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क़ुरआन 3:16 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 16) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

الَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا إِنَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • الَّذِينَ (अल्लज़ीना): वे लोग जो।

  • يَقُولُونَ (यकूलून): कहते हैं।

  • رَبَّنَا (रब्बना): हे हमारे पालनहार!

  • إِنَّنَا (इन्नना): बेशक हम।

  • آمَنَّا (आमन्ना): ईमान लाए।

  • فَاغْفِرْ (फ़ग्फ़िर): तो हमें माफ़ कर दे।

  • لَنَا (लना): हमारे।

  • ذُنُوبَنَا (ज़ुनूबना): गुनाहों को।

  • وَقِنَا (व किना): और हमें बचा ले।

  • عَذَابَ (अज़ाब): यातना से।

  • النَّارِ (अन-नार): आग (जहन्नम) की।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पिछली आयतों में वर्णित "मुत्तक़ीन" (अल्लाह से डरने वालों) की एक मुख्य पहचान बताती है। जन्नत का वादा सुनने के बाद, असली मोमिन घमंड नहीं करता, बल्कि वह और भी ज़्यादा विनम्रता और डर के साथ अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाता है।

यह आयत उनकी एक विशेष दुआ है, जो तीन बातों पर आधारित है:

1. इक़रार-ए-ईमान (ईमान का स्वीकार): रब्बना इन्नना आमन्ना (हे हमारे रब! बेशक हम ईमान लाए)

  • यह अल्लाह के सामने अपने ईमान का एलान और उस नेमत के प्रति शुक्र का इज़हार है। वे यह नहीं कहते कि "हम बहुत बड़े आबिद हैं," बल्कि विनम्रता से कहते हैं कि "हम ईमान लाए।" यह ईमान पर घमंड की भावना को ख़त्म करती है।

2. इस्तिग़फ़ार (माफ़ी की दुआ): फ़ग्फ़िर लना ज़ुनूबना (तो हमारे गुनाहों को माफ़ कर दे)

  • ईमान लाने के बावजूद, एक सच्चा मोमिन अपने गुनाहों से बेहद डरा रहता है। वह जानता है कि इंसान से खता (गलती) होती रहती है। इसलिए वह लगातार अल्लाह से अपने छोटे-बड़े सभी गुनाहों की माफ़ी मांगता रहता है।

3. इल्तिजा-ए-निजात (बचाव की प्रार्थना): व किना अज़ाबन-नार (और हमें आग की यातना से बचा ले)

  • सिर्फ गुनाहों की माफ़ी ही काफी नहीं है, एक मोमिन आखिरत की यातना से सुरक्षा की भी दुआ करता है। वह जन्नत के वादे के बावजूद जहन्नम से डरता है और अल्लाह से पनाह मांगता है। यह डर ही उसे गुनाहों से बचाता है।

संदर्भ: यह दुआ "मुत्तक़ीन" का असली चरित्र है। वे केवल जन्नत के सुख के लालची नहीं होते, बल्कि वे अल्लाह की अजाब (सज़ा) से इतना डरते हैं कि लगातार उससे पनाह मांगते रहते हैं।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. विनम्रता की शिक्षा: ईमान लाने के बाद इंसान में घमंड नहीं, बल्कि और विनम्रता आनी चाहिए। उसे हमेशा यह एहसास रहना चाहिए कि वह अल्लाह का एक ग़लती करने वाला बन्दा है।

  2. लगातार इस्तिग़फ़ार: एक मोमिन का एक लक्षण यह है कि वह हर समय, हर नमाज़ के बाद अल्लाह से माफ़ी मांगता रहता है, भले ही उससे कोई बड़ा गुनाह न हुआ हो।

  3. आखिरत का डर: जन्नत की उम्मीद के साथ-साथ जहन्नम का डर भी ईमान का एक अहम हिस्सा है। यह डर ही इंसान को गुनाह से रोकता है और नेकी की तरफ भागने को प्रेरित करता है।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • पैगंबर और सहाबा की आदत: पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) खुद, हालाँकि माफ़ किए हुए थे, दिन में सत्तर बार से ज़्यादा इस्तिग़फ़ार करते थे। आपके सहाबा भी इस दुआ को बहुत महत्व देते थे। यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा था।

    • पिछले पैगंबरों की सुन्नत: सभी पैगंबर अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाते और माफ़ी मांगते थे। यह दुआ उसी परंपरा को जारी रखती है।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • धार्मिक अहंकार के खिलाफ: आज कुछ लोग खुद को बहुत बड़ा धार्मिक समझकर दूसरों को तुच्छ जाते हैं। यह आयत उनके लिए एक सबक है कि असली मोमिन का रवैया घमंड का नहीं, बल्कि विनम्रता और माफ़ी मांगने का होता है।

    • गुनाहों के बोझ से मुक्ति: आज का इंसान गुनाहों में डूबा हुआ है और मानसिक अशांति झेल रहा है। यह दुआ उसके लिए एक राहत का दरवाज़ा है। यह उसे सिखाती है कि सीधे अल्लाह से रुजू करो, उससे माफ़ी मांगो और उसकी पकड़ से डरो।

    • आध्यात्मिक जागरण: भौतिकवादी दुनिया में, यह दुआ इंसान को उसके असली मकसद (अल्लाह की रज़ा और आखिरत की तैयारी) की याद दिलाती है।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत प्रार्थना: जब तक दुनिया में इंसान रहेगा, उससे गलतियाँ होती रहेंगी। यह दुआ कयामत तक हर मोमिन के लिए एक स्थायी प्रार्थना और आध्यात्मिक उपचार का स्रोत बनी रहेगी।

    • नैतिक सुरक्षा कवच: भविष्य की चुनौतियाँ और प्रलोभन और भी जटिल होंगे। इस दुआ का नियमित पाठ भविष्य के मोमिन के लिए एक नैतिक सुरक्षा कवच का काम करेगा, जो उसे गुनाह से बचाएगा और अल्लाह के करीब ले जाएगा।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:16 एक सच्चे मोमिन के हृदय की धड़कन को व्यक्त करती है। यह केवल शब्द नहीं, बल्कि ईमान, विनम्रता, डर और आशा का एक सुंदर मिश्रण है। यह अतीत के पैगंबरों और सहाबा की सुन्नत थी, वर्तमान के मुसलमान के लिए एक जीवन रेखा है और भविष्य की हर पीढ़ी के लिए एक शाश्वत आध्यात्मिक मार्गदर्शन है। यह दुआ बताती है कि ईमान की सच्चाई अहंकार में नहीं, बल्कि अल्लाह के सामने गिड़गिड़ाने में है।