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क़ुरआन 3:18 (सूरह आले-इमरान, आयत नंबर 18) की पूर्ण व्याख्या

 

1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)

شَهِدَ اللَّهُ أَنَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ وَالْمَلَائِكَةُ وَأُولُو الْعِلْمِ قَائِمًا بِالْقِسْطِ ۚ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

2. अरबी शब्दों के अर्थ (Arabic Words Meaning)

  • شَهِدَ (शहिदा): गवाही दी है।

  • اللَّهُ (अल्लाह): अल्लाह ने।

  • أَنَّهُ (अन्नहु): कि बेशक वही है।

  • لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ (ला इलाहा इल्ला हुव): उसके सिवा कोई पूज्य (माबूद) नहीं।

  • وَالْمَلَائِكَةُ (वल-मलाइकतु): और फ़रिश्तों ने (भी)।

  • وَأُولُو (वा उलू): और रखने वालों ने।

  • الْعِلْمِ (अल-इल्म): इल्म (ज्ञान) के।

  • قَائِمًا (काइमम): स्थापित रहने वाला।

  • بِالْقِसْطِ (बिल-किस्त): इंसाफ (न्याय) के साथ।

  • لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ (ला इलाहा इल्ला हुव): उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।

  • الْعَزِيزُ (अल-अज़ीज़): सर्वशक्तिमान, प्रभुत्वशाली।

  • الْحَكِيمُ (अल-हकीम): तत्वदर्शी, सर्वज्ञ।

3. पूर्ण व्याख्या (Full Explanation in Hindi)

यह आयत पूरे क़ुरआन की सबसे महत्वपूर्ण और आधारभूत आयतों में से एक है। यह "तौहीद" (अल्लाह की एकता) के सिद्धांत को सर्वोच्च और सर्वसम्मत गवाही के साथ पेश करती है।

इस आयत के चार मुख्य बिंदु हैं:

1. शहिदल्लाहु अन्नहु ला इलाहा इल्ला हुव (अल्लाह ने स्वयं गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं):

  • यह सबसे शक्तिशाली और अद्वितीय कथन है। सृष्टिकर्ता स्वयं अपने एक होने की गवाही दे रहा है। यह गवाही सभी गवाहियों में सर्वोच्च है क्योंकि अल्लाह स्वयं अपने बारे में सबसे बेहतर जानता है।

2. वल-मलाइकतु व उलूल इल्मि (और फ़रिश्तों और ज्ञानवानों ने भी):

  • अल्लाह की इस गवाही के बाद, दो और समूहों ने इसकी पुष्टि की:

    • फ़रिश्ते: ये अल्लाह के नेक बन्दे हैं जो हमेशा उसकी इबादत और तस्बीह में लगे रहते हैं। वे पूरी तरह से इस सत्य को जानते और मानते हैं।

    • उलूल इल्म (ज्ञानवान लोग): ये वे लोग हैं जो गहन ज्ञान और समझ रखते हैं। इसमें सभी पैगंबर और सच्चे विद्वान शामिल हैं। जैसे-जैसे इंसान का ज्ञान बढ़ता है, वह प्रकृति और ब्रह्मांड के तर्क के माध्यम से अल्लाह की एकता के सत्य तक पहुँचता है।

3. काइमम बिल-किस्त (वह इंसाफ (न्याय) पर स्थापित रहने वाला है):

  • यह वाक्यांश बताता है कि अल्लाह की एकता का सिद्धांत न्याय और संतुलन पर आधारित है।

  • अल्लाह स्वयं पूरी सृष्टि में न्याय और संतुलन बनाए हुए है।

  • यह इस बात का भी संकेत है कि "ला इलाहा इल्लल्लाह" का एलान करना ही न्याय और सच्चाई का आधार है। इसके बिना इंसान की ज़िंदगी और समाज में न्याय स्थापित नहीं हो सकता।

4. ला इलाहा इल्ला हुवल अज़ीज़ुल हकीम (उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, वह सर्वशक्तिमान, तत्वदर्शी है):

  • आयत का अंत उसी कलिमा के साथ होता है, जिससे इसकी शुरुआत हुई थी, मगर इस बार अल्लाह के दो गुणों के साथ:

    • अल-अज़ीज़: वह सर्वशक्तिमान है, उसकी गवाही और उसके एक होने के सिद्धांत को कोई चुनौती नहीं दे सकता।

    • अल-हकीम: वह सर्वज्ञ और तत्वदर्शी है, उसका हर काम और हर बात हिकमत (गहरी बुद्धिमत्ता) से भरी हुई है।

4. शिक्षा और सबक (Lesson and Moral)

  1. तौहीद का सर्वोच्च सत्य: यह आयत सिखाती है कि "ला इलाहा इल्लल्लाह" कोई साधारण नारा नहीं है, बल्कि वह सत्य है जिसकी गवाही स्वयं अल्लाह, उसके फ़रिश्ते और सभी ज्ञानी लोग देते हैं।

  2. ज्ञान और ईमान का रिश्ता: असली ज्ञान (इल्म) इंसान को अल्लाह की एकता की ओर ही ले जाता है। जो व्यक्ति जितना ज़्यादा ज्ञानी होगा, उसका ईमान उतना ही मज़बूत होगा।

  3. न्याय का आधार: सच्चा न्याय और संतुलन तभी संभव है जब समाज और व्यक्ति "तौहीद" के सिद्धांत को अपनाए। बहुदेववाद और नास्तिकता हमेशा अराजकता और अत्याचार को जन्म देते हैं।

5. अतीत, वर्तमान और भविष्य के साथ प्रासंगिकता (Relevancy to Past, Present and Future)

  • अतीत में प्रासंगिकता (Relevancy to the Past):

    • सभी पैगंबरों का संदेश: हज़रत आदम से लेकर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तक, हर पैगंबर का केंद्रीय संदेश यही "ला इलाहा इल्लल्लाह" था। यह आयत उसी सतत सत्य की पुष्टि करती है।

    • मक्का के मुशरिकों के लिए चुनौती: जब यह आयत उतरी, तो यह मक्का के मूर्तिपूजकों के लिए एक सीधी चुनौती थी। यह बताती थी कि तुम्हारे झूठे देवताओं के विपरीत, अल्लाह की एकता की गवाही स्वयं अल्लाह, फ़रिश्ते और सभी ज्ञानी दे रहे हैं।

  • वर्तमान में प्रासंगिकता (Relevancy to the Present):

    • वैज्ञानिक युग में प्रासंगिकता: आज का विज्ञान प्रकृति के नियमों और ब्रह्मांड की संरचना में जिस "संतुलन" (किस्त) की बात करता है, वह इसी आयत में वर्णित "काइमम बिल-किस्त" (न्याय पर स्थापित) का ही प्रमाण है। हर नई वैज्ञानिक खोज एक "उलूल इल्म" (ज्ञानी) की तरह इस सत्य की गवाही देती है।

    • बहुदेववाद और नास्तिकता का खंडन: आज का युग नास्तिकता और भौतिकवाद का युग है। यह आयत उन सभी के लिए एक स्पष्ट प्रमाण है कि सृष्टि का रचयिता एक है और इसकी गवाही पूरा ब्रह्मांड दे रहा है।

    • धार्मिक एकता का सूत्र: यह आयत यहूदियों और ईसाइयों सहित सभी अहले-किताब को याद दिलाती है कि उनके मूल धर्म का आधार भी यही "तौहीद" था।

  • भविष्य में प्रासंगिकता (Relevancy to the Future):

    • शाश्वत सत्य: "ला इलाहा इल्लल्लाह" का सिद्धांत एक शाश्वत सत्य है। चाहे विज्ञान और दर्शन कितनी भी उन्नति कर लें, यह सिद्धांत कभी बदलेगा नहीं और हर युग में प्रासंगिक रहेगा।

    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और सृष्टिकर्ता: भविष्य में जब AI और तकनीक इंसानी ज्ञान की सीमाओं को पार करेगी, तब भी वह इस सत्य तक नहीं पहुँच पाएगी कि स्वयं को किसने बनाया। यह आयत भविष्य की हर "उलूल इल्म" (ज्ञान रखने वाली इकाई) को यही गवाही देती रहेगी।

निष्कर्ष:
क़ुरआन 3:18 तौहीद (अल्लाह की एकता) के सिद्धांत की सर्वोच्च और अंतिम गवाही है। यह अतीत के सभी पैगंबरों के संदेश की पुष्टि करती है, वर्तमान के विज्ञान और तर्क के लिए एक आधार प्रदान करती है और भविष्य की हर चुनौती के लिए एक अटल सत्य के रूप में खड़ी रहेगी। यह आयत बताती है कि ईमान और ज्ञान दोनों ही एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं – "ला इलाहा इल्लल्लाह"।