1. आयत का अरबी पाठ (Arabic Text)
رَبَّنَا إِنَّكَ مَن تُدْخِلِ النَّارَ فَقَدْ أَخْزَيْتَهُ ۖ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنصَارٍ
2. आयत का शाब्दिक अर्थ (Word-to-Word Meaning)
رَبَّنَا : हे हमारे पालनहार
إِنَّكَ : निश्चय ही तू ही है
مَن تُدْخِلِ النَّارَ : जिसे तू आग में डालेगा
فَقَدْ أَخْزَيْتَهُ : तो निश्चय ही तूने उसे अपमानित कर दिया
ۖ وَمَا : और नहीं हैं
لِلظَّالِمِينَ : ज़ालिमों के लिए
مِنْ أَنصَارٍ : कोई मददगार
3. सरल अर्थ (Simple Meaning in Hindi)
"हे हमारे पालनहार! जिसे तू आग में डालेगा, निश्चय ही तूने उसे अपमानित कर दिया और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं है।"
4. आयत की पृष्ठभूमि और सन्दर्भ (Context)
यह आयत पिछली आयतों का ही विस्तार है जहाँ समझदार लोग अल्लाह से दुआ कर रहे हैं। यह दुआ उन लोगों की ओर से है जो अल्लाह की निशानियों पर विचार करते हैं और उसके अज़ाब से डरते हैं। वे अल्लाह से जहन्नम की आग से बचने की प्रार्थना कर रहे हैं।
5. आयत से सीख (Lesson from the Verse)
यह आयत कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है:
अल्लाह की शक्ति: जहन्नम में डालना अल्लाह के हाथ में है।
अपमान की चेतावनी: जहन्नम में जाना सबसे बड़ा अपमान है।
ज़ुल्म का परिणाम: ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा।
भय और आशा: अल्लाह के अज़ाब से डरना और उसकी रहमत की उम्मीद रखना।
6. प्रासंगिकता: अतीत, वर्तमान और भविष्य (Relevance: Past, Present & Future)
वर्तमान में प्रासंगिकता :
आज के संदर्भ में यह आयत बेहद प्रासंगिक है:
नैतिक जिम्मेदारी: आज के समाज में बढ़ते अत्याचार और ज़ुल्म के खिलाफ यह आयत एक चेतावनी है कि ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा।
आध्यात्मिक जागरूकता: आज के भौतिकवादी युग में लोग आखिरत के अज़ाब को भूल गए हैं। यह आयत याद दिलाती है कि जहन्नम का अज़ाब सबसे बड़ा अपमान है।
सामाजिक न्याय: समाज में फैले अत्याचारों के विरुद्ध यह आयत बताती है कि अल्लाह ज़ालिमों को कभी नहीं बचाएगा।
युवाओं के लिए सबक: आज का युवा गलत रास्तों पर चलकर अपनी आखिरत बर्बाद कर रहा है। यह आयत उन्हें चेतावनी देती है कि जहन्नम सबसे बड़ी असफलता है।
भविष्य के लिए संदेश:
यह आयत भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्थाई मार्गदर्शक है कि "ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होता और जहन्नम में जाना सबसे बड़ा अपमान है।" भविष्य में चाहे समाज कितना भी बदल जाए, यह सिद्धांत सदैव प्रासंगिक रहेगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुरआन की आयत 3:192 मोमिनीन की दुआ का एक हिस्सा है जिसमें वे अल्लाह से जहन्नम के अज़ाब से बचने की प्रार्थना कर रहे हैं। यह न केवल एक धार्मिक संदेश है, बल्कि हर युग के इंसान के लिए एक व्यावहारिक जीवन-शिक्षा है। यह हमें सिखाती है कि जहन्नम में डालना अल्लाह के हाथ में है और वहां जाना सबसे बड़ा अपमान है। ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं होगा, चाहे वे दुनिया में कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों। यह आयत आज के अत्याचार और ज़ुल्म से भरे समाज में हमारे लिए एक चेतावनी और मार्गदर्शक का काम करती है।