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क़ुरआन 3:15 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 15) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

قُلْ أَؤُنَبِّئُكُم بِخَيْرٍ مِّن ذَٰلِكُمْ ۚ لِلَّذِينَ اتَّقَوْا عِندَ رَبِّهِمْ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَأَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَرِضْوَانٌ مِّنَ اللَّهِ ۗ وَاللَّهُ بَصِيرٌ بِالْعِبَادِ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • قُلْ (कुल): (हे पैगंबर!) आप कह दीजिए।

  • أَؤُنَبِّئُكُم (आ उनब्बिउकुम): क्या मैं तुम्हें बताऊँ?

  • بِخَيْرٍ (बि-खैरिन): किसी बेहतर चीज़ के बारे में।

  • مِّن ذَٰلِكُمْ (मिन ज़ालिकुम): उन (दुनियावी चीज़ों) से।

  • لِلَّذِينَ (लिल्लज़ीना): उन लोगों के लिए जिन्होंने।

  • اتَّقَوْا (अत्तक़ौ): तक्वा किया (अल्लाह से डरे)।

  • عِندَ رَبِّهِمْ (इन्दा रब्बिहिम): उनके रब के पास।

  • جَنَّاتٌ (जन्नातुन): बाग़ (जन्नत) हैं।

  • تَجْرِي (तज्री): बहती हैं।

  • مِن تَحْتِهَا (मिन तहतिहा): उनके नीचे से।

  • الْأَنْهَارُ (अल-अनहार): नहरें।

  • خَالِدِينَ فِيهَا (खालिदीना फ़ीहा): उनमें सदैव रहने वाले।

  • وَأَزْوَاجٌ (वा अज़वाजुन): और बीवियाँ।

  • مُّطَهَّرَةٌ (मुताह्हारतुन): पाक-साफ़।

  • وَرِضْوَانٌ (वा रिद्वानुन): और खुशी/रज़ा।

  • مِّنَ اللَّهِ (मिनल्लाह): अल्लाह की।

  • وَاللَّهُ (वल्लाह): और अल्लाह।

  • بَصِيرٌ (बसीरुन): देखने वाला है।

  • بِالْعِبَادِ (बिल-इबाद): बन्दों को।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयत (3:14) का सीधा जवाब और पूरक है। पिछली आयत में दुनिया की अस्थायी और आकर्षक चीज़ों (शहवात) का वर्णन था। अब अल्लाह अपने पैगंबर से कहलवा रहा है कि उन लोगों को एक बेहतर प्रस्ताव के बारे में बताओ जो अल्लाह से डरने वालों (मुत्तक़ीन) के लिए है।

यह आयत एक दिव्य विकल्प पेश करती है: दुनिया की नश्वर शहवात या आखिरत की शाश्वत नेमतें।

इस आयत में मुत्तक़ीन (अल्लाह से डरने वालों) के लिए चार अद्भुत इनाम बताए गए हैं:

1. जन्नातुन तज्री मिन तहतिहल अनहारु खालिदीना फ़ीहा (उनके लिए जन्नत के बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बहती हैं, जहाँ वे हमेशा रहेंगे):

  • यह जन्नत की सबसे बुनियादी और खूबसूरत नेमत है। "नीचे से नहरें बहना" शांति, ताजगी, सुंदरता और प्रचुरता का प्रतीक है।

  • "खालिदीना फ़ीहा" (उसमें हमेशा रहने वाले) शब्द सबसे महत्वपूर्ण हैं। दुनिया की हर नेमत फ़ानी (नाशवान) है, लेकिन जन्नत की नेमतें हमेशा के लिए हैं। यह दुनिया की नेमतों से बढ़कर है।

2. वा अज़वाजुम मुताह्हारह (और पाक-साफ़ बीवियाँ):

  • पिछली आयत में दुनिया की औरतों का जिक्र था। यहाँ जन्नत में "पवित्र बीवियों" का वादा है। "मुताह्हारह" का मतलब है हर प्रकार की शारीरिक और आध्यात्मिक अशुद्धता से पवित्र। ये सहपाठी बेहतरीन चरित्र और सुंदरता की होंगी।

3. वा रिद्वानुम मिनल्लाह (और अल्लाह की खुशी/रज़ा):

  • यह सबसे बड़ा और सर्वोच्च इनाम है। दुनिया का सारा धन और सुख अल्लाह की रज़ा के सामने कुछ भी नहीं है।

  • अल्लाह की रज़ा का मतलब है कि अल्लाह अपने बन्दे से खुश और संतुष्ट है। यह एक ऐसी अनुभूति है जिसकी तुलना किसी भी दुनियावी सुख से नहीं की जा सकती।

4. वल्लाहु बसीरुम बिल-इबाद (और अल्लाह अपने बन्दों को देखने वाला है):

  • आयत का अंत इस महत्वपूर्ण बात के साथ होता है कि अल्लाह हर किसी को देख रहा है। वह जानता है कि कौन दुनिया के पीछे भाग रहा है और कौन उसकी रज़ा और आखिरत को चुन रहा है। यह एक चेतावनी भी है और विश्वास का स्रोत भी।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. वास्तविक सफलता क्या है: इस आयत से पता चलता है कि असली सफलता और समृद्धि दुनिया में नहीं, बल्कि आखिरत में है। सच्चा मोमिन हमेशा आखिरत की नेमतों को दुनिया पर तरजीह देता है।

  2. तक्वा (अल्लाह का भय) का महत्व: सभी इनामों की कुंजी "तक्वा" है। यानी अल्लाह का डर, उसकी हदों का पालन और उसकी नाराज़गी से बचना।

  3. प्राथमिकताओं का सही चुनाव: यह आयत इंसान को उसकी प्राथमिकताएँ तय करने में मदद करती है। यह पूछती है: क्या तुम दुनिया के थोड़े और अस्थायी सुख को चुनोगे या आखिरत के शाश्वत और बेहतर सुख को?

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • पैगंबर और सहाबा के लिए प्रेरणा: जब पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सहाबा पर दुनिया की तकलीफें और यातनाएँ आ रही थीं, यह आयत उनके लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा और ढाढस थी। यह याद दिलाती थी कि तुम्हारा इनाम तो अल्लाह के पास तैयार है।

    • काफिरों के लिए जवाब: यह आयत मक्का के काफिरों के लिए एक जवाब थी जो कहते थे कि इस्लाम अपनाने से दुनिया में नुकसान है। अल्लाह ने बताया कि नुकसान नहीं, बल्कि तुम्हें दुनिया से बेहतर चीज़ का वादा दिया जा रहा है।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • भौतिकवाद के जवाब में: आज का मनुष्य पैसे और ऐशो-आराम में ही जीवन का लक्ष्य देखता है। यह आयत उसे एक बेहतर विकल्प देती है और उसके मन में आखिरत के प्रति आकर्षण पैदा करती है।

    • तकलीफों में सहारा: आज दुनिया भर के मुसलमान जो गरीबी, युद्ध और अत्याचार झेल रहे हैं, उनके लिए यह आयत एक सहारा है। यह उन्हें बताती है कि तुम्हारी कुर्बानियों का इनाम दुनिया नहीं, बल्कि अल्लाह के पास तैयार है।

    • नैतिकता की प्रेरणा: जो लोग गुनाह और भ्रष्टाचार में डूबे हैं, उनके लिए यह आयत एक प्रेरणा है कि अगर तुम अल्लाह से डरोगे (तक्वा अपनाओगे) तो तुम्हारे लिए इन सबसे बेहतरीन चीज़ें मौजूद हैं।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत प्रेरणा: जब तक दुनिया रहेगी, इंसान के सामने दुनिया और आखिरत के चुनाव का सवाल रहेगा। यह आयत हर पीढ़ी को यही शाश्वत प्रेरणा देती रहेगी कि आखिरत को दुनिया पर प्राथमिकता दो।

    • तकनीकी सुख के बाद: भविष्य में तकनीक इंसान को और भी भौतिक सुख देगी। ऐसे में यह आयत और भी प्रासंगिक होगी, क्योंकि यह इंसान को याद दिलाएगी कि ये सब कुछ "ज़ालिकुम" (उन चीज़ों) जैसा है और "खैर" (बेहतर चीज़) तो अल्लाह के पास है।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:15 एक दिव्य प्रस्ताव है। यह इंसान को दुनिया की नश्वरता के भ्रम से निकालकर आखिरत की शाश्वत वास्तविकता से परिचित कराती है। यह अतीत में सहाबा के लिए प्रेरणा थी, वर्तमान में भौतिकवाद का मारक है और भविष्य के लिए एक स्थायी मार्गदर्शक सिद्धांत है कि सच्ची सफलता अल्लाह की रज़ा और जन्नत में है।