़ाब" के साथ होता है। यह एक डरावनी चेतावनी है कि अल्लाह की पकड़ बहुत मज़बूत है और उसकी सज़ा बहुत कठोर है। वह गुनाहगारों को बख्शने में जल्दी नहीं करता, बल्कि उन्हें उनके कर्मों का पूरा बदला देता है।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. इतिहास से सबक: इस आयत की सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि हमें इतिहास से सीखना चाहिए। जिन लोगों ने अल्लाह और उसके पैगंबरों का इनकार किया, उनका अंत बहुत बुरा हुआ। इसलिए हमें उनके रास्ते पर नहीं चलना चाहिए।

  2. अल्लाह की आयतों का इनकार: अल्लाह की आयतों को झुठलाना सबसे बड़ा गुनाह है। "आयतें" यहाँ क़ुरआन की आयतें, प्रकृति में अल्लाह की निशानियाँ और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के चमत्कार सभी को शामिल करती हैं।

  3. अल्लाह का न्याय: अल्लाह इंसाफ करने वाला है। वह किसी पर ज़ुल्म नहीं करता। इंसान को जो सज़ा मिलती है, वह उसके अपने कर्मों और गुनाहों का ही नतीजा होती है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • मक्का के काफिरों के लिए चेतावनी: जब यह आयत उतरी, तो यह मक्का के कुरैश नेताओं के लिए एक सीधी चेतावनी थी। वे अपने धन और ताकत के घमंड में इस्लाम का विरोध कर रहे थे। अल्लाह ने उन्हें याद दिलाया कि फिरौन जैसा शक्तिशाली शासक भी अल्लाह की आयतों (हज़रत मूसा के मुजिज़ों) को झुठलाने की वजह से नष्ट हो गया।

    • इतिहास का दोहराव: यह आयत बताती है कि अल्लाह के सामने इनकार करने वालों का चलन हर ज़माने में एक जैसा रहा है।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • आधुनिक फिरौन: आज भी दुनिया में कई तानाशाह और शक्तिशाली लोग हैं जो फिरौन की तरह अहंकार करते हैं, अल्लाह के कानूनों को नहीं मानते और लोगों पर ज़ुल्म ढाते हैं। यह आयत उनके लिए एक स्पष्ट चेतावनी है।

    • विज्ञान और अल्लाह की निशानियाँ: आज का मनुष्य विज्ञान और तकनीक के घमंड में अल्लाह और धर्म को झुठलाता है। वह समझता है कि उसने सब कुछ खुद हासिल कर लिया है। यह आयत उससे कहती है कि फिरौन और उससे पहले की कौमें भी यही सोचती थीं, लेकिन उनका क्या हश्र हुआ?

    • सामाजिक और नैतिक पतन: जो समाज अल्लाह की हदों को तोड़कर और उसकी आयतों (निर्देशों) को नकारकर चलता है, उसके लिए यह आयत एक भविष्यवाणी है कि उसका अंत भी उन्हीं पिछली कौमों की तरह विनाश और दुख में होगा।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत नियम: यह आयत एक शाश्वत ईश्वरीय नियम (Sunnatullah) बताती है जो तब तक लागू रहेगा जब तक दुनिया है: "जिसने इनकार किया, उसे दंड मिला।" भविष्य में भी, कोई भी समुदाय या व्यक्ति अगर इसी रास्ते पर चलेगा, तो उसका अंत इसी नियम के तहत होगा।

    • मार्गदर्शन का स्रोत: भविष्य की पीढ़ियाँ जब इतिहास पढ़ेंगी और देखेंगी कि शक्तिशाली साम्राज्य कैसे नष्ट हुए, तो यह आयत उन्हें उसका सही कारण बताएगी – अल्लाह और उसके नियमों का इनकार।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:11 इतिहास को एक शिक्षण उपकरण के रूप में पेश करती है। यह बताती है कि अल्लाह का न्याय और दंड का नियम हर ज़माने में एक जैसा रहा है। यह अतीत के लिए एक रिकॉर्ड, वर्तमान के लिए एक चेतावनी और भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है कि सच्चाई को झुठलाने और अहंकार करने का अंतिम परिणाम हमेशा विनाश ही होता है।