1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُوا سَتُغْلَبُونَ وَتُحْشَرُونَ إِلَىٰ جَهَنَّمَ ۚ وَبِئْسَ الْمِهَادُ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)
قُل (कुल): (हे पैगंबर!) आप कह दीजिए।
لِّلَّذِينَ (लिल्लज़ीना): उन लोगों से जिन्होंने।
كَفَرُوا (कफरू): इनकार किया है (कुफ्र किया है)।
سَتُغْلَبُونَ (सतुग्लबून): तुम जल्द ही पराजित हो जाओगे।
وَتُحْشَرُونَ (वा तुह्शरून): और एकत्र किए जाओगे।
إِلَىٰ (इला): की ओर।
جَهَنَّمَ (जहन्नम): जहन्नम।
وَبِئْسَ (वा बि'स): और कितना बुरा है।
الْمِهَادُ (अल-मिहाद): ठहरने/आराम करने की जगह।
3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत पिछली दो आयतों (3:10-11) में दी गई सामान्य चेतावनी को और स्पष्ट तथा प्रत्यक्ष करती है। अब अल्लाह अपने पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को आदेश दे रहा है कि वे सीधे तौर पर काफिरों को उनके भविष्य के बारे में बता दें। यह सिर्फ एक भविष्यवाणी नहीं, बल्कि एक दिव्य अल्टीमेटम है।
इस आयत में तीन स्पष्ट भविष्यवाणियाँ की गई हैं:
1. सतुग्लबून (तुम पराजित हो जाओगे):
यह एक दुनियावी पराजय की ओर इशारा है। यह भविष्यवाणी विशेष रूप से मक्का के काफिरों के संदर्भ में थी, जो मुट्ठी भर मुसलमानों को खत्म करने की कोशिश कर रहे थे।
इसका प्रमाण बद्र की लड़ाई (2 हिजरी) में देखने को मिला, जब अल्लाह ने मुसलमानों को काफिरों पर शानदार जीत दिलाई। यह इस्लामी इतिहास की एक निर्णायक जीत थी।
इसका एक व्यापक अर्थ यह भी है कि सत्य के दुश्मन चाहे कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, एक न एक दिन उनकी हार निश्चित है।
2. वा तुह्शरून इला जहन्नम (और तुम जहन्नम की ओर एकत्र किए जाओगे):
यह आखिरी की पराजय और दंड की ओर इशारा है। दुनिया में हार तो एक शुरुआत है, असली सज़ा तो आखिरत में मिलेगी।
"तुह्शरून" (एकत्र किए जाना) शब्द कयामत के दिन का दृश्य पेश करता है, जब सारे काफिरों को अपने अपराधों का हिसाब देने के लिए जहन्नम की ओर घसीटा जाएगा।
3. वा बि'सल मिहाद (और कितनी बुरी है वह ठिकाने/बिछौने की जगह):
यह आयत का सबसे तीखा और व्यंग्यपूर्ण कथन है। "अल-मिहाद" का मतलब है बिछौना, आराम करने की जगह या बिस्तर।
जहन्नम को "बुरा बिछौना" कहकर अल्लाह ने एक शक्तिशाली अंतर पैदा किया है। काफिर दुनिया में आराम और ऐश के बिछौने पर सोते हैं, लेकिन आखिरत में उनका "बिछौना" आग का गद्दा होगा। यह उनकी दुनियावी सफलता का भयानक अंत है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
सत्य की अंतिम जीत में विश्वास: यह आयत हर मोमिन के दिल में यह विश्वास पैदा करती है कि चाहे हालात कितने भी विपरीत क्यों न हों, अंतिम जीत हमेशा अल्लाह के दीन और उसके बन्दों की ही होती है।
अल्लाह के वादे पर भरोसा: पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सहाबा ने इस आयत को सुनकर इस पर पूरा यकीन किया, और अल्लाह ने अपना वादा पूरा किया। यह हमें सिखाता है कि अल्लाह के हर वादे पर दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।
चेतावनी को गंभीरता से लेना: यह आयत काफिरों के लिए एक अंतिम चेतावनी थी। यह हमें सिखाती है कि अल्लाह की तरफ से आई हुई चेतावनी को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):
बद्र की लड़ाई: यह आयत सबसे पहले बद्र की लड़ाई में सच हुई, जहाँ मुसलमानों की छोटी सी सेना ने काफिरों की बड़ी सेना को शर्मनाक हार दी। यह इस आयत का एक ठोस और ऐतिहासिक प्रमाण बना।
मक्का की विजय: इसके बाद मक्का की विजय ने इस भविष्यवाणी को और स्थापित किया कि काफिरों की शक्ति चूर-चूर हो गई।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):
मुसलमानों की मनोदशा: आज दुनिया के कई हिस्सों में मुसलमान अत्याचार और शक्ति के सामने लगभग असहाय महसूस कर रहे हैं। यह आयत उनके लिए आशा और हिम्मत का स्रोत है कि अल्लाह का वादा सच्चा है और सत्य की जीत निश्चित है।
सत्य के दुश्मनों के लिए चेतावनी: आज जो ताकतें इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ षड्यंत्र रच रही हैं, उनके लिए यह आयत उसी तरह की चेतावनी है जैसे मक्का के काफिरों के लिए थी। उनकी सांसारिक सफलता अस्थायी है।
प्रचार का तरीका: यह आयत दावत-ए-इस्लाम (धर्म का निमंत्रण) का एक तरीका भी सिखाती है, जिसमें स्पष्टता और दृढ़ता के साथ सत्य को पेश किया जाता है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):
शाश्वत वादा: यह आयत हमेशा मुसलमानों के लिए एक प्रेरणा और काफिरों के लिए एक चेतावनी बनी रहेगी। यह एक ईश्वरीय नियम (Sunnatullah) है जो तब तक लागू रहेगा जब तक दुनिया कायम है।
अंतिम लक्ष्य की याद: यह आयत हर युग के मोमिन को याद दिलाती रहेगी कि दुनिया की हर लड़ाई का अंतिम लक्ष्य आखिरत है। असली सफलता जहन्नम से बचकर जन्नत पाना है, न कि केवल दुनिया में जीत हासिल करना।
निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:12 एक स्पष्ट भविष्यवाणी और दिव्य चेतावनी है। यह अतीत में एक वादे के पूरा होने का प्रमाण है, वर्तमान में आशा और चेतावनी का स्रोत है और भविष्य के लिए एक शाश्वत ईश्वरीय नियम है। यह आयत सिखाती है कि अल्लाह के दीन के दुश्मनों के लिए दोनों जहानों में शर्मनाक हार और यातना निश्चित है।