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क़ुरआन 3:13 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 13) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

قَدْ كَانَ لَكُمْ آيَةٌ فِي فِئَتَيْنِ الْتَقَتَا ۖ فِئَةٌ تُقَاتِلُ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَأُخْرَىٰ كَافِرَةٌ يَرَوْنَهُم مِّثْلَيْهِمْ رَأْيَ الْعَيْنِ ۚ وَاللَّهُ يُؤَيِّدُ بِنَصْرِهِ مَن يَشَاءُ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّأُولِي الْأَبْصَارِ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • قَدْ كَانَ (कद कान): बेशक हो चुकी है।

  • لَكُمْ (लकुम): तुम्हारे लिए।

  • آيَةٌ (आयतुन): एक निशानी/सबक।

  • فِي (फ़ी): में।

  • فِئَتَيْنِ (फ़ि'तैन): दो गिरोहों/दलों।

  • الْتَقَتَا (इल्तक़ता): जो आपस में भिड़ गए।

  • فِئَةٌ (फ़ि'ततुन): एक गिरोह।

  • تُقَاتِلُ (तुक़ातिलु): लड़ता है।

  • فِي سَبِيلِ اللَّهِ (फ़ी सबीलिल्लाह): अल्लाह की राह में।

  • وَأُخْرَىٰ (वा उख़रा): और दूसरा (गिरोह)।

  • كَافِرَةٌ (काफिरतुन): काफिर है।

  • يَرَوْنَهُم (यरौनहुम): वे (काफिर) उन्हें (मुसलमानों को) देखते हैं।

  • مِّثْلَيْهِم (मिस्लैहिम): अपने से दोगुने (के बराबर)।

  • رَأْيَ الْعَيْنِ (रअयल-अैन): आँखों देखा (स्पष्ट रूप से)।

  • وَاللَّهُ (वल्लाह): और अल्लाह।

  • يُؤَيِّدُ (युअय्यिदु): मदद करता है, सहायता देता है।

  • بِنَصْرِهِ (बि-नस्रिहि): अपनी मदद से।

  • مَن يَشَاءُ (मन यशाउ): जिसे वह चाहता है।

  • إِنَّ فِي ذَٰلِكَ (इन्ना फ़ी ज़ालिका): बेशक उसमें।

  • لَعِبْرَةً (ला'इबरतन): एक सबक/शिक्षा है।

  • لِّأُولِي (ली-उली): उन लोगों के लिए।

  • الْأَبْصَارِ (अल-अब्सार): जिनकी आँखें हैं (दृष्टि रखने वाले)।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत ठीक पिछली आयत (3:12) में दी गई "पराजय" की भविष्यवाणी का एक ठोस और ऐतिहासिक प्रमाण पेश करती है। अल्लाह मुसलमानों और काफिरों को एक ऐसी घटना की याद दिला रहा है जो उन्होंने अपनी आँखों से देखी थी – बद्र की लड़ाई

इस आयत के चार मुख्य बिंदु हैं:

1. कद कान लकुम आयतुन फ़ी फ़ि'तैनिल्तक़ता (तुम्हारे लिए एक निशानी है उन दो गिरोहों में जो आपस में भिड़ गए):

  • अल्लाह बद्र की लड़ाई को एक "आयत" (चिन्ह/सबक) कह रहा है। यह सिर्फ एक लड़ाई नहीं, बल्कि अल्लाह की ताकत और उसके वादे की सच्चाई का एक जीवंत प्रमाण है।

  • यहाँ "दो गिरोह" से मतलब है: 1. मुसलमानों का छोटा सा दल, 2. कुरैश के काफिरों का बड़ा और सुसज्जित लश्कर।

2. फ़ि'ततुन तुक़ातिलु फ़ी सबीलिल्लाहि वा उख़रा काफिरह (एक गिरोह अल्लाह की राह में लड़ रहा था और दूसरा गिरोह काफिर था):

  • यहाँ दोनों गिरोहों की पहचान और उनके इरादे को स्पष्ट किया गया है। मुसलमानों का उद्देश्य "सबीलिल्लाह" (अल्लाह का धर्म ऊँचा करना) था, जबकि काफिरों का उद्देश्य सत्य को दबाना था।

3. यरौनहुम मिस्लैहिम रअयल-अैन (वे (काफिर) उन्हें (मुसलमानों को) अपने से दोगुने के बराबर आँखों देखा (समझ) रहे थे):

  • यह बद्र की लड़ाई का सबसे बड़ा चमत्कार था। ऐतिहासिक रूप से, मुसलमानों की संख्या लगभग 313 थी, जबकि काफिर 1000 के करीब थे।

  • अल्लाह ने मुसलमानों की संख्या काफिरों की नज़र में दोगुनी कर दी। इससे काफिरों का मनोबल टूट गया और वे डर गए। यह अल्लाह की एक ग़ैबी (अदृश्य) मदद थी।

4. इन्ना फ़ी ज़ालिका ला'इबरतन लि-उलिल अब्सार (बेशक उसमें दृष्टि रखने वालों के लिए एक सबक है):

  • आयत का निष्कर्ष यह है कि बद्र की इस घटना में उन लोगों के लिए एक गहरी शिक्षा (इबरत) है जो सोच-समझकर देखते और सबक लेते हैं।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. अल्लाह की मदद का वादा: सबसे बड़ा सबक यह है कि जो लोग अल्लाह की राह में निकलते हैं, अल्लाह उनकी मदद करता है, भले ही संख्या और साधन कम क्यों न हों।

  2. इरादे की शुद्धता: जीत का आधार संख्या या हथियार नहीं, बल्कि इरादे की शुद्धता (सबीलिल्लाह) है। मुसलमानों ने दुनिया के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह के दीन को ऊपर करने के लिए लड़ाई लड़ी।

  3. ग़ैबी मदद पर विश्वास: अल्लाह की मदद के तरीके इंसानी समझ से परे हैं। वह दुश्मन की नज़र में ही अपने बन्दों की ताकत बढ़ा सकता है। इसलिए हमें हमेशा उसकी ग़ैबी मदद पर भरोसा रखना चाहिए।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • बद्र का चमत्कार: यह आयत सीधे तौर पर बद्र की लड़ाई (2 हिजरी) का जिक्र करती है, जो इस्लामी इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई थी। यह मुसलमानों के लिए एक ठोस प्रमाण और विश्वास बढ़ाने वाली घटना थी।

    • सहाबा के लिए प्रेरणा: इस घटना ने सहाबा के ईमान और हौसले को अटूट बना दिया। उन्होंने खुद अनुभव किया कि अल्लाह का वादा सच्चा है।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • मुसलमानों के लिए आशा: आज दुनिया में मुसलमान असंख्य समस्याओं, अत्याचारों और युद्धों का सामना कर रहे हैं। वे खुद को कमजोर और कम संख्या में महसूस करते हैं। यह आयत उनके लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा है कि जीत का आधार संख्या नहीं, बल्कि तौहीद और सच्चा इमान है।

    • संख्याबल के भ्रम से मुक्ति: आज की दुनिया भी संख्याबल और भौतिक शक्ति को ही सब कुछ मानती है। यह आयत इस भ्रम को तोड़ती है और बताती है कि अल्लाह की मदद सबसे बड़ी ताकत है।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत सिद्धांत: यह आयत एक शाश्वत ईश्वरीय सिद्धांत स्थापित करती है: "अल्लाह उसी की मदद करता है जो उसकी राह में धर्मयुद्ध करता है।" यह सिद्धांत कयामत तक लागू रहेगा।

    • हर युग का सबक: भविष्य में जब भी मुसलमान कमजोर हालात का सामना करेंगे, यह आयत और बद्र का उदाहरण उनके लिए रोशनी और हिम्मत का स्रोत बना रहेगा। यह उन्हें सिखाएगा कि हार नहीं माननी चाहिए और अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:13 केवल एक ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं है, बल्कि यह अल्लाह की सहायता के एक शाश्वत नियम को प्रस्तुत करती है। यह अतीत में एक चमत्कार थी, वर्तमान में एक आशा का स्रोत है और भविष्य के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है कि सच्ची जीत संख्या और हथियारों से नहीं, बल्कि ईमान और अल्लाह पर भरोसे से मिलती है। यह आयत हर उस इंसान को सबक देती है जो सोच-समझकर देखता है।