1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
زُيِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ الشَّهَوَاتِ مِنَ النِّسَاءِ وَالْبَنِينَ وَالْقَنَاطِيرِ الْمُقَنطَرَةِ مِنَ الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَالْخَيْلِ الْمُسَوَّمَةِ وَالْأَنْعَامِ وَالْحَرْثِ ۗ ذَٰلِكَ مَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَاللَّهُ عِندَهُ حُسْنُ الْمَآبِ
2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)
زُيِّنَ (ज़ुय्यिना): सजा दिया गया है, आकर्षक बना दिया गया है।
لِلنَّاسِ (लिन्नास): लोगों के लिए।
حُبُّ (हुब्बु): प्यार, चाहत।
الشَّهَوَاتِ (अश-शहवात): इच्छाएँ, कामनाएँ।
مِنَ (मिन): में से।
النِّسَاءِ (अन-निसा): औरतें।
وَالْبَنِينَ (वल-बनीना): और बेटे।
وَالْقَنَاطِيرِ (वल-क़नातीर): और ढेर सारा (क्विंटल/बोरे)।
الْمُقَنطَرَةِ (अल-मुक़नतिरति): जमा किया हुआ, ढेर लगाया हुआ।
مِنَ الذَّهَبِ (मिनअज़-ज़हब): सोने का।
وَالْفِضَّةِ (वल-फिद्दति): और चाँदी का।
وَالْخَيْلِ (वल-खैल): और घोड़े।
الْمُسَوَّمَةِ (अल-मुसव्विमति): अच्छी नस्ल के, चिन्हित (उत्कृष्ट)।
وَالْأَنْعَامِ (वल-अन'आम): और मवेशी (ऊँट, गाय, भेड़-बकरी)।
وَالْحَرْثِ (वल-हर्स): और खेती।
ذَٰلِكَ (ज़ालिका): वह (सब)।
مَتَاعُ (मता'उ): सामान, फायदा।
الْحَيَاةِ الدُّنْيَا (अल-हयातिद-दुनया): दुनिया की ज़िंदगी का।
وَاللَّهُ (वल्लाह): और अल्लाह।
عِندَهُ (इन्दहु): उसके पास है।
حُسْنُ (हुस्नु): अच्छा, उत्तम।
الْمَآبِ (अल-मआब): लौटने का स्थान (आखिरत)।
3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)
यह आयत मानव मनोविज्ञान की एक गहरी पड़ताल करती है। पिछली आयतों में युद्ध और आखिरत की चर्चा के बाद, अल्लाह अब उस मूल कारण की ओर इशारा कर रहा है जो इंसान को सत्य से दूर और दुनिया में लिप्त रखता है – दुनियावी शहवात (इच्छाएँ)।
इस आयत के तीन मुख्य भाग हैं:
1. ज़ुय्यिना लिन्नासि हुब्बुश शहवात (लोगों के लिए शहवात (इच्छाओं) का प्यार सजा दिया गया है):
यहाँ "ज़ुय्यिना" (सजा दिया गया) शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। दुनिया की चीज़ें अपने-आप में बुरी नहीं हैं, लेकिन शैतान और इंसान का नफ्स (अहं) उन्हें इतना आकर्षक और सुंदर बना कर पेश करता है कि इंसान उनके पीछे पागल हो जाता है।
"शहवात" एक व्यापक शब्द है जिसमें हर तरह की भौतिक और शारीरिक इच्छाएँ शामिल हैं।
2. दुनिया की आकर्षक चीज़ों की सूची:
अल्लाह उन चीज़ों की एक स्पष्ट सूची देता है जिनके प्रति इंसान सबसे ज़्यादा आकर्षित होता है:
महिलाएं और संतान: यह पारिवारिक जीवन और वंश को आगे बढ़ाने की स्वाभाविक इच्छा है।
सोना-चाँदी: यह धन-दौलत और संपत्ति का प्रतीक है।
उत्कृष्ट घोड़े: यह उस ज़माने में हैसियत, शक्ति और विलासिता का प्रतीक था। आज की दुनिया में इसके स्थान पर महँगी कारें, जहाज़ आदि को रखा जा सकता है।
मवेशी और खेती: यह आजीविका, व्यापार और आर्थिक सुरक्षा का प्रतीक है।
3. ज़ालिका मता'उल हयातिद दुनया, वल्लाहु इन्दहु हुस्नुल मआब (यह सब दुनिया की ज़िंदगी का [क्षणिक] सामान है, और अल्लाह के पास ही अच्छा ठिकाना है):
यह आयत का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है जो दुनिया और आखिरत में अंतर स्पष्ट करता है।
"मता'उल हयातिद दुनया" - दुनिया की ज़िंदगी का सामान/लाभ। "मता" का अर्थ है वह चीज़ जो थोड़े समय के लिए उपयोगी हो और फिर खत्म हो जाए। यह बताता है कि दुनिया की ये सारी चीज़ें अनंत नहीं, बल्कि अस्थायी और नश्वर हैं।
"वल्लाहु इन्दहु हुस्नुल मआब" - और अल्लाह के पास ही बेहतरीन लौटने का स्थान (आखिरत) है। असली सफलता, असली सुख और असली शांति तो आखिरत में है, जो अल्लाह के पास है।
4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)
दुनिया की हकीकत: इस आयत से सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि इंसान को दुनिया की चीज़ों से मोहभंग होना चाहिए। उसे पता होना चाहिए कि ये सब कुछ समय के साथ खत्म होने वाला है।
संतुलन का जीवन: इस आयत का मतलब यह नहीं है कि इंसान दुनिया की इन चीज़ों का इस्तेमाल ही न करे। बल्कि मतलब यह है कि वह इन्हें अल्लाह के दिए हुए "अमानत" की तरह देखे और इनके पीछे पागल न हो जाए। इन चीज़ों को हलाल तरीके से हासिल करे और अल्लाह के बताए हुए तरीके से खर्च करे।
लक्ष्य का निर्धारण: इंसान का अंतिम लक्ष्य अल्लाह की रज़ा और आखिरत की तैयारी होना चाहिए, न कि दुनिया जुटाना। दुनिया सफर के लिए ज़रूरी सामान है, मंज़िल नहीं।
5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)
अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):
पैगंबर के समय: मक्का के काफिर अपने धन, संतान और हैसियत के घमंड में इस्लाम को ठुकरा रहे थे। यह आयत उनकी मानसिकता को उजागर करती थी।
सार्वभौमिक सत्य: यह मानव प्रकृति का सार्वभौमिक सत्य है जो हर युग में एक जैसा रहा है।
वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):
भौतिकवादी समाज: आज का समाज पूरी तरह से इन्हीं शहवात में डूबा हुआ है। लोग पैसे, शोहरत, महँगी कारों, बंगलों और sense pleasures के पीछे भाग रहे हैं। यह आयत आज के इंसान को सच्चाई से रूबरू कराती है।
तनाव और अशांति: इन शहवात की पूर्ति के लिए भागदौड़ इंसान को तनाव, अवसाद और आध्यात्मिक शून्यता की ओर धकेल रही है। यह आयत बताती है कि सच्ची शांति तो आखिरत में है।
इस्लामोफोबिया का एक कारण: आज कई लोग इस्लाम को इसलिए नहीं अपनाते क्योंकि उन्हें लगता है कि यह उनकी दुनियावी आज़ादी और शहवात पर रोक लगाता है। यह आयत उन्हें समझाती है कि इस्लाम इन चीज़ों को हराम नहीं करता, बल्कि एक सही संतुलन और हकीकत सिखाता है।
भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):
शाश्वत मानव प्रकृति: जब तक दुनिया है, इंसान का झुकाव इन्हीं शहवात की तरफ रहेगा। यह आयत भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक चेतावनी और मार्गदर्शन बनी रहेगी।
तकनीकी विलासिता: भविष्य में तकनीकी विकास के साथ शहवात पूरी करने के और भी नए-नए साधन आएंगे (जैसे Virtual Reality, AI आदि)। यह आयत भविष्य के इंसान को यही सबक देगी कि ये सब "मता" (अस्थायी सामान) है और असली लक्ष्य आखिरत है।
निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:14 दुनिया की असली हकीकत को बहुत ही स्पष्ट शब्दों में बयान करती है। यह इंसान को उसकी कमजोरी (शहवात) से अवगत कराती है और उसे यह याद दिलाती है कि दुनिया एक "मता" (अस्थायी सामान) है जबकि आखिरत का सुख ही स्थायी और वास्तविक है। यह आयत हर युग के इंसान के लिए एक कंपास का काम करती है जो उसे दुनिया के आकर्षण में भटकने से बचाकर सही मंज़िल की ओर ले जाती है।