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कुरआन की आयत 3:143 की पूरी व्याख्या

 पूर्ण आयत (अरबी में):

وَلَقَدْ كُنتُمْ تَمَنَّوْنَ الْمَوْتَ مِن قَبْلِ أَن تَلْقَوْهُ فَقَدْ رَأَيْتُمُوهُ وَأَنتُمْ تَنظُرُونَ

अरबी शब्दों के अर्थ:

  • وَلَقَدْ كُنتُمْ: और बेशक तुम लोग थे

  • تَمَنَّوْنَ: चाहते थे, इच्छा रखते थे

  • الْمَوْتَ: मौत को

  • مِن قَبْلِ: पहले

  • أَن تَلْقَوْهُ: इससे मिलने से पहले

  • فَقَدْ رَأَيْتُمُوهُ: तो अब तुमने उसे देख लिया

  • وَأَنتُمْ تَنظُرُونَ: और तुम देख रहे हो (सामने हो)

आयत का पूर्ण विवरण:
यह आयत उहुद की लड़ाई के संदर्भ में उतरी थी। बद्र की लड़ाई में आसान जीत के बाद कुछ मुसलमानों ने शहादत की इच्छा जताई थी, लेकिन जब उहुद में वास्तव में मौत सामने आई तो कुछ लोगों का रवैया बदल गया।

तफ्सीर और शिक्षा:

  1. इच्छा और वास्तविकता में अंतर: बातें करना आसान होता है, लेकिन जब वास्तविक परीक्षा आती है तो इंसान की हकीकत सामने आ जाती है।

  2. शहादत की सच्ची चाहत: शहादत सिर्फ जुबानी दावा नहीं, बल्कि दिल से अल्लाह के लिए कुर्बान होने का जज्बा चाहिए।

अतीत के साथ प्रासंगिकता:
बद्र की लड़ाई के बाद कुछ मुसलमान कहते थे: "काश हमें भी शहादत मिलती!" लेकिन उहुद में जब वास्तव में मौका आया तो कुछ लोग डर गए या पीछे हट गए।

वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता:

समकालीन दृष्टिकोण:

  1. व्यावहारिक धार्मिकता:

    • केवल दिखावे की धार्मिकता खतरनाक है

    • असली इमान तब परखा जाता है जब मुश्किल आती है

    • हम जो बोलते हैं, उस पर अमल करने का साहस चाहिए

  2. युवाओं के लिए सबक:

    • सोशल मीडिया पर बड़ी-बड़ी बातें करना आसान है

    • असली जिंदगी में जब चुनौती आती है, तो हम कैसे रिएक्ट करते हैं?

    • वादे और कर्म में समानता जरूरी

  3. आधुनिक परिप्रेक्ष्य:

    • कठिनाइयों से भागना नहीं, बल्कि उनका सामना करना

    • धार्मिक उत्साह को व्यावहारिक धैर्य में बदलना

    • इरादों की सच्चाई पर काम करना

भविष्य के लिए शिक्षा:

  • केवल शब्दों में नहीं, कर्मों में भी ईमानदार रहना

  • परीक्षा के समय धैर्य और स्थिरता बनाए रखना

  • अल्लाह के सामने हमारे कर्म ही सबूत हैं, सिर्फ शब्द नहीं

सारांश:
यह आयत हमें सिखाती है कि केवल बातें करना और असल परीक्षा में खरा उतरना अलग-अलग बातें हैं। आज के दौर में जब हम धर्म के लिए बलिदान की बात करते हैं, तो हमें अपने इरादों की सच्चाई पर भी गौर करना चाहिए। अल्लाह हमारे दिलों की हालत जानता है और वह हमारे कर्मों को देखता है, सिर्फ शब्दों को नहीं।